भाषाविज्ञान की परिधि
भाषाविज्ञान के परिचय में हम यह देखते है कि भाषा क्या है? भाषा का विकास कैसे हुआ? और समाज में भाषा का प्रयोग कैसे होता है? इन सारे प्रश्नों का उत्तर हमें भाषाविज्ञान में मिलता है। भाषाविज्ञान में भाषा का अध्ययन किस प्रकार से होता है? यह सारी बातों का पता हमें भाषाविज्ञान से चलता है। भाषाविज्ञान क्या है? भाषा और विज्ञान का क्या संबंध है? भाषाविज्ञान का अध्ययन किस तरह किया जाए? आदि बिंदुओं को जानने का प्रयत्न करते हैं। हम यहाँ भाषा तथा विज्ञान का क्या संबंध है यह जानते हैं।
संसार में मनुष्य द्वारा प्रयुक्त सार्थक ध्वनि समूहों को भाषा कहते है, जिसमें ध्वनि, शब्द, वाक्य, अर्थ अदि का प्रयोग होता है। संसार में रहने वाले सर्व-सामान्य मनुष्य भाषा का प्रयोग अपने विचारों को व्यक्त करने तथा दूसरों के साथ संप्रेषण (वार्तालाप) करने के लिए करते हैं। एक भाषा-भाषी व्यक्ति अपने भाषा समूह के व्यक्ति के साथ संप्रेषण कर सकता है परंतु अन्य भाषा-भाषी समूह के व्यक्ति के साथ उसे संप्रेषण करने में कठिनाई आ सकती है या संप्रेषण संभव नहीं होता है। इसका कारण यह है कि भाषा संकेतों की वह व्यवस्था है, जिसको भाषाई चिह्नों से कोडित किया जाता है। यह भाषाई चिह्न वक्ता एवं श्रोता दोनों के मस्तिष्क में होते हैं, तभी तो वक्ता द्वारा भेजे गए भाषाई सन्देश को श्रोता समझ लेता है। यदि उसे यह कोड पता नहीं है तो वह भाषा के संकेतों को डिकोड नहीं कर सकेगा, जिससे वह भाषा को समझ नहीं पाता। हम यह कह सकते हैं कि इस तरह से मनुष्य भाषा का प्रयोग समाज में करता है।
विज्ञान का अर्थ है कि किसी भी वस्तु या विषय का अध्ययन कर उससे संबंधित सम्पूर्ण तथ्यों को सामने लाना या किसी भी विषय का शास्त्रशुद्ध पद्धति से अध्ययन करना विज्ञान है। विज्ञान हमें विषय के बारे में विशिष्ट ज्ञान प्रदान करता है और उससे संबंधित तथ्यों को सामने रखता है। यहाँ भाषाविज्ञान के संदर्भ में कह सकते है कि भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को भाषा विज्ञान कहा जा साकता है। यहाँ विज्ञान, भाषा के संदर्भ में वही कार्य करता है जो विज्ञान अन्य विषयों के संदर्भ में करता है, यहाँ भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन ध्वनिविज्ञान, रूपविज्ञान, वाक्यविज्ञान, अर्थविज्ञान तथा प्रोक्तिविज्ञान, आदि का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। भाषाविज्ञान को अध्ययन की सुविधा के लिए आगे दो भागों में बाँट सकते हैं- सैद्धांतिक भाषाविज्ञान, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान आदि को निम्न बिंदु द्वारा समझ सकते हैं-
भाषाविज्ञान
- सैद्धांतिक भाषाविज्ञान
- ध्वनिविज्ञान
- रूपविज्ञान
- वाक्यविज्ञान
- प्रोक्ति
- अर्थविज्ञान
- अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान
- कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान
- अनुवाद
- कोशविज्ञान
- समाजभाषाविज्ञान
- भाषाशिक्षण
- शैली विज्ञान
- व्युत्पत्तिविज्ञान
- सांखिकी भाषाविज्ञान
- मनोभाषाविज्ञान
- सैद्धांतिक भाषाविज्ञान (Theoretical Linguistics)– यह भाषाविज्ञान का वह पक्ष है, जिसमें भाषाविज्ञान से संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है। सैद्धांतिक पक्ष में ऐसे नियम दिए जाते हैं, जो भाषा के उच्चारण से लेकर उसके प्रयोग से संबंधित होते हैं इसमें भाषा की उत्पत्ति से लेकर उसके उच्चारण और भाषा के व्याकरण का अध्ययन करते हैं। जिसमें- ध्वनिविज्ञान, रूपविज्ञान, वाक्यविज्ञान, अर्थविज्ञान आदि को संक्षेप में देख सकते हैं।
ध्वनिविज्ञान (Phonetics)- ध्वनिविज्ञान, भाषाविज्ञान का वह सैद्धांतिक पक्ष है, जिसमें मानव मुख से उच्चरित सार्थक ध्वनियों की उत्पत्ति, प्रसार और श्रवण का अध्ययन किया जाता है। इसमें मनुष्य मुख से उच्चारित ध्वनियाँ और उनका उच्चारण स्थान और प्रयत्न के आधार पर वर्गीकरण और अध्ययन किया जता है, साथ ही स्वर ध्वनियाँ और व्यंजन ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। उनके प्रयोग से संबंधित नियमों को बताया जाता है। ध्वनिविज्ञान की तीन शाखाएँ हैं जिसमें औच्चारिकी शाखा, संचारिकी शाखा, और श्रौतिकी शाखा का समावेश है। औच्चारिकी शाखा- ध्वनियों के उच्चारण से संबंधित है। इसमें ध्वनियों का उच्चारण मुख-विवर से किस प्रकार होता है, उच्चारण स्थान और उच्चारण प्रयत्न के आधार पर स्वर ध्वनियाँ और व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण का अध्ययन किया जाता है। जैसे- ‘अ, आ,इ, ई,’ आदि स्वर ध्वनियाँ हैं और ‘क, ख, ग, घ,’ आदि व्यंजन ध्वनियाँ हैं स्वर धनियों के उच्चारण में वायु मुख विवर से निर्बाध रूप से बाहर निकलती है, तो वही दूसरी ओर व्यंजनों के उच्चारण में वायु को मुख विवर में बाधा आती है।
रूपविज्ञान (Morphology)– इस विज्ञान में ध्वनियों से मिलकर शब्द कैसे बनते हैं, इसका अध्ययन किया जाता हैं। इसमें देखते हैं कि भाषा में ध्वनियाँ मिलकर शब्द कैसे बनाती है। इन निरर्थक ध्वनियों से अर्थवान शब्द कैसे बनते हैं। धातुओं में उपसर्ग और प्रत्यय लगाने से नए शब्द किस प्रकार बनते हैं, आदि का अध्ययन किया जाता है। रूपविज्ञान में अक्षर, शब्द और पद क्या है यह भी देखते हैं। जैसे- ‘क,’ ‘म,’ ‘ल’, एक-एक अक्षर हैं और इनसे शब्द बनेगा ‘कमल’ जो हमें कोश में मिलेगा और एक पुष्प विशेष का नाम बताएगा, जब इस शब्द का प्रयोग हम वाक्य में करेंगे तो वह शब्द ‘पद’ कहलाएगा. रूपविज्ञान में रूप और रूपिम के अंतर को भी देखा जाता है साथ ही संरूपों का भी अध्ययन होता है। जैसे- ‘लड़की’ शब्द एक रूप है, परंतु इसमें ‘लड़का+ई’ प्रत्यय जुड़े हैं जो अपने आप में मुक्त और बद्ध रूपिम है।
वाक्यविज्ञान (Syntax)- वाक्यविज्ञान में शब्दों से मिलकर वाक्य किस प्रकार से बनते हैं और उनका भाषा में प्रयोग कैसे होता है, इसका अध्ययन किया जाता है। वाक्य की आतंरिक संरचना और बाह्य संरचना को यहाँ देखा जाता है। साथ ही उनके अर्थ को भी देखा जाता है और उनके प्रयोग से संबंधित नियमों का अध्ययन भी किया जाता है। वाक्यविज्ञान में वाक्य के प्रकार को अर्थ और संरचना के आधार पर भी देखते हैं। व्याकरण की दृष्टि से व्याकरणिक शुद्धता भी वाक्यविज्ञान में देखी जाती है। रचना के आधार पर वाक्य के प्रकार निम्नवत हैं- सरल वाक्य, मिश्र वाक्य तथा संयुक्त वाक्य।
- सरल वाक्य- सरलवाक्य में एक ही क्रिया होती है। सरलवाक्य को उपवाक्य भी कह सकते है। जैसे- राम घर जाता है। यह एक सरल वाक्य है।
- मिश्र वाक्य – मिश्रवाक्य में कम से कम दो उपवाक्य होते हैं, जिसमें एक मुख्य और दूसरा उसपर आश्रित होता है, जैसे- लडके ने कहा कि मैं कल दिल्ली जाऊंगा. इस वाक्य में पहला वाक्य ‘लड़के ने कहा.’ मुख्य है, तो दूसरा वाक्य ‘मैं कल दिल्ली जाऊंगा.’ प्रथम वाक्य पर आश्रित है।
- संयुक्त वाक्य – संयुक्त वाक्यों में कम से कम दो सरल वाक्य होते हैं, जिसमें दोनों वाक्य स्वतंत्र होते हैं, यानि वे एक दूसरे पर आश्रित नहीं होते हैं। जैसे- मोहन घर गया और सो गया. इसमें मोहन घर गया और मोहन सो गया दोनों स्वतंत्र वाक्य है।
प्रोक्ति (Discourse)- प्रोक्तिविज्ञान, भाषाविज्ञान का एक सैद्धांतिक पक्ष है, जिसमें भाषा को वाक्य से ऊपर के स्तर पर देखा जाता है। भाषा में एक वाक्य दूसरे वाक्य से किस प्रकार संबंधित है। आपस में वाक्य मिलकर किस तरह पाठ बनाते हैं। पाठ भाषा के निश्चित संप्रेशनात्मक प्रकार्य को कहते. यानि कोई भी पाठ तब तक पाठ नही कहलाएगा जब तक उससे पूर्ण संप्रेषण न हो. कुछ भाषाविद पाठ और प्रोक्ति को अलग-अलग मानते हैं तो कुछ पाठ और प्रोक्ति को एक ही मानते हैं। वैसे देखा जाए तो पाठ भाषा के उत्पादन और उसके निर्वाचन पर बल देता है और प्रोक्ति अर्थ निर्धारण की प्रक्रिया और उसके विश्लेषण पर बल देती है। प्रोक्ति विश्लेषण में हम भाषा के पाठगत संदर्भ (endophora)और पाठ बाह्य संदर्भों(exophora) को देखते हैं। पाठगत संदर्भ वे होते हैं, जो पाठ के भीतर की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हैं तो दूसरी तरफ पाठ बाह्य संदर्भ पाठ में किसी वाह्य वस्तु की उपस्थिति को बताने का कार्य करते हैं। पाठगत संदर्भों में संसक्ति (cohesion) और संगति (coherence) का समावेश हैं।
अर्थविज्ञान (Semantics)– अर्थविज्ञान, सैद्धांतिक भाषाविज्ञान का वह पक्ष है, जिसमें भाषा के अर्थ पक्ष का अध्ययन किया जाता है। यहाँ पर शब्द और अर्थ का संबंध, वाक्य और अर्थ का संबंध आदि का अध्ययन होता है। अर्थ के बिना भाषा का महत्त्व न के बराबर होता है। शब्द और अर्थ के संबंध में पर्यायी अर्थ वाले शब्द, विलोम अर्थ वाले शब्द, समनामता वाले शब्द, अवनामता वाले शब्द तथा अर्थ विस्तार, अर्थ संकोच और अर्थादेश का अध्ययन भी किया जाता है। अर्थ ग्रहण करने में जो समस्याएँ आती है उनका भी अध्ययन किया जाता है। वाक्य और अर्थ के संबंध में अनुलग्नता, पूर्वमान्यता, खण्डीकरण, पर्ययता आदि. सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।
- अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान (Applied Linguistics)– अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान, भाषाविज्ञान का वह पक्ष है, जिसमें भाषा का प्रयोग समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में किया जाता है या कह सकते है कि भाषा से संबंधित कार्य, जो अलग- अलग क्षेत्रों में किए जाते हैं वे सारे अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान में आते हैं।
कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान (Computational Linguistics)– यह भाषाविज्ञान का वह अनुप्रयोगात्मक पक्ष है, जिसमें भाषा का प्रयोग कंप्यूटर के माध्यम से करके ऐसे उपकरणों का निर्माण करना है, जो मनुष्य को बेहतर सुविधा प्रदान कर सके, जिसके प्रयोग से मनुष्य को समाज में भाषा से संबंधित कार्यों के लिए परेशानी न हो। कंप्यूटेशनल भाषाविज्ञान में कंप्यूटर के माध्यम से भाषा का विकास करने का कार्य किया जाता है। इसके लिए कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की सहायता ली जाती है और मशीनी अनुवाद, वाक् से पाठ, पाठ से वाक् आदि उपकरणों का निर्माण किया जाता है। मशीनी अनुवाद का क्षेत्र व्यापक है। इसमे स्त्रोत भाषा से लक्ष भाषा में अनुवाद का कार्य किया जाता है, जो मशीन की सहायता से होता है।
अनुवाद (Translation)– अनुवाद अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान का वह पक्ष है जिसमें एक भाषा से दूसरी भाषा में पाठ का स्थानांतरण करना है। अनुवाद में स्रोत-भाषा से लक्ष भाषा में अर्थ का स्थानांतरण भी किया जाता है, जिससे एक भाषा समुदाय का व्यक्ति अन्य भाषाओँ में जो ज्ञान है उसे अपनी भाषा के माध्यम से ग्रहण कर सके. अनुवाद की प्रक्रिया को विद्वानों ने इस प्रकार से स्पष्ट किया है। स्रोत-भाषा ….. विश्लेषण……. अंतरण……………पुनर्गठन…….लक्ष्य-भाषा।
कोशविज्ञान (Lexicology)– कोशविज्ञान भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के अर्थों को स्पष्ट करता है। इसमें पर्यायी शब्द, विरुद्धार्थी शब्द आदि का समावेश होता है। कोशविज्ञान में एक भाषा कोश, द्विभाषी कोश और बहुभाषी कोश आदि का निर्माण किया जाता है, जो एक भाषा के शब्दों के लिए दूसरी भाषा में अर्थ को प्रतिपादित करता है।
समाजभाषाविज्ञान (Sociolinguistics)– भाषा समाज का एक अभिन्न अंग है और समाज के बिना भाषा अधूरी है। मनुष्य भाषा का प्रयोग समाज के बाहर नहीं करता. यदि समाज नहीं रहेगा तो भाषा का भी कोई अस्तित्त्व नहीं रहेगा. मनुष्य समाज में भाषा का प्रयोग आयु में छोटे, बड़े और बराबर के लोगों से अलग-अलग भातिं से करता है। वह घर, बाजार और दफ्तर में भी भाषा का प्रयोग श्रोता के अनुरूप करता है, समाज भाषाविज्ञान में इन्ही बातों का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है।
भाषाशिक्षण (Language Teaching)– भाषाशिक्षण में भाषा के अध्ययन अध्यापन से संबंधित कार्य को किस प्रकार से आसन बनाया जा सकता है इसका अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रथम भाषा, द्वितीय भाषा, और अन्य भाषा शिक्षण, व्यतिरेकी विश्लेषण और त्रुटी विश्लेषण आदि का अध्ययन होता है। साथ ही इसमें व्यक्ति बोली, बोली, विभाषा और भाषा का भी विचार करते हैं।
शैलीविज्ञान (Stylistics)– प्रत्येक साहित्यकार अपनी अनुभूति को किसी-न-किसी ढंग या पद्धति का निर्धारण गुणों के आधार पर किया जाता है। इस निर्धारण को रीति या शैली कहते है। बीसवीं सदी के आरम्भ में जेनेवा स्कूल के भाषावैज्ञानिक चाल्र्स बेली ने शैली के भाषावैज्ञानिक विवेचन की बात उठायी। उनके मतानुसार वैयक्तिक भाषा में भावात्मक निहित रहती है, जो विशिष्ट परिस्थितियों में सहज भाव से मनुष्य के उच्चारणोपयोगी अवयवों से निससृत होती है। शैली विज्ञान में शैली का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। यह विज्ञान काव्यशास्त्र के पर्याप्त निकट है। भारतीय साहित्यशास्त्र के रीति, वक्रोक्ति और ध्वनि सम्प्रदाय इसमें प्रमुखतया आते हैं और शेष रस, अलंकार तथा वक्रो भी अपनी भूमिका निभाते हैं। पाश्चात काव्यशास्त्र में ‘स्टाइल’ के लक्षण भी आधुनिक विश्लेषण में अपना महत्व जमाये हुए हैं। भाषा के दो विशिष्ट रूप होते हैं-रूप और अर्थ।रीति रूप के बारे में कहती है, ध्वनि अर्थ के बारे में वक्रोक्ति इन दोनों को साथ लेकर चलती है। ‘स्टाइल’ भी कुछ-कुछ रूप और अर्थ के गुणों को अपने में संजोए हुए है। इस विज्ञान की दृष्टि से ध्वनि,रूप,शब्द,वाक्य आदि पर विचार किया जाता है जैसे-
इन पाँच उपभेदों से साहित्य-रचना या बातचीत में प्रभाव आदि की दृष्टि से किस प्रकार की धविनयों, रूपों, शब्दों, वाक्यों या अर्थों को छोड़ा जाए और किन्हें प्रयुक्त किया जाए। इस तरह इसमें चयन-पद्धति एवं उसके आधारभूत सिद्धांतों पर विचार किया जाता है। इस प्रकार का विचार साहित्यिक भाषा के संबंध में तो होता ही है,रोज बोली जाने बोली जानेवाली भाषा में भी वक्ता के सामाजिक स्तर,संदर्भ या विषय आदि की दृष्टि से रूपों या शब्दों आदि के चयन में पर्याप्त अन्तर पड़ता है। इसी प्रकार विशिष्ट प्रभाव के लिए सामान्य भाषा में परिवर्तन करके भी भाषा को आकर्षक बनाया जाता है।
व्युत्पत्ति विज्ञान (Etymology)- व्युत्पत्ति-विज्ञान में शब्दों के मूल का अध्ययन किया जाता है। यह ध्वनिविज्ञान, रूप-विज्ञान, शब्द-विज्ञान, अर्थ-विज्ञान का सम्मिलित योग है। इसके लिए अँग्रेजी शब्द का प्रयोग किया जाता है। यह यूनानी भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है etymonऔर logia। etymon का अर्थ है- किसी भाषा का शाब्दिक अर्थ है उसकी उत्पत्ति के अनुसार तथा logia का अर्थ है लेखा-जोखा अर्थात् किसी शब्द का उसकी व्युत्पत्ति के अनुसार लेखा-जोखा ही एटिमॅलाजी है। वेब्स्टर कोश ने इसके अर्थ को परिभाषित करते हुए लिखा है- “The history of linguistic form (as a word) shown by tracing its development since its earliest recorded occurrence in the language where it is found”
सांख्यिकी भाषाविज्ञान (Statistical Linguistics) – भाषा विज्ञान की इस शाखा में सांख्यिकी के आधार पर भाषा के विभिन्न पक्षों पर विचार किया जाता है। सांख्यिकी का प्रयोग ध्वनि, शब्द-रूप तथा रचना तीनों क्षेत्रों में किया जाता है। स्वनग्राम के स्तर पर स्वरावृत्ति, व्यंजनावृत्ति, संयुक्त स्वरावृत्ति, स्वर-व्यंजन के विविध संयोग लिए जाते हैं। इस पद्धति में शब्दों की आवृत्ति, वाक्य-रचना,विराम-चिह्नों के प्रयोग, वाक्यों में प्रयुक्त शब्दों की संख्या आदि सभी से काम लिया जाता है।
मनोभाषाविज्ञान (Psycho Linguistics) – मनोभाषाविज्ञान भाषाविज्ञान की वह शाखा है, जिसमें भाषा की उत्पत्ति मन में कैसे होती है? भाषा केवल वार्तालाप का ही माध्यम है? व्यक्ति स्वलाप के लिए भी भाषा का ही प्रयोग करता है। मनुष्य समाज में भाषा का व्यवहार करने से पहले उसकी मानसिक स्थिति क्या होती है ? मस्तिष्क में भाषा व्यवस्था के नियम कैसे काम करते हैं? भाषा से संबंधित दोष या भाषिक रोग जैसे- वाचाघात (aphasia), अपठन (dyslexia), लेखन वैकल्य (dysgraphia), मानसिक मंदन(mental retardation), प्रमस्तिष्कीय घात (Cerebral palsy), वाग्दोष (speech disorder), आदि का अध्ययन किया जाता है।
जैविक भाषाविज्ञान- (Bio-Linguistics) – भाषा के विकास और प्रयोग के लिए कौन-सी जैविक परिस्थितियाँ जिम्मेदार है। समाज में भाषा का विकास और मनुष्य में भाषा विकास की क्षमता आदि का अध्ययन इस शाखा में करते हैं। सन २००० में जेनाकिंग नाकाम भाषाविद ने एक किताब प्रकाशित की जिसका नाम Bio Linguistics था, उसी से इस शाखा का आरंभ मन जाता है। यह क्षेत्र भाषा क्या है? भाषा क्षमता कैसे प्राप्त होती है? भाषा व्यवहार क्या है?भाषा के पीछे कौन-सी स्नायविक प्रक्रिया कार्य करती है? मानव जाति में भाषा का विकास कैसे हुआ? आदि बिंदुओं पर प्रकाश डालती है। यह भाषाविज्ञान की नई शाखाओं में से एक हैं, जिसपर अभी बहुत कार्य होना बाकी है।
नृभाषाविज्ञान (Anthropological Linguistics) – नृभाषाविज्ञान, भाषाविज्ञान का वह अनुप्रयुक्त क्षेत्र हैं जिसमें मनुष्य जाती की उत्पत्ति से लेकर उसके विकास तक भाषा किस तरह से उस विशेष समुदाय के साथ विकसित हुई या भाषा के आधार पर समुदायों को कैसे बाँटा गया. विशिष्ट समुदाय के लुप्त होने से भाषा किस प्रकार लुप्त हो गई तथा उस समुदाय की संस्कृति, प्रथा, परम्परा, प्रशासकीय कार्य, आदि से संबंधित कार्य इस क्षेत्र में करते हैं।
क्षेत्रीय भाषाविज्ञान (Area Linguistics)– क्षेत्रीय भाषाविज्ञान, भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसमें किसी क्षेत्र विशेष से जुडी भाषा का अध्ययन होता है। इस शाखा को बोली भूगोल या भाषा भूगोल भी कहते हैं। इसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र से जुडी भाषा, बोली का अध्ययन करते हैं। इससे क्षेत्र के अनुसार भाषा का किस प्रकार प्रयोग होता है और भाषा के अंतर्गत बोली जाने वाली बोलियों के क्षेत्र के बारे में पता चलता है।
अन्वेषण भाषाविज्ञान (Forensic Linguistics)- यह भाषाविज्ञान की एक अनुप्रयुक्त शाखा है। जो अपराधिक जगत से जुड़े लोग तथा उनकी भाषा का अध्ययन करती है। इसमें यह देखा जाता है कि अपराधिक मामलों से जुड़े लोग किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते है। वह अपराधिक गतिविधियों में कौनसी कूट भाषा का प्रयोग करते है। इसमें दिए गए बयान तथा फोन से किया हुआ संभाषण, रिकॉर्डर भाषा और अन्य अपराधों से संबंधित लिखित दस्तावेजों का सूक्ष्म वलोकन भाषा विशेषज्ञ द्वारा करते हैं।
क्षेत्र-कार्य भाषविज्ञान (Filed Linguistics) – क्षेत्र कार्य भाषाविज्ञान, भाषाविज्ञान का एक अनुप्रयुक्त पक्ष हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें उन भाषाओँ का अध्ययन किया जाता जो लुप्त होने की कगार पर है या जिनको सरकार द्वारा संरक्षित भाषा घोषित किया है। संसार में ऐसी अनेक भाषाएँ हैं जो लुप्त हो गई है इन्हें मृत भाषा भी कहते हैं। जिनको बोलने वाला कोई व्यक्ति नहीं बचा, कुछ भाषाएँ ऐसी हैं जिन्हें बोलने वाले केवल एक या दो ही व्यक्ति बचे हैं। कुछ भाषाएँ ऐसी हैं एक समुदाय मात्र के लिए सिमित हो गई है, उस समुदाय के ख़त्म होने से वह भाषा भी ख़त्म हो जाएगी. कुछ भाषाएँ ऐसी हैं जिनका प्रयोग केवल कुछ समुदाय ही करते हैं। ऐसी भाषाओँ का डेटा या कॉर्पस रिकार्ड कर उनका संरक्षण करते हैं। और उनको जीवित रखने का कार्य इस क्षेत्र में किया जाता हैं।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि भाषा तथा विज्ञान क्या है? कैसे ध्वनियों से भाषा बनती है? समाज में भाषा का प्रयोग कैसे किया जाता है? मस्तिष्क में भाषा का निर्माण कैसे होता है? इत्यादि का अध्ययन भाषाविज्ञान में करते हैं। भाषा की ध्वनियों का अध्ययन ध्वनि-विज्ञान सिखाता है। भाषा का समाज में विकास कैसे हुआ तथा समाज में भाषा का प्रयोग कैसे होता है यह समाज भाषाविज्ञान से पता चलता है। भाषा की शब्दावली साथ ही भाषा में नए शब्दों का प्रयोग कैसे होता है आदि के बारे में कोशविज्ञान से पता चलता है, जिससे अलग-अलग भाषा में एकभाषीय, द्विभाषी कोष का निर्माण किया जाता है, भाषाशिक्षण यह बताता है कि किस तरह शिक्षा का कार्य करना चाहिए शिक्षा को सरल बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में कौनसे उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए, जिससे शिक्षा का कार्य अधिक प्रभावी माध्यम से हो सके. भाषा का सही प्रयोग किस प्रकार से किया जाए इसके लिए भाषा का व्याकरण नियम बताता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषाविज्ञान के विकास के लिए बहुत संभावनाए है, फिर भी इस विशाल देश में इस विषय के बहुत कम ही जानकर है इसका मुख्य कारण है इस विषय के बारे में जागरूकता कम होने की वजह कह सकते है। बहुत कम ही लोग इस विषय के बारे में जानते है। भाषावैज्ञानिक क्या है यह जानते है। आज के इस आधुनिक युग में कंप्यूटर का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है आज कंप्यूटर के द्वारा कोई भी काम मिनटों में होता है। कंप्यूटर भाषाविज्ञान एक ऐसा विज्ञान है जो कंप्यूटर में कृत्रिम बुद्धि विकास के लिए कार्यरत है इसके लिए भाषा वैज्ञानिक, कंप्यूटर भाषा वैज्ञानिक, कंप्यूटर इंजिनियर आदि मिलकर कार्य कर रहे जो भाषा से संबंधित मशीनी अनुवाद, जोकि अपने आप में बहुत ही बड़ा विकासशील क्षेत्र है, वाक् से पाठ और पाठ से वाक् निर्माण प्रक्रियाँ में भी कार्य हो रहा है जोकि अभी विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है। मोटे तौर पर देखे तो कंप्यूटर में भाषा से संबंधित कोई भी कार्य जो कम्पूटर पर किया जाता वह भाषा वैज्ञानिक के बिना संभव नहीं है। अदि क्षेत्र में भाषा विज्ञान को और आगे जाना है साथ ही इसके विकास की बहुत अधिक संभावनाए है। इसलिए मै यहाँ यह कहना चाहूँगा कि आने वाले कुछ सालों में भाषाविज्ञान एक नयी उचाई को छुएगा और इसका अध्ययन और विकास जिस प्रकार यूरोपीय देशों में हो रहा है भारत में भी होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि आनेवाले दिनों में भाषाविज्ञान का भविष्य बहुत अधिक उज्ज्वल है।
संदर्भ ग्रंथ सूची
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