Indexed by TDIL, Govt. of India

ISSN: 2231-4989

उत्तर-आधुनिकता की पश्चिमी और हमारी अवधारणा में अंतर है।

आदिवासियों का ज्ञान उनके जीवन जीने की कला है।

कभी भी अँग्रेजी भारतीय भाषा नहीं बन सकती।

भाषा, प्रौद्योगिकी और साहित्य का समन्वय जरूरी है।

भाषाएँ सामाजिक समानता में सहायक होती हैं।

हिंदी वालों ने कोशकारों को मज़दूरों की श्रेणी में बैठा दिया है।

भाषा-प्रौद्योगिकी जुनून का विषय है।

बोलियाँ ही हिंदी की मूल पूँजी हैं।