देश की भाषाओं के लिए नई ऊर्जा से काम करने की आवश्यकता

नई दिल्ली स्थित हिंदी भवन में देश के प्रतिष्ठित भाषाविदों, पत्रकारों एवं साहित्य-प्रेमियों ने ‘भाषा, समय एवं संवाद’ पर केंद्रित एक दिवसीय कार्यक्रम में देश की भाषाओं पर विचार-विमर्श किया। इसमें विद्वानों ने देश में भाषाविज्ञान के इतिहास से लेकर उसके वर्तमान स्थिति पर अपने-अपने विचार रखे। कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान के विभागाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के मुख्य संयोजक प्रो. शैलेंद्र कुमार सिंह ने भाषाई अध्ययन में विलियम जोन्स, ब्लूमफील्ड से लेकर चाम्सकी तक के सभी चरणों में भारतीय भाषाई चिंतन के महत्त्व को स्वीकारा गया है। इसके बाद हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के चांसलर एवं मुख्य वक्ता प्रो. कपिल कपूर ने संस्कृत, अँग्रेजी और हिन्दी के संबंधों पर प्रकाश डाला। इसी क्रम में श्रीश चौधुरी ने उपभाषाओं एवं बड़ी भाषाओं के संघर्ष तथा प्रो. अभय मौर्या ने शिक्षा एवं भाषाओं के अंतरसंबंधों पर प्रकाश डाला। आगे वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने हिन्दी की लोकतांत्रिक शक्ति की ओर ध्यान दिलाया। अंत इस सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी ने देश-विदेश में हिन्दी के संदर्भों की ओर ध्यान दिलाया।

अगले सत्र में देश के वरिष्ठ भाषाविद प्रो.उदयनारायण सिंह पर समर्पित 6 पुस्तकों का विमोचन हुआ और इनको उनके जीवन में भाषाविज्ञान को दिए गए योगदानों के लिए सम्मानित किया गया और देश के विभिन्न कोनों से आए लोगों ने प्रो.उदयनारायण सिंह से जुड़े अपने संस्मरण और विचार रखे। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न स्थानों से आए भाषाविदों जैसे प्रो. रमेश चंद्र शर्मा, प्रो. तीस्ता बागची, प्रो. वैष्ना नारंग, प्रो. कविता रस्तोगी, प्रो. इम्तियाज़ हसनैन, प्रो. सुशांत मिश्र, अपरूपा दासगुप्ता, अरुल मोजी, अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी, भूपाल रेड्डी, श्रीपर्णा सहित बड़ी संख्या में लेखक, पत्रकार एवं शोधार्थी शामिल थे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन सह-संयोजक प्रो. प्रसनान्सू ने किया और इस तरह के कार्यक्रम भविष्य में किए जाने पर ज़ोर दिया, ताकि भाषाविज्ञान में नई ऊर्जा से शोध हो सके।

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