भाषा-प्रौद्योगिकी जुनून का विषय है।

कंप्यूटर के भाषिक अनुप्रयोग पुस्तक के लेखक विजय कुमार मल्होत्रा, भारतीय रेल में वर्षों तक कार्य करने के बाद भारतीय भाषाओं के प्रति अपने जुनून के कारण अब BhashaIndia टीम के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। इस साक्षात्कार में इनके के योगदान को और Office XP हिंदी के विकास में उनके सहयोग को उजागर किया गया है।

Vijay Kumar Malhotra

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: भाषाओं के प्रति आपकी रुचि कब जगी ?

मल्होत्रा: भाषाओं के प्रति तो मेरी रुचि तब से है, जब मैं गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में संस्कृत और हिंदी विषयों के साथ आरंभिक शिक्षा प्राप्त कर रहा था, लेकिन इसमें परिपक्वता तब आई, जब मैं हिंदी पढ़ाने के लिए यॉर्क विश्वविद्यालय, यू.के. पहुँचा और मुझे ब्रिटिश, भारतीय और अफ़्रीका जैसे विभिन्न महाद्वीपों के विद्यार्थियों को विदेशी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने का दायित्व सौंपा गया. पहली बार मुझे महसूस हुआ कि विदेशी भाषा शिक्षण में भाषाविज्ञान और भाषा प्रौद्योगिकी की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी के किस पक्ष ने आपमें जुनून की हद तक लगाव पैदा किया ?

मल्होत्रा: जब भी मैं भाषाओं के मूल की ओर दृष्टि डालता हूँ तो विश्व-भर की भाषाओं में दो स्पष्ट लक्षण दिखाई पड़ते हैं: सार्वभौमिक लक्षण और भाषा-विशिष्ट लक्षण. सार्वभौमिक लक्षण वे हैं जो हिंदी, तमिल, अंग्रेज़ी, चीनी और अरबी जैसी विभिन्न भाषा-परिवारों से जुड़ी भाषाओं में भी समान रूप से पाए जाते हैं. उदाहरण के लिए, ‘खाया’ एक सकर्मक क्रिया है, जो खाए जाने के लिए एक कर्म और खाना क्रिया संपन्न करने के लिए एक कर्ता की आकांक्षा करती है और साथ ही यह भी अपेक्षा करती है कि उसका कर्ता सजीव हो. इस क्रिया की वृक्ष संरचना में ये सभी सार्वभौमिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं.इसप्रकार इसकी सकर्मकता विश्व की सभी भाषाओं में समान है, लेकिन कर्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग हिंदी का भाषा-विशिष्ट लक्षण है. कुछ ऐसे भी लक्षण होते हैं जो भाषा-वर्ग विशिष्ट होते हैं. उदाहरण के लिए, एक विशेष वाक्य साँचे में कर्ता के साथ ‘को’ का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में समान रूप से पाया जाता है; जैसे, हिंदी में ‘राम को बुखार है’, मराठी में ‘रामला ताप आहे’ ,तमिल में, ‘रामक्कु ज्वरम्’ ,मलयालम में ‘ रामन्नु पनियानु ‘ ,कन्नड़ में ‘रामनिगे ज्वर दिगे’ , बँगला में ‘रामेर ताप आछे’ और अंग्रेज़ी में इसका अनुवाद होगा, ‘Ram has a fever’. अंग्रेज़ी में आप देखेंगे कि ‘को’ का वाचक कोई परसर्ग या पूर्वसर्ग नहीं है. इससे स्पष्ट होता है कि भारत एक भाषिक क्षेत्र है. यदि हम इन लक्षणों के विश्लेषण के लिए भाषा प्रौद्योगिकी का उपयोग करें तो हम भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर साधित स्वयं भाषा शिक्षक, ऑटो-करेक्ट, ग्रामर चैकर और मशीनी अनुवाद जैसे अत्यंत जटिल भाषिक उपकरणों का विकास भी कर सकते हैं. यही कारण है कि भाषा और भाषा प्रौद्योगिकी ने मुझमें जुनून की हद तक लगाव पैदा कर दिया है..

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: क्या भाषाविज्ञान के प्रति आपके लगाव में आपके परिवार की पृष्ठभूमि की भी कोई भूमिका रही है ?

मल्होत्रा: मेरा संबंध प्रकाशक परिवार से तो है, लेकिन भाषाविज्ञान में मेरी रुचि तब ज़्यादा बढ़ी, जब सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में हिंदी को कार्यान्वित करते हुए मुझे अनेक चुनौतियों का सामना करना पडा.यद्यपि 14 वर्षों तक गुरुकुल में हिंदी और संस्कृत की विशेष शिक्षा के कारण भाषाओं के प्रति मेरा रुझान स्वाभाविक ही रहा, लेकिन यू.के. में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाते समय मुझे भाषाविज्ञान का वास्तविक महत्व समझ में आया और भाषाविज्ञान में मेरी रुचि बढ़ने लगी.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: आखिर वह क्या वजह थी, जिसके कारण आपने भारतीय रेल से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और अपने पसंदीदा जुनून के काम में जुट गए ?

मल्होत्रा: भारतीय रेल विश्व से सबसे बड़े संगठनों में से एक है, जिसमें 16 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं और उनका सीधा संपर्क आम आदमी से रहता है. निदेशक (राजभाषा) के रूप में मेरा यह दायित्व था कि मैं भारतीय रेल के दैनंदिन कार्यों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दूँ.इस दायित्व के कारण मुझे यह अवसर मिला कि मैं देश-भर में विभिन्न स्तरों पर हिंदी को कार्यान्वित करने के लिए नए-नए उपायों की खोज करूँ.मैं इस बात से भी बेखबर नहीं था कि दक्षिणी राज्यों में हिंदी के प्रति अनुकूल वातावरण नहीं है. इसलिए मैंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृति और प्रौद्योगिकी का विशेष रूप से उपयोग करने का निश्चय किया. हमने नाटक की विधा का उपयोग अहिंदीभाषी क्षेत्रों में किया और क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग जन-संपर्क के सभी स्थलों पर शुरू कर दिया.रेलवे के सभी अनुप्रयोगों में कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग से काफ़ी सफलता मिलने लगी. विशेष रूप से आरक्षण चार्ट में हिंदी के उपयोग को जनता ने काफ़ी पसंद किया, लेकिन आरंभिक सफलता के बावजूद मुझे लगा कि अभी भी बाज़ार में स्वयं भाषा शिक्षक, ऑटो-करेक्ट,ग्रामर चैकर और मशीनी अनुवाद जैसे भाषिक उपकरणों का बहुत अभाव है और यदि मुझे अवसर मिला तो मैं अपना शेष जीवन भाषा (हिंदी) और प्रौद्योगिकी के बीच के अंतराल को यथासंभव कम करने के लिए बिताना चाहूँगा.संयोगवश, माइक्रोसॉफ़्ट ने मुझे यह अवसर प्रदान किया और मैं अपने पसंदीदा जुनून के काम में जुट गया.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: आपने हिंदी कंप्यूटिंग को निचले स्तर पर पहुँचाने के लिए क्या पहल की ?

मल्होत्रा: ‘क’ क्षेत्र (अर्थात् हिंदीभाषी राज्य) और ‘ख’ क्षेत्र (अर्थात् महाराष्ट्र, पंजाब और गुजरात) में निचले स्तर पर कार्यरत भारतीय रेल के अधिकांश कर्मचारी अच्छी तरह से हिंदी जानते हैं और यह चाहते भी हैं कि रेलवे के दैनंदिन कामकाज में अंग्रेज़ी के स्थान पर हिंदी का प्रयोग जल्दी से जल्दी शुरू हो जाए. इसलिए आरंभ में हमें निचले स्तर पर आंशिक सफलता तो मिली, लेकिन रेलवे में व्यापक कंप्यूटरीकरण के बाद वे तमाम कार्य हिंदीभाषी क्षेत्रों में भी फिर से अंग्रेज़ी में शुरू हो गए, जिन्हें सफलतापूर्वक हिंदी में किया जाने लगा था,जैसे,आरक्षण चार्ट, वेतन बिल, पत्राचार, अधिसूचनाएँ, निविदा-करार आदि. इसका मुख्य कारण था, कंप्यूटरों में हिंदी-सुविधा का अभाव. अब चुनौती यह थी कि कंप्यूटर पर हिंदी में इन तमाम अनुप्रयोगों को कैसे संपन्न किया जाए. रेलों के महाप्रबंधकों के साथ परामर्श करके प्राथमिकता के आधार पर यह तय किया गया कि शुरू में उन अनुप्रयोगों को लिया जाए, जिनका जनता और निचले स्तर के कर्मचारी से सीधा संबंध है, जैसे, आरक्षण चार्ट,रेलवे टिकट,फ़ॉर्म, वेतन बिल, परिपत्र, गज़ट अधिसूचनाएँ, निविदा-करार और श्रेणी 3 और 4 के कर्मचारियों के परिचय पत्र आदि. चूँकि उस समय कंप्यूटर के अनुप्रयोग शब्द संसाधन तक ही सीमित थे, इसलिए प्रोप्राइटरी सिस्टम पर तैयार किए जाने वाले आरक्षण चार्ट, कंप्यूटरीकृत रेलवे टिकट और वेतन बिल हिंदी में बनाने में बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.हिंदी में सॉर्टिंग की सुविधा न होने के कारण वरीयता सूची और अनुक्रमणिका तो हिंदी में तैयार ही नहीं की जा सकती थी. भारतीय रेल में प्रयुक्त विभिन्न सिस्टमों के बीच कॉम्पेटिबिलिटी न होने के कारण भी हिंदी का प्रयोग सीमित रूप में ही किया जा सकता था. भारतीय भाषाओं में युनिकोड और XML सिस्टम के आगमन के बाद यह आशा की जाने लगी है कि अब हिंदी में निचले स्तर पर भी हर प्रकार के अनुप्रयोग के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जा सकेगा.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: इस प्रकार की पहल के प्रति खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही?

मल्होत्रा: हिंदी में आरक्षण चार्ट जैसी पहल का ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बहुत स्वागत हुआ. चूँकि यह सुविधा सारे देश में सुलभ की गई थी, इसलिए देश भर के यात्रियों ने इसका अभूतपूर्व स्वागत किया. अहिंदीभाषी क्षेत्रों में हमारी कामयाबी का राज़ था, हिंदी और अंग्रेज़ी के साथ-साथ संबंधित क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग और यह संभव हो पाया था, कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग के कारण.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: क्या आपको लगता है कि हिंदी कंप्यूटिंग के सफल प्रयोग से अन्य भारतीय भाषाओं की कंप्यूटिंग पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ा है ?

मल्होत्रा: चूँकि अधिकांश भारतीय लिपियों का उद्गम ब्राह्मी लिपि से ही हुआ है, इसलिए इनकी ध्वन्यात्मक संरचना में काफ़ी समानताएँ है. भारतीय भाषाओं पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने इस समानता को पहचाना और इस आधार पर सभी भारतीय भाषाओं के लिए INSCRIPT नामक समान कुंजीपटल का विकास किया. ISCII सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान मानक बना और अब इसे युनिकोड में भी शामिल कर लिया गया है. विविधता में एकता की बात भारतीय लिपियों और भाषाओं पर भी सही साबित हुई. इसलिए मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ कि हिंदी कंप्यूटिंग के सफल प्रयोग से अन्य भाषाओं की कंप्यूटिंग पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ा है.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: आप पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में हिंदी पार्सर और यॉर्क विश्वविद्यालय में हिंदी थिसॉरस की परियोजनाओं से जुड़े रहे हैं.कृपया इन परियोजनाओं के बारे में भी हमें कुछ बताएँ ?

मल्होत्रा: सन् 1984 में, यॉर्क विश्वविद्यालय,यू.के.में एक सिमेस्टर में हिंदी पढ़ाने के लिए मुझे नफ़ील्ड फ़ैलोशिप मिली. अध्यापन के साथ-साथ मुझे हिंदी थिसॉरस का प्रोटोटाइप बनाने के लिए भी कहा गया. यद्यपि यह परियोजना अभिकलनात्मक भाषाविज्ञान (Computational Linguistics) से संबंधित थी, लेकिन मुझे इसके कंप्यूटर संबंधी पक्ष की कतई जानकारी नहीं थी.इसीप्रकार मुझे भाषाविज्ञान का औपचारिक प्रशिक्षण भी नहीं मिला था. इसलिए मैंने मैनुअल रूप में ही थिसॉरस पर काम करने का संकल्प किया, लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने मेरे लिए कंप्यूटर के आरंभिक प्रशिक्षण की व्यवस्था कर दी और मुझे समनुक्रमणिका (Concordance) और अनुक्रमणिका (Index) तैयार करने के लिए ऑक्सफ़ोर्ड मैनुअल कंकॉर्डेन्स का उपयोग करने की सलाह दी. यद्यपि मूल शब्दों के चुनाव के लिए कॉर्पोरा का उपयोग अधिक आदर्श उपाय होता, लेकिन समय और अभिकलनात्मक भाषाविज्ञान संबंधी ज्ञान और कौशल की कमी के कारण मैंने केवल 2000 मूल शब्दों का चुनाव किया और उनके पर्याय और विलोमार्थी शब्दों की खोज करने लगा. यह भी निश्चय किया गया कि इन सभी शब्दों को समनुक्रमणिका के रूप में 14 आर्थी क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाए. इस प्रकार हमने हिंदी थिसॉरस का एक छोटा-सा प्रोटोटाइप विकसित कर लिया. सन् 1996 में, पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय के कंप्यूटर विज्ञान विभाग ने मुझे हिंदी पार्सर के विकास के लिए अपने NLP ग्रुप को सहयोग करने के लिए निमंत्रित किया. मेरे लिए यह अत्यंत गौरव का विषय था, क्योंकि यह निमंत्रण मुझे एक ऐसे विश्वविद्यालय से मिला था,जिसने ENIAC नामक विश्व के पहले कंप्यूटर का विकास किया था. TAG (Tree Adjoining Grammar) अर्थात् वृक्ष संलग्न व्याकरण मेरी सबसे अधिक पसंदीदा कलन-विधि थी और इसका विकास भी इसी विश्वविद्यालय के कंप्यूटर विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और प्रोफ़ेसर अरविंद जोशी ने किया था. मेरी भी यह धारणा थी कि TAG हिंदी और अंग्रेज़ी जैसी भिन्न वाक्य संरचना वाली भाषाओं के पदनिरूपण (पार्सिंग) के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है. एक ओर अंग्रेज़ी स्थिर शब्द क्रम की भाषा है, वहीं हिंदी इसके ठीक विपरीत अपेक्षाकृत मुक्त शब्द क्रम की भाषा है .उदाहरण के लिए यदि आप अंग्रेज़ी के इस वाक्य के शब्द क्रम को बदल दें तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है अर्थात् अर्थ पूरी तरह से बदल जाएगा. “Ram (कर्ता) killed (क्रिया) Ravan (कर्म)” का क्रम बदलकर इस प्रकार कर दें, “Ravan (कर्ता) killed (क्रिया) Ram (कर्म)” तो अर्थ पूरी तरह से बदल जाता है, लेकिन हिंदी में यदि क्रम बदल भी जाए तो भी अर्थ ज्यों का त्यों ही रहेगा. “राम (कर्ता) ने रावण (कर्म) को मारा (क्रिया)”. “रावण (कर्म) को राम (कर्ता) ने मारा (क्रिया)”. TAG में अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों ही भाषाओं का पदनिरूपण क्रिया के आधार पर किया जाता है और अंग्रेज़ी को SVO के रूप में और हिंदी को SOV के रूप में पदनिरूपित कर देता है. इस परियोजना का प्रयोग-क्षेत्र प्रशासनिक भाषा था. प्रशासनिक भाषा के लक्षण सभी भाषाओं में लगभग समान हैं. उदाहरण के लिए प्रशासनिक भाषा में कर्मवाच्यपरक भूतकालिक कृदंतों का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है. “Mr.Verma has been transferred from Delhi to Mumbai with effect from March1, 2005 and posted as Director (Operations)”.किंतु हिंदी का भाषाविशिष्ट लक्षण यह है कि इसमें कर्ता के साथ आदरसूचक शब्द श्री या जी लगाने से इसका प्रयोग बहुवचन में किया जाता है और तदनुसार क्रिया भी बहुवचन में बदल जाती है. श्री वर्मा निदेशक हो गए (बहुवचन). इन उदाहरणों से मैं यही स्पष्ट करना चाहता था कि पार्सर बनाते समय यदि भाषा-विशिष्ट लक्षणों पर ध्यान नहीं दिया गया तो मशीनी अनुवाद जैसे भाषिक उपकरणों का सफलतापूर्वक विकास नहीं किया जा सकता. यह पार्सर भाषा-विशिष्ट लक्षणों के विश्लेषण के लिए बहुत उपयुक्त पाया गया.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: आपने Windows XP के हिंदी अनुवाद में सहयोग किया है. अनुवाद की इस प्रक्रिया में Windows XP की बहुभाषी सपोर्ट से आपको, विशेषकर जटिल तकनीकी शब्दों के अनुवाद में कितनी मदद मिली?

मल्होत्रा: इस प्रक्रिया में मेरा काम विभिन्न वेंडरों द्वारा अनूदित पाठ का समन्वय और परिमार्जन था. अनुवाद की प्रक्रिया शुरू कराने से पहले मैंने कुछ सिद्धांत बनाए और रेडमंड से उस पर अनुमोदन प्राप्त किया,ताकि पूरे सिस्टम के दौरान एकरूपता का निर्वाह किया जा सके.तदनुसार,जटिल शब्दों को दो भागों में विभाजित किया गया. संकल्पनामूलक शब्द और वस्तुसूचक शब्द.आम तौर पर संकल्पनामूलक शब्दों के अनेक व्युत्पन्न रूप होते हैं. इसलिए उनका अनुवाद करना ही पड़ता है. जैसे, “Format >स्वरूप” का व्युत्पन्न रूप है, “Formatted> स्वरूपित” और Print >मुद्रण का व्युत्पन्न रूप है Printed >मुद्रित,लेकिन वस्तुसूचक शब्दों का आम तौर पर हिंदी में लिप्यंतरण ही किया गया, क्योंकि वे वस्तुसूचक शब्दों के रूप में लोगों में काफ़ी प्रचलित हो गए थे और उनके व्युत्पन्न रूप भी कम ही होते हैं. जैसे,फ़ाइल, कंप्यूटर, विंडो, ऑफ़िस, बुलेट, फ़ॉन्ट आदि. प्रचलन के कारण कुछ संक्षिप्त शब्दों का भी हिंदी में लिप्यंतरण ही किया गया. जैसे, ROM का लिप्यंतरण रॉम किया गया. किंतु ऐसा करते समय काफ़ी सावधानी की ज़रूरत थी. हिंदी में अंग्रेज़ी की ऑ ध्वनि के लिए बिना अनुस्वार के अर्धचंद्र का विशेष रूप से उपयोग किया गया. यदि ऐसा न किया गया होता तो रॉम को हिंदी में राम ही लिख दिया जाता, जो निश्चय ही हास्यास्पद और भ्रामक होता. हिंदी में यों भी ऑ लिखने का रिवाज कम है. लोग अभी भी डॉक्टर को डाक्टर ही लिखते हैं. Windows XP की बहुभाषी सपोर्ट में हिंदी को शामिल करने से भारतीय भाषाओं में अनुवाद की प्रक्रिया सरल हो गई है, लेकिन हमें इससे कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. हमें सब कुछ शुरू से ही शुरू करना पड़ा.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: आपको हिंदी में ऑटो करेक्ट जैसे भाषिक उपकरण विकसित करने की प्रेरणा कैसे मिली ?

मल्होत्रा: हिंदी में Office XP के विभिन्न फ़ीचरों का विश्लेषण करते हुए मैंने पाया कि हिंदी में ऑटो करेक्ट में परिवर्तन और परिवर्धन की काफ़ी गुंजाइश है. आरंभ में मैंने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि ऑटो करेक्ट लिपिविशिष्ट फ़ीचर न होकर भाषाविशिष्ट फ़ीचर है. उदाहरण के लिए, देवनागरी लिपि का प्रयोग हिंदी और मराठी दोनों ही भाषाओं के लिए किया जाता है,लेकिन लिपि एक होने के बावजूद इन दोनों भाषाओं की वर्तनी में काफ़ी फ़र्क है. यहाँ तक कि संस्कृत से लिए गए तत्सम शब्दों की वर्तनी में भी भिन्नता पाई जाती है. उदाहरण के लिए, हिंदी के इकारांत शब्द मराठी में ईकारांत हो जाते हैं. हिंदी का कवि मराठी में कवी हो जाता है. इसलिए दोनों भाषाओं का ऑटो करेक्ट भी अलग- अलग होना चाहिए. इसलिए हिंदी के ऑटो करेक्ट के लिए मैंने हिंदीभाषी क्षेत्रों और अहिंदीभाषी क्षेत्रों से वर्तनी संबंधी त्रुटियों के नमूने इकट्ठे करने शुरू कर दिए और पाया कि मातृभाषा के व्याघात के कारण मराठीभाषी और पंजाबीभाषी की हिंदी संबंधी अशुद्धियों में काफ़ी अंतर है. यदि मराठीभाषी और गुजरातीभाषी हिंदी में छोटी और बड़ी मात्रा की अशुद्धि करते हैं तो दक्षिण भारतीय भाषा भाषी महाप्राण की ध्वनि में अशुद्धि करते हैं. वे भाषा को बाषा और खाना को काना लिखते हैं. यह मातृभाषा व्याघात के कारण होता है. साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि मेरे द्वारा विकसित और संशोधित ऑटो करेक्ट अभी अपलिंक नहीं तक किया जा सका है.

अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी: Bhasha India पोर्टल के हिंदी खंड को लेकर आपकी भावी योजनाएँ क्या हैं?

मल्होत्रा: वर्तमान रूप में Bhasha India पोर्टल का हिंदी खंड मूल अंग्रेज़ी पोर्टल का हिंदी अनुवाद है, इसलिए इसका हिंदी कंप्यूटिंग के असली उपयोगकर्ता से सीधा संवाद नहीं है. हमारी भावी योजना तो यही होगी कि हम मूल रूप से हिंदी में ही सोचने और लिखने वाले कंप्यूटर के उपयोगकर्ताओं से उनकी ही भाषा में सीधा संवाद करें और मैं यह भी नहीं मानकर चलना चाहता कि वे अंग्रेज़ी भी जानते हैं. आज की स्थिति में भी हिंदी के अधिकांश उपयोगकर्ता गैर-मानक फ़ॉन्ट्स का ही उपयोग करते हैं और प्रयुक्त सिस्टमों और फ़ॉन्ट्स में संगतता या कॉम्पेटिबिलिटी न होने के कारण ई-मेल,चैट,टैम्पलेट,ऑटो टेक्स्ट,थिसॉरस,स्पैल चैकर आदि के उपयोग से कतराते हैं. बहुत कम उपयोगकर्ता ऐसे हैं जो हिंदी में Excel, Access ,Power Point आदि का प्रयोग करते हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि सिस्टमों के आरपार हिंदी में किसी सामान्य मानक का उपयोग नहीं किया जाता था. इस दिशा में ISCII एक अच्छी शुरूआत थी, लेकिन विश्वीकरण के इस दौर में हमें एक ऐसे मानक की आवश्यकता है, जिसके अंतर्गत विश्व की सभी भाषाएँ सह-अस्तित्व की भावना के साथ मौजूद हों, भले ही कोई भी प्लेटफ़ॉर्म,फ़ॉन्ट या सिस्टम हो.युनिकोड इन सभी समस्याओं का सही उत्तर और समाधान है.इसलिए हमारा यह प्रयास होगा कि हम अपने उपयोगकर्ताओं को हिंदी कंप्यूटिंग के लिए युनिकोड के लाभों से परिचित कराएँ.हम अपने मंच पर उनकी समस्याओं पर भी विचार करेंगे. हिंदी में नए-नए अनुप्रयोगों को लोकप्रिय बनाने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएँ चलाएँगे.मुझे विश्वास है कि bhashaindia.com का हिंदी खंड हिंदी कंप्यूटिंग का असली मंच सिद्ध होगा.

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