गोदान के अनुवाद का समाज सापेक्ष भाषिक विश्लेषण
किसी समाज के मनोविज्ञान को समझने के लिए उसकी संबोधन शब्दावली एक महत्त्वपूर्ण और उपादेय सामग्री सिद्ध हो सकती है। संबोधन शब्दों के प्रयोग से व्यक्ति और समाज के स्तर का भी बोध होता है। “इस विषय की ओर सर्वप्रथम अमरीकी और यूरोप के कुछ समाज-भाषावैज्ञानिकों का धयान गया जिसमें ‘गिलमैन’ और ‘ब्राउन’ के नाम उल्लेखनीय हैं।”1 संबोधन के चयन में संबोधित व्यक्ति की आयु, पद, परिचय की सीमा, संबंध तथा विशिष्ट स्तर का निर्धारित तत्त्व होते हैं।
संबोधन के निर्धारित शब्द प्रत्येक समाज की अपनी-अपनी निश्चित मान्यता एवं संकल्पना के अनुसार अलग-अलग ढंग से परिभाषित किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, ज्येष्ठता सुदूर पूर्व के देशों में मात्र एक दिन पहले जन्म लेने से मिल जाती है और इस प्रकार एक दिन पहले जन्मा व्यक्ति सामाजिकता की दृष्टि से अधिक आदर का भागी हो जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में ऐसी कोई मान्यता नहीं है। यहां ज्येष्ठता सामाजिक दृष्टि से 10-12 वर्ष के अंतर से मिलती है। पश्चिमी और विशेष रूप से अमरीकी समाज में आत्मीयेतर संबंधों में व्यक्ति अपनी उम्र के सहयोगी को पहले नाम से पुकारता है और उसके नाम के आगे व्यवसाय सूचक आदरार्थक संबोधन ‘प्रोफेसर’ ‘डॉक्टर’ नहीं लगता। यदि वह उन्हें लगाता है तो उसका अर्थ यह होता है कि संबोधक और संबोधित में पर्याप्त दूरी है। भारतीय समाज में और विशेष रूप से हिंदी भाषा समाज में संबोधन दूरी का प्रतीक भले ही हो, सहयोगी इन्हें बुरा नहीं मानेगा। कभी-कभी तो बिना डॉक्टर लगाए कोई किसी पी-एच.डी. उत्तराधिकारी सहयोगी के मन को ठेस पहुँचा देते हैं। उपाधिपरक एवं आदरार्थी संबोधनों के प्रति हिंदी भाषी समाज में सहयोग भी सजग होता है। वह व्यक्ति मानता है कि उपाधि का आदरसूचक संबोधन दूरी का प्रतीक है। किंतु उसके साथ संश्लिष्ट सम्मान का मोह भी उतना ही प्रबल होता है। सम्बोधन चयन का अत्यंत महत्वपूर्ण आधार है, श्रेणी। पदानुक्रमबद्ध व्यवस्था में श्रेणी ही निर्धारित तत्त्व होती है। भारत जैसे देश में जहां शक्ति अर्थात् शासकीय ‘अथारिटी’ की उपासना हर व्यक्ति के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है, वहां अधिकारी और अधीनस्थ के संबोधन सुनिश्चित न हो, ऐसा संभव नहीं। यही स्थिति प्रेमचंद के उपन्यासों में देखने को मिलता है। यहां सारे असामी ‘राय साहब’ को ‘मालिक’, ‘सरकार’, ‘जमींदार’ या ‘जमींदार साहब’ जैसे शब्दों के साथ संबोधित करते हैं। प्रेमचंदजी के उपन्यासों में पारिवारिक और सामाजिक संबोधन के शब्दों की व्यापकता है।
लोकोक्ति-मुहावरे— लोकोक्ति और मुहावरों को भाषा का प्राण माना जाता है। इनसे थोड़े में भी बहुत कुछ कहने की क्षमता है। हम जिस बात को कई शब्दों में नहीं कह पाते हैं, उसे हम एक छोटे से वाक्य में कह देते हैं।
लोकोक्ति या कहावत में कोई प्रचलित उक्ति या कथन छिपा रहता है, कई बार महान व्यक्ति या पात्रों के द्वारा कही गयी बात भी लोकोक्ति बन जाता है। लोकोक्ति में व्यक्तिकता की अपेक्षा सामाजिकता अधिक मात्रा में होती है। यह सामाजिक अनुभवों का निचोड़ होता है, इसका प्रयोग भाषा में किसी विचार को प्रभावी ढंग से प्रयोग व्यक्त करने के लिए होता है। कहावतें पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांत्रित होते रहते हैं। पुरान कथा या लोक कथा से भी कहावतें उत्पन्न होते हैं। लोकोक्ति/कहावत—“जिनका प्रयोग कथन विशेष के समर्थन के उद्देश्य से किया जाता है।”1
भावों और विचारों की अभिव्यक्ति को अधिक प्रभावपूर्ण तथा सशक्त बनाने के लिए इनका प्रयोग भाषा में किया जाता है। इसके प्रयोग से भाषा का सहज रूप उजागर होता है। “मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- ‘अभ्यास’/‘बातचीत’। ऐसा शब्द, वाक्यांश, वाक्य जो अभिधार्थ से भिन्न किसी विलक्षण अर्थ की प्रतीति कराए और सामान्य अर्थ से भिन्न और अर्थ में रूढ़ हो जाए ‘मुहावरा’ कहलता है।”2 मुरावरों का जन्म लोक में होता है और लोकजीवन में प्रयुक्त भाषा में मुहावरे घुले-मिले होते हैं; उनकी भाषा में सहज रूप से आ जाते हैं। कृत्रिम भाषा में मुहावरों को स्थान या यों कहा जा सकता है कि जिस भाषा में मुहावरे या लोकोक्ति नहीं है वह प्रायः मृत व कृत्रिम है। इनके प्रयोग से भाषा की सम्प्रेषण शक्ति प्रभावकारी होती है। प्रेमचंदजी के उपन्यासों में इसका प्रयोग पर्याप्त मात्रा में देखने को मिलता है। वर्तमान समय में लोकोक्ति और मुहावरों के प्रयोग में व्यापक कमी दिखाई देती है, जिसका कारण शायद यह हो सकता है कि बौद्धिक वर्ग इसे गवार की भाषा समझते हों। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि प्रेमचंदजी ने अपने उपन्यासों में इसका प्रयोग कर के हमारे बीच इसकी महत्ता को बनाए रखा हैं।
नाते-रिश्ते—किसी समाज में पाए जाने वाले मनुष्य के आपसी रिश्तों तथा संबंधों के बारे में विभिन्न मानव-शास्त्रियों ने विभिन्न रीति से विचार किए हैं। किसी ने केवल वैवाहिक संबंध को आधार मानकर रिश्ते (kinship) को परिभाषित किया है तो किसी ने सामाजिक नियमों एवं कर्तव्यों को भी महत्त्वपूर्ण बताया है। लेवी स्ट्रॉस के अनुसार “किस तरह वैवाहिक संबंधों को व्यवस्थित किया जाए- यही रिश्ते के मूल तत्त्व हैं।” रेडक्लिफ ब्राउन तथा फोर्ड इसे वह व्यवस्था मानते हैं, जिसमें व्यक्ति एक व्यवस्थित सामाजिक जीवन व्यतीत करते हुए इकट्ठे रहते हैं। सामाजिक संदर्भ में रिश्ते का महत्त्व बताते हुए रेडक्लिफ ब्राउन तथा डेरिल फोर्ड का कहना है कि रिश्तों की व्यवस्था संबंधों की एक व्यवस्था है, जिसे पूरी सामाजिक संरचना का एक अंग माना जा सकता है। डॉ. कविता रस्तोगी के अनुसार- “हर भाषा में भाई-बहन, नाते-रिश्तेदारों के लिए भिन्न शब्द समुच्चय होता है, जिसे बंधुतावाची शब्दावली कहते हैं। किसी भाषा-भाषी समुदाय के वक्ता के लिए उसके संगे-संबंधियों की यही पहचान बनाते हैं।”1 भारतीय सामाजिक व्यवस्था के अनुसार रिश्ते के निर्माण का मुख्य रूप से तीन आधार कहा जा सकता है—
जन्म के आधार पर रिश्तों का निर्माण।
विवाह के आधार पर रिश्तों का निर्माण।
समाज व्यवस्था के अनुसार रिश्तों का निर्माण।
(1) जन्म के आधार पर रिश्तों का निर्माण— भारतीय समाज के साथ-साथ लगभग अधिकांश समाज में जन्म के उपरांत ही रिश्तों का निर्माण होता है। यह एक विशेषता है कि भारतीय समाज में रिश्तों की विविधता ज्यादा है और पश्चिमी देशों में कम। जैसे- मामा का बेटा ममेरा भाई, फुफा का बेटा फुफेरा भाई, मौसा का बेटा मौसेरा भाई, चाचा के बेटा चचेरा भाई। इन सारे भाईयों को अँग्रेजी समाज में ‘cousin’ से ही संबोधित किया जाता है।
(2) विवाह के आधार पर रिश्तों का निर्माण— विवाहोपरांत नाते के शब्दों में एक व्यापक बढ़ोतरी होती है। जैसे- साला, साली, सलहज, साढ़ू, ननद, ननदोसी, भांजा, भांजी, सढ़बेटा, सढ़बेटी आदि। इस तरह के रिश्तों के लिए अँग्रेजी भाषा में स्पष्ट बोध कराने बाले शब्दों का सर्वथा अभाव है।
(3) समाज व्यवस्था के अनुसार रिश्तों का निर्माण— भारतीय समाज में जो सामाजिक व्यवस्थाएं मौजूद हैं, उसके आधार पर भी सामाजिक रिश्तों का निर्माण होता है। खासकर गाँव के समाज में हमउम्र लोगों के साथ भाई, पिता के उम्र लोगों के साथ चाचा-काका, दादा के उम्र वाले व्यक्ति के साथ दादा जैसे रिश्ते का निर्माण हो जाता है।
प्रसिद्ध नृशास्त्री ए. एल. क्रोबर ने विभिन्न भाषाओं में कार्यरत रिश्तों को आठ वर्गों में विभाजित किया है1—
1. वे भाषाएँ जिनमें समान पीढ़ी के अंतर को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह वर्ग अँग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओं में मिलता है। उदाहरणर्थ— अँग्रेजी में पीढ़ीगत भिन्नता दर्शाने के लिए father, grand father और grand grand father शब्द मिलते हैं। हिंदी में भी पिता, बाबा और परबाबा शब्द पीढ़ीगत दर्शाते हैं। रूपरचानात्मक दृष्टि से हिंदी के दो स्वतंत्र प्रतिपादक हैं और ‘परबाबा’ सामाजिक, जबकि अँग्रेजी का एक शब्द (father) स्वतंत्र है शेष सामाजिक (grand father और great grand father)।
2. कतिपय भाषाओं में समान शाखीय वंशावली (lineal) और भिन्न शाखीय वंशावली संबंधों का अंतर बना रहता है, तथा- हिंदी में पिता एवं चाचा तथा अँग्रेजी में Father और uncle। इसी वर्ग में हिंदी में आयु के अनुसार भिन्नता मिलती है, जो अँग्रेजी में दृष्टिगत नहीं होती जैसे— हिंदी में ‘पिता’ के बड़े भाई के लिए ‘ताऊ’ और छोटे के लिए ‘चाचा’ का प्रयोग किया जाता है।
3. प्रायः एक ही पीढ़ी में प्राप्त आयु के अंतर को भी महत्त्व दिया जाता है। यह वर्ग अँग्रेजी में नहीं मिलता। यद्यपि दोनों भाषाएँ पदबंधों की सहायता से आयु के अंतर को द्योतित करती है, परंतु ये पदबंधीय शब्द बंधुतावाची न होकर संबोधन शब्द (address term) के रूप भाषा में मिलते हैं, जैसे- अँग्रेजी में elder brother और younger brother कहकर अर्थ स्पष्ट किया जाता है तो हिंदी में ‘बड़ा भाई’ या ‘छोटा भाई’ कहकर। इन शब्दों में भी रूपरचनात्मक व्यतिरेक मिलता है, जहां अँग्रेजी में समान विशेषण भाई और बहन के लिए प्रयुक्त होता है, यथा- elder brother/elder sister वहां हिंदी में विशेषण विकारी है और लिंगानुरूप परिवर्तित होता है- छोटा भाई/छोटी बहन, बड़ा भाई/बड़ी बहन।
अनेक शब्दों से यह भी सूचना मिलती है कि संबंधी स्त्री है अथवा पुरूष। अँग्रेजी के cousin के छोड़ कर समस्त हिंदी और अँग्रेजी बंधुतावाची शब्द लिंग के मध्य भेद करते हैं।अनेक नाते-रिश्ते वाले शब्द वक्ता के लिंग की भी सूचना देते हैं। इस तरह का वर्ग हिंदी अँग्रेजी में नहीं मिलता है। जिस व्यक्ति के माध्यम से संबंध है, उसके लिंग की सूचना मिलती है। अँग्रेजी में इसकी अभिव्यक्ति के लिए पितृवंशी जोड़े जाते हैं, जैसे- maternal aunt या paternal aunt। हिंदी में इनकी अभिव्यक्ति स्वतंत्र शब्दों द्वारा होती है, जैसे- दादा-दादी या नानी-नाना आदि।विवाह के बाद होने वाले संबंधियों से रक्त संबंधियों को अलग माना जाता है। यह कोटि भी हिंदी-अँग्रेजी भाषाओं में कार्यरत मिलती है। उदाहरण- Father तथा Father-in-law तथा ‘ससुर’ और ‘पिता’ का अंतर।
कुछ भाषाओं में जिससे संबंध होता है, उस व्यक्ति की अवस्था (मृत/जीवित, विवाहित/अविवाहित) का द्योतन बंधुतावाची शब्द करते हैं। यह कोटि हिंदी-अँग्रेजी भाषाओं में नहीं मिलती है। यद्यपि कुछ संबोधन शब्द हैं जो वक्ता की विवाहित अवस्था की सूचना देते हैं, जैसे- विधवा और विधुर।
रॉबर्ट लेडो ने हिंदी अँग्रेजी की शब्दावलीगत भिन्नता की तुलना और विश्लेषण के लिए निम्नलिखित छह वर्गों की चर्चा करते हैं-
रूप एवं अर्थ में समानता— स्रोत-भाषा एवं लक्ष्य-भाषा के जो शब्द ध्वन्यात्मक/लिपिगत तथा अर्थ की दृष्टि से समान होते हैं, उनकी गणना इस वर्ग में की जाती है। ये समान मूल अथवा भिन्न मूल के भी हो सकते हैं। हिंदी और अँग्रेजी में कई समाज बंधुतावाची शब्द मिलते हैं, दृष्टव्य है- पिता- Father, माता- Mother.
रूपगत समानता और अर्थगत भिन्नता— अर्थ वैविध्य कई प्रकार का होता है। कभी-कभी शब्दों के अर्थ में आंशिक समानता तो कभी आंशिक भिन्नता मिलती है। इसी प्रकार कई शब्दों में पूर्ण अर्थगत भिन्नता भी दृष्टिगत होती है। प्रायः भिन्न संस्कृति का वक्ता स्रोत-भाषा के शब्दार्थ की संकल्पना को निर्धारित नहीं कर पाता है, जैसे- जंगल में निवास करने वाली आदिम जनजातियां सदा अपने मुखिया के रास्ते की रुकावटों को दूर करती है, बाइबिल में किया गया इस प्रकार का वर्णन कि जनता प्रभु ईशु के रास्ते में फूल-पत्तियां बिछा रही है, उनके मानस में स्पष्ट नहीं होता वे इसका चित्रण नहीं कर पाते, परिणामतः अनुवाद में समस्या आती है। अँग्रेजी अथवा हिंदी बंधुतावाची शब्दावली का कोई भी शब्द इस वर्ग में नहीं आती है।
रूपगत भिन्नता एवं अर्थगत समानता— इस वर्ग के सदस्यों की संख्या बहुत है, जैसे- पत्नी- wife, पति- husband
भिन्न रूप एवं भिन्न अर्थ वाले शब्द— प्रत्येक स्रोत-भाषा में अनेक ऐसे शब्द मिलते हैं, जो लक्ष्य-भाषा में रूप एवं अर्थ की भिन्नता रखते हैं। चूँकि ये शब्द अलग वास्तविकता, साँस्कृतिक विश्वास तथा परिस्थिति से जुड़े होते हैं, अतः लक्ष्य-भाषा का वक्ता प्रायः इन्हें पूरी तरह से समझने में समर्थ नहीं होता। अँग्रेजी शब्दकोश में cousin शब्द का अर्थ दिया गया है ‘One’s brother or sister’s son/daughter’। अनुवाद प्रायः cousin के लिए ‘चचेरा भाई’ प्रयोग मिलता है, जिसकी अँग्रेजी व्याख्या होगी ‘One’s younger brother’s son’।
समान रूप और भिन्न रूपचना— प्रायः भाषाओं में ऐसे शब्द मिलते हैं जिनमें रूप-अर्थगत समानता तो होती है, किंतु रूपरचनात्मक व्यवस्था एवं सहप्रयोग संबंधी अंतर मिलता है। अनेक हिंदी बंधुतावाची शब्दों में बहुवचन के दो रूप मिलते हैं- सामान्य और तिर्यक, जैसे- ‘उसके चार बेटे हैं।’
समान मूल एवं भिन्न लक्ष्यार्थ वाले शब्द— भाषा में प्राप्त अनेक शब्द अपने अभिधार्थ से अधिक व्यंजित करते हैं। जैसे- ‘माता के दर्शन दिए हैं’ वाक्य में माता का अर्थ माँ से नहीं, देवी माता से है। इसी प्रकार बम्बइया हिंदी में ‘भाई’ शब्द भिन्न लक्ष्यार्थ में प्रयोक्त किया जाता है और ऐसे व्यक्ति को ‘भाई’ कहते हैं जो असामाजिक कार्यों में लिप्त, ताकतवर व्यक्ति हो।
गोदान
(i) संबोधन
मूल- गृहस्थ। (गो.पृ.सं.5)
अनु.: Householder. (P.N.4)
भारतीय समाज में किसान या वैसे व्यक्ति जिनका पेशा कृषि कार्य है, ऐसे लोगों को ‘गृहस्थ’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है। अनुवादक ने इसके लिए जिस शब्द का प्रयोग किया है वह गृह स्वामी जैसे अर्थों को सबल रूप में प्रस्तुत करता है, जो वास्तव में मूल के मूल अर्थ से दूरी बनाए हुए है।
मूल- सरकार। (पृ.सं.14)
अनु.: Sir. (P.N.16)
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब जनता बड़े लोगों को ‘सरकार’ जैसे शब्द के द्वारा संबोधित करती है। मूल में जब रायसाहब होरी से बात कर रहे होते हैं तो एक चपरासी ने आकार कहा-सरकार, बेगारों ने काम करने से इनकार कर दिया है। इसके लिए अनुवादक ने जिस शब्द का प्रयोग किए हैं वह एक सफल प्रयास है।
मूल- काका। (गो.पृ.सं.15)
अनु.: Kaka. (P.N.17)
मूल के शब्द ‘काका’ को अनुवादक ने लिप्यंतरण किया है। स्रोत समाज में ‘काका’ शब्द पिता के लिए प्रयोग किया जाता है। जैसा कि लेखक लिखते हैं- होरी की बेटी रूपा होरी की टाँगों में लिपटकर कहा- काका! इसके लिए अनुवादक ने जिस रूप में अनुवाद किया है वह मूल की दृष्टि से तो सही है। परंतु लक्ष्य पाठक को समझने के लिए अनुवदाक की ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया है।
मूल- देवरानी। (गो.पृ.सं.24)
अनु.: Sister-in-law. (P.N.26)
मूल संबंधित समाज में पति के छोटे भाई के पत्नी की लिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अनुवादक के शब्द से इस तरह के निश्चित अर्थ का बोध नहीं होता है। अतः यह अनुवाद असफल है।
मूल- लड़का। (गो.पृ.सं.25)
अनु.: Son. (P.N.32)
भारतीय समाज में बेटे को ‘लड़का’ जैसे शब्द के द्वारा संबोधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सफल प्रयास है।
मूल- रखेल। (गो.पृ.स.43)
अनु.: Keep. (P.N.51)
जब किसी औरत को अवैध रूप से या बगैर शादी किए कोई पुरुष अपने घर रख ले तो उस औरत को ‘रखेल’ जैसे शब्द के द्वारा संबोधित किया जाता है। जिसका अनुवाद मूल के अर्थों को व्यक्त करने में सक्षम नहीं है। अर्थात् अनुवाद असफल है।
मूल- दादा। (पृ.सं.93)
अनु.: Brother. (P.N.103)
भारतीय समाज में बड़े भाई को ‘दादा’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जिस शब्द का प्रयोग किया है। वह मूल के संबोधन को कम, संबंधों को अधिक रूप में बोध करा रहा है। अर्थात् यह कि अनुवाद मूल की तरह श्रेष्ठता का बोध कराने में असफल है। इस लिए इस अनुवाद को एक असफल अनुवाद कहने में कोई गलती नहीं होगी।
मूल- कुँवर साहब। (गो.पृ.सं. 203)
अनु.: Kunwar Singh. (P.N. 235)
भारतीय समाज में राजे-महाराजे के बेटे को इस तरह के शब्दों द्वारा संबोधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जिस रूप में अनुवाद किया है, जिसे एक गलत अनुवाद की संज्ञा में रखना गलत नहीं होगा।
मूल- दारोगाजी। (सेवासदन पृ.सं.7)
अनु.: Daroga, Daroga Inspector, Inspector. (P.N.3,4)
भारतीय समाज में जब कोई व्यक्ति किसी पद पर नियुक्त हो जाता है, तो उस व्यक्ति का संबोधन उसके पद से जोड़कर संबोधित किया जाता है। और यहां मूल का दारोगा शब्द इसी प्रकार का एक संबोधन है, जो अँग्रेजी के ‘Sub Inspector’ के समान अर्थ रखता है। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण और अँग्रेजी अनुवाद दोनों का सहारा लिया है। लिप्यंतरण जहां मूल की दृष्टि से सफल है, वहीं लक्ष्य-भाषा पाठक के लिए दुष्कर है। और अँग्रेजी अनुवाद में खिचड़ी का रूप देखने को मिल रहा है। सब मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुवादक का यह प्रयास असफल है।
मूल- कुबेर। (सेवासदन पृ.सं.10)
अनु.: Kuber, the god of wealth.(P.N.8)
मूल रचना में ‘कुबेर’ का प्रयोग किया गया है। “जिन्हें एक देवता माना जाता है, जो इन्द्र की नौ निधियों के भंडारी और महादेव के मित्र समझे जाते हैं। विशेष- यह विश्ववस ऋषि के पुत्र और रावण के सौतेले भाई थे। इनकी माता का नाम इलविला था। कहते हैं इन्होंने विश्वकर्मा से लंका बनवाई थी। पर जब रावण ने इन्हें वहां से निकाल दिया तब इनके तपस्या करने पर ब्रह्मा ने इन्हें देवता बनाकर उत्तर दिशा का राज्य दे दिया और इन्द्र का भंडारी बना दिया। यह समस्त संसार के स्वामी समझे जाते हैं। इनके एक आँख तीन पैर और आठ दाँत हैं। देवता होने पर भी इन का वही पूजन नहीं होता। कोई-कोई इन्हें पुलस्त्य ऋषि का भी पुत्र बतलाते हैं।”1 भारतीय समाज में जब किसी व्यक्ति के पास बहुत धन-सम्पत्ति हो जाती है तो उसे कुबेर जैसे शब्द से संबोधित किया है। या फिर व्यंग्य के रूप में भी किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह लगभग सफल प्रयास है।
मूल- रमणी। (सेवासदन पृ.सं.27)
अनु.: The woman was a gentle lady. (P.N.30)
‘रमणी’ शब्द भारतीय समाज में सुन्दर और सुशील महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है, वह लगभग मूल की समानता का सूचक है।
मूल- भाभी। (सेवासदन पृ.सं.46)
अनु.: Bhabhi. (P.N.54)
भारतीय समाज में बड़े भाई की पत्नी को ‘भाभी’ जैसे शब्द से संबोधित करते हैं। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। यहां लक्ष्य-भाषा पाठक वर्ग को समझने में कठिनाई हो सकती है।
मूल- महाराजिन। (सेवासदन पृ.सं.49)
अनु.: Mahrajin. (P.N.58)
‘महाराजिन’ शब्द उस औरत के लिए प्रयोग होता है, जो दूसरों के घरों में नौकर के समान खाना बनाने की काम करती है। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। लेकिन लिप्यंतरण के माध्यम से लक्ष्य-भाषा पाठक को समझना सरल नहीं है।
मूल- जनाब। (सेवासदन पृ.सं.56)
अनु.: Janab. (P.N.56)
मूल का शब्द ‘जनाब’ उर्दू संस्कृति का शब्द है। जिसे किसी पुरुष के नाम के पहले आदर सूचक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। लेकिन अपने पाठक वर्ग को समझाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया है।
मूल- महरी। (सेवासदन पृ.सं.78)
अनु.: Maid servant. (P.N.94)
भारतीय समाज में नौकर की तरह काम करने वाली महिला को ‘महरी’ जैसे जातिवाचक संज्ञा से संबोधित किया जाता है। जिसके लिए अनुवादक ने एक सफल प्रयास किया है।
मूल- महाजन। (निर्मला पृ.सं.3)
अनु.: Moneylenders. (P.N.6)
भारतीय समाज में जो व्यक्ति सूद पर पैसे का लेन-देन करता है, उन्हें ‘महाजन’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है, जिसे अनुवादक ने एक सफल अनुवाद किया है।
मूल- मल्लाह। (निर्मला पृ.सं.7)
अनु.: Oarsman. (P.N.9)
ऐसे तो भारतीय समाज में मल्लाह एक जाति है, जिसकी पेशा ही है नाव चलाना, लेकिन मूल में जिस भाव से यह शब्द का प्रयोग किया गया है, वहां जाति का लोप है। यहां कार्य के अनुसार व्यक्ति को इस तरह के शब्द के द्वारा संबोधन किया गया है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सार्थक प्रयास है।
मूल- पुरोहित। (निर्मला पृ.सं.15)
अनु.: Priest. (P.N.18)
भारतीय समाज में वैसे ब्राह्मण को पुरोहित कहा जाता है जो किसी परिवार के सारे कर्म काण्ड कराने के लिए नियत हों। अनुवादक ने इसके लिए जिस शब्द का प्रयोग किया है, वह मूल के समान अर्थ को व्यक्त करने में सक्षम नहीं है। अर्थात् अनुवाद असफल है।
मूल- साहजी। (निर्मला पृ.सं.24)
अनु.: Sahib. (P.N.26)
भारतीय समाज में हलवाई के लिए ‘साहजी’ जैसे शब्द का प्रयोग किया जाता है। मूल में जब मोटेराम हलवाई के दुकान पर जाता है तो हलवाई को ‘साहजी’ कहकर संबोधित करता है। इसके लिए जो अनुवाद किया गया है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि अनुवादक द्वारा समझने का प्रयास नहीं किया गया है।
मूल- महराज। (निर्मला पृ.सं.42)
अनु.: Maharaj (cook). (P.N.43)
भारतीय समाज में वैसे व्यक्ति जो किसी दूसरे के घरों में खाना बनाने का कार्य करता है उसे ‘महराज’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सार्थक प्रयास है, क्योंकि लिप्यंतरण के साथ-साथ अँग्रेजी के शब्द का भी प्रयोग किया है।
मूल- बुआ। (निर्मला पृ.सं.62)
अनु.: Rukmini. (P.N. 62)
मूल संबंधित समाज में पिता के बहन को ‘बुआ’ जैसे शब्द से संबंधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने महिला का नाम का प्रयोग किया है, जिसे एक गलत अनुवाद कहना गलत नहीं होगा।
मूल- विमाताएँ। (निर्मला पृ.सं.66)
अनु.: Stepmother. (P.N.66)
मूल संबंधित समाज में पिता के दूसरी पत्नी के लिए विमाता का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है, वह सफल है।
मूल- जेठानी। (निर्मला पृ.सं.106)
अनु.: Wife of elder brother. (P.N.101)
भारतीय समाज में पति के बड़े भाई की पत्नी को ‘जेठानी’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जिस रूप में अनुवाद किया है, उससे महिला और पुरुष दोनों के बड़े भाई की पत्नी का तो बोध होता है। अर्थात् अनुवाद से मूल की तरह संबोधन का कुछ स्पष्ट बोध नहीं हो पा रहा है।
मूल- बिसाती। (गबन पृ.सं.5)
अनु.: Peddler. (P.N.5)
‘बिसाती’ वैसे व्यक्ति के लिए प्रयोग होता है, जो लड़कियों या स्त्रियों के लिए साज श्रृंगार की वस्तुओं को बेचता हो। इसके लिए अनुवादक ने जिस शब्द का प्रयोग किया है उससे खोमचावाला, फेरीवाला, बिसाती, नशीली दवाएं बेचने वाला आदि का अर्थ निकलता है। अर्थात् यह मूल की तरह एक निश्चित अर्थ का बोध नहीं कराता है।
मूल- दादी। (गबन पृ.सं.23)
अनु.: Grandmother. (P.N.24)
‘दादी’ शब्द का संबोधन वैसी महिला के लिए होता है, जो पिता की मां होती है। अनुवादक ने इसके लिए जिस शब्द का प्रयोग किया है, उससे दादी और नानी दोनों का अर्थ बोध होता है। इस प्रकार अनुवाद का शब्द मूल की तरह निश्चित अर्थ को व्यक्त करने में सक्षम नहीं है।
मूल- दूल्हा। (गबन पृ.सं.23)
अनु.: Bridegroom. (P.N.24)
‘दूल्हा’ शब्द उसके लिए प्रयोग होता है, जिसकी शादी हो रही होती है। इसके लिए अनुवादक ने जिस शब्द का प्रयोग किया है, वह मूल की तरह सही अर्थ को व्यक्त करने में सक्षम है। अर्थात् अनुवाद सफल है।
मूल- सेठजी। (गबन पृ.सं.89)
अनु.: Setheji. (P.N.98)
भारतीय समाज में दुकानदार या व्यापारी या बड़े लोगों को ‘सेठजी’ जैसे शब्द से संबोधित किया जाता है। जिसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। जिसमें मूल की महक तो अनुवादक ने बनाए रखा है, परंतु लक्ष्य-भाषा पाठक को समझने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया है।
(ii) लोकोक्ति-मुहावरे
मूल- मर्द साठे पर पाठे होते हैं। (गो.पृ.सं.6)
अनु.: Men grow more charming and manly at sixty. (p.n.4)
समाज में पुरुष बादी सोच के कारण इस तरह की उक्ति का निर्माण होता है। पुरुष अपनी पुरुषार्थ को किसी भी उम्र में कभी बूढ़े होने देना नहीं चाहते हैं। उनकी ऐसी धारणा है कि इस उम्र में भी किसी काम को साकार रूप देने में हम सामर्थ होते हैं। मूल के शब्द पाठे के लिए अनुवादक ने ‘Charming’ का प्रयोग किया है। जो वास्तव में मूल अर्थ को सही व्याख्या नहीं कर पा रहा है, क्योंकि मूल के पाठे से शारीरिक मजबूती/क्षमता भाव का बोध है और साथ ही मूल में एक तुकबंधी की स्थिति है। वहीं अनुवादक के शब्द से शारीरिक क्षमता बोध का अभाव है। इस कारण वश यह कहना सही है कि अनुवाद मूल के वास्तिक अर्थ को व्यक्त करने में सार्थक नहीं है।
मूल- बिन घरनी घर भूत का डेरा। (गो.पृ.सं.8)
अनु.: That a house without a wife is a workshop of ghosts. (p.n.7)
किसी भी समाज-परिवार में महिला का एक अहम भूमिका होती है। भारतीय समाज में महिलाओं के अभाव में मूल की तरह उक्ति का ही निर्माण हो गया है, क्योंकि यह स्त्री घर की सुख-शांति बनाए रखती है। घर के सारे कार्यों का सार्थक रूप स्त्री ही प्रदान कर सकती है। इसी कारण घृहणी को विशेष स्थान प्राप्त है। यहां अनुवादक द्वारा मूल के पास पहुँचने का एक सार्थक प्रयास किया गया है।
मूल- महीने में एक बार आओगे, ठंडा पानी दूँगी। पंद्रहवें दिन आओगे, चिलम पाओगे। सातवे दिन आओगे, खाली बैठने को माची दूँगी। रोज-रोज आओगे, कुछ न पाओगे। (गो.पृ.सं.23)
अनु.: If you come once a month, I will serve you cool water, if you come every fortnight, you will served with chillum, if you come once a week, I will give you a maachi to sit on and relax and if you come everyday you will get nothing. (p.n.28)
भारतीय समाज में अतिथि को “अतिथि देवो भवः” कहा जाता है। अर्थात् समाज में अतिथि को एक विशेष स्थान प्राप्त है। परंतु अतिथि अगर अपनी मर्यादा तोड़ दे तो उसके लिए मूल की तरह की उक्ति भी समाज में निहित है। अनुवादक ने चिलम और माची जैसे शब्दों को लिप्यंतरण कर मूल के पास पहुँचने का प्रयास किया है। लेकिन मूल के उक्ति से जिस प्रकार का परिवेश, समाज, वर्ग आदि का बोध होता है वह अनुवाद में अभाव है।
मूल- तू हमारी नाक काटने पर लगी है। (गो.पृ.सं.28)
अनु.: You are bent upon insulting our fain name. (P.N.34)
जिस प्रकार चेहरे की सुन्दरता प्रदान करने में नाक का विशेष स्थान होता है जैसे ही समाज व्यक्ति की पहचान इज्जत से होती है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सफल प्रयास है।
मूल- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। (पृ.सं.49)
अनु.: A single person can’t dislodge. (p.n.58)
समाज में एक साधारण व्यक्ति के द्वारा बड़े काम को अनजाम न दे पाने के संदर्भ में इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। जिसमें चना एक साधारण व्यक्ति और भाड़ एक बड़ा का कार्य का बोधक के रूप में प्रयोग किया गया है। अनुवाद में प्रयोग ‘dislodge’ से मूल की तरह स्पष्ट का बोध नहीं हो पा रहा है। अर्थात् अनुवाद का प्रयास सफल नहीं है।
मूल- पंच में परमेसर रहते हैं। (गो.पृ.सं.113)
अनु.: God reside in Panch. (P.N.128)
दो पक्षों के बीच मध्यस्थता करने वाले को पंच कहा जाता है। और इसका कार्य होता है निश्पक्षता पूर्वक विवादों को सुलझाना। इसलिए पंच के बारे में इस तरह की युक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह मूल के दृष्टि से सफल है।
मूल- कुत्ता हड्डी की रखवाली करे तो खाए क्या? (गो.पृ.सं.155)
अनु.: If a dog guards a bone what will he eat? (P.N.177)
इस तरह की उक्ति उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे उस वस्तु के रक्षा के लिए तैनात किया जाता हो जो उसे अत्यावश्यक है। जो किसी भी हालत में दूसरों के लिए नहीं छोड़ सकता है। समाज में ऐसे लोभी व्यक्ति के लिए इससे सरल उक्ति और दूसरा नहीं हो सकता है। अनुवादक इसके लिए जो प्रयास किया है वह एक सफल प्रयास है।
मूल- कार्तिक के महीने में किसान के बैल मर जायँ, तो उसके दोनों हाथ कट जाते हैं। (गो.पृ.सं.158)
अनु.: If the two bullocks of a peasant die in this season, he becomes handicapped by his two hands. (P.N.180)
भारत में रबी की फसल की बोआई के लिए यह माह सबसे अहम होता है। इस समय खेतो की नमी से लेकर भावी मौसम का असर फसल पर एक व्यापक प्रभाव डालता है। अगर किसान इस महीने में फसल नहीं बोता है तो ऊपज का बड़ा नुकशान होगा। यहां अनुवादक ने अनुवाद में बैलों को मरने की संख्या बता रहे हैं, जब की मूल में इस तरह की संख्या का कोई जिक्र नहीं है, हां यह जरूर है कि हल चलाने के लिए दो बैलों की आवश्यकता होती है। लेकिन एक बैल भी मर जाए तो भी समान परेशानी होगी। दूसरी बात कार्तिक माह के लिए ‘season’ के रूप में अनुवाद किए हैं, जिससे मूल की तरह निश्चित समय का ज्ञात नहीं होता है।
मूल- अपना सोना खोटा तो सोनार का क्या दोस? (गो.पृ.सं.216)
अनु.: Why blame the goldsmith if your gold is impure. (p.n.250)
स्वयं दोषी रहने पर दूसरों को दोषी ठहराया नहीं जाता है। मूल के वक्ता स्वयं को दोषी ठहराने की बात करता है, वहीं अनुवाद के वक्ता दूसरों को दोषी बना रहे हैं।
मूल- बरफी खाने के बाद गुड़ खाने को किसका जी चाहता है? (गबन पृ.सं. 31)
अनु.: Who feels like eating gur after barfi? (P.N.33)
मानव प्रकृति है कि अच्छे वस्तुओं के प्रयोग के बाद उससे बुरे वस्तु का प्रयोग करना नहीं चाहता है। इसी संदर्भ में लोगों द्वारा इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लेकर मूल के भाव तक पहुँचने का प्रयास किया है, परंतु लक्ष्य-भाषा पाठक के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।
मूल- बहती गंगा में हाथ धोना। (गबन पृ.सं.36)
अनु.: Everybody could make use of the flowing river of opportunity. (P.N.39)
समाज में लोगों द्वारा मुफ्त में महत्त्वपूर्ण वस्तुओं का लाभ उठाने के संदर्भ में इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो अनुवाद किया है उसमें शब्दानुवाद का मुखर स्वरूप प्रतीत होता है। यह मूल के भाव को व्यक्त करने में सझम नहीं है।
मूल- अपनी चादर देखकर ही पांव फैलाना चाहिए। (गबन पृ.सं.54)
अनु.: Don’t stretch yourself beyond your means. (P.N.59)
किसी व्यक्ति द्वारा अपनी सामर्थ से ज्यादा दिखावा करने के संदर्भ में इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया गया है। जिसका अनुवाद एक सफल प्रयास है।
मूल- आधा तीतर आधा बटेर।, कोट-पतलून पर चौगोशिया टोपी तो नहीं अच्छी मालूम होती। (गबन पृ.सं.63)
अनु.: It half quil and half partridgel, It doesn’t look to wear a coat and pant along with an old-fashion four-cornered hat! (P.N.69)
जब कोई वस्तु ठीक से प्रयोग न कर जैसे-तैसे बर्वाद कर देता है तो लोग इस तरह की उक्ति का प्रयोग करते हैं। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह सफल प्रयास नहीं है। जब किसी द्वारा आधुनिकता में पौराणिकता का समावेश कर दिया जाता है तो लोग मूल की तरह उक्ति का प्रयोग करते हैं। इसके लिए अनुवादक ने शब्दानुवाद का सहारा लिया है, जो मूल भाव से कोसों दूर है।
मूल- हो तुम निरे बछिया के ताऊ। (गबन पृ.सं.75)
अनु.: You’re a real calf’s uncle, an idiot. (P.N.82)
समाज किसी सीधे-साधे या भोले-भाले व्यक्तियों के संदर्भ में इस तरह की उक्ति का प्रयोग मान्य है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है उसमें शब्दानुवाद की झलक स्पष्ट है। जब लोकोक्ति-मुहावरे से विशेष अर्थ को व्यक्त करता है।
मूल- आग लगाकर पानी लेकर दौड़ने से कोई निर्दोष नहीं हो जाता है। (गबन पृ.सं.108)
अनु.: Someone who has stated a fire cannot be held inncent because he comes with water, running to put it out. (P.N.119)
किसी द्वारा गलती कर माफी माँगने पर वह निर्दोष नहीं हो जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो अनुवाद किया वह एक शब्दानुवाद के श्रेणी में रखने योग है।
मूल- दोनों लड़कियाँ कमल के समान खिलती जाती थी। (सेवासदन पृ.सं.8)
अनु.: Both girl were blooming like lotuses. (P.N.4)
भारतीय समाज में लड़कियों के प्रति इस की उक्ति इस लिए प्रयोग किया जाता है कि माता-पिता के लिए उनकी शादी सबसे बड़ा बोझ समझा जाता है। और कमल से तुलना इसलिए किया गया है कि कमल सुबह तक कली के रूप में होता है पर जैसे ही सूर्य का प्रकाश पड़ता है, वह (कमल) एकदम से खिल उठता है। इसका अनुवाद एक सफल प्रयास है।
मूल- इस बगुला-भक्तिपन का मजा न चखा दिया तो देखना। (सेवासदन पृ.सं.12)
अनु.: We will teach him a lesson. (P.N.11)
समाज में बगुले की तरह रूप बनाने वालों के लिए इस तरह की उपाधी दी जाती है। यहां अनुवादक ने बगुला-भक्तिपन के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।
मूल- घोड़े बेचकर सोना। (सेवासदन पृ.सं.32)
अनु.: Sleeping like a dead. (P.N.37)
जब कोई व्यक्ति इस तरह गहरी नींद में खराटे लेकर सो रहा होता है या बिना चिंता-फिक्र के सो रहा होता है तो उस व्यक्ति के लिए मूल की तरह उक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ‘dead’ शब्द का प्रयोग किया है जो भारतीय समाज में ग्राह्य नहीं है। इस कारण यह कहना गलत नहीं होगा कि अनुवाद मूल के दृष्टि से असफल है।
मूल- मैंने भी त्रियाचरित्र पढ़ा है। (सेवासदन पृ.सं.33)
अनु.: I have also read Triya-charitra. (P.N.37)
भारतीय समाज में स्त्री के चरित्र को लेकर इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण कर मूल के पास पहुँचने का प्रयास किया है, परंतु लक्ष्य-भाषा पाठक वर्ग के लिए अनुवादक ने कोई प्रयास नहीं किया है।
मूल- बांड़ा आप-आप गए, चार-हाथ की पगहिया भी ले गए। (सेवासदन पृ.सं.37)
अनु.: From nowhere you appeared and tarnished his image. (P.N.42)
जब किसी के स्वयं के कारण अपने से बड़े इज्जतदार व्यक्ति के इज्जत में बट्टा लगता है, तो इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। मूल के चार-हाथ की पगहिया से तात्पर्य है कि हर व्यक्ति की लम्बाई अपने हाथ से साढ़े तीन हाथ ही होता है। और वैसे व्यक्ति जो स्वयं से ज्यादा इज्जतदार हो के लिए चार-हाथ के रूप में मान्य है। यह अनुवाद मूल की तरह भाव को व्यक्त करने में सार्थक नहीं है। अर्थात् यह अनुवाद असफल है।
मूल- जो मनुष्य ब्राह्मण को नेवता देता है वह उसे दक्षिणा देने का भी सामर्थ्य रखता है। (सेवासदन पृ.सं.99)
अनु.: The person who invites Brahman for meals he is capable enough to give remuneration. (P.N.122)
योग्य पुरूष को बुलाने से पहले उसके सम्मान में खर्च बहन करने के सामर्थ के संदर्भ में इस तरह की उक्ति का प्रयोग समाज प्रचलन है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह लगभग सफल कहा जा सकता है। यहां लगभग का प्रयोग इस लिए किया जा रहा है कि मूल के ‘दक्षिणा’ के लिए अनुवादक ने ‘meals’ का प्रयोग किया है जो मूल सही स्थिति का व्याख्या नहीं करता है।
मूल- भलाई करके बुराई करने में जो लज्जा और संकोच है। बुराई करके भलाई करने में कोई संकोच नहीं। (निर्मला पृ.सं.20-21)
अनु.: Do you mean shame in doing something wrong after good acts? Neither there will be shame on good acts after erring. (P.N.23)
समाज में प्रयोगार्थ इस तरह की उक्ति का मान्य है। जिसे अनुवादक द्वारा एक सफल प्रयास किया गया है।
मूल- दाई से पेट छिपाना। (निर्मला पृ.सं.21)
अनु.: You flatter me by hiding the reality? (P.N.24)
जानकार व्यक्ति से सच्चाई छिपाने पर इस तरह की उक्ति का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किए हैं वह एक सफल प्रयास है।
(iii) नाते-रिश्ते
मूल- साली—सलहज। (गो.पृ.सं.6)
अनु.: Sister-in-law. (P.N.4)
भारतीय समाज में अलग-अलग लोगों के साथ लिए अलग-अलग रिश्तों का नाम और पहचान है। ‘साली’ पत्नी की छोटी बहन के साथ रिश्ते का निर्माण होता है। और ‘सलहज’ साले के पत्नी के साथ। अनुवाद के शब्द से मूल की तरह रिश्ते का स्पष्ट बोध नहीं होता है।
मूल- राम-राम भोला भाई। (गो.पृ.सं.7)
अनु.: Ram, Ram Bhola bhaI! (P.N.6)
भारतीय समाज में लोक-व्यवहार के अनुसार भी रिश्तों का निर्माण होता है। जैसे- गाँव-समाज के समान उम्र वालों के साथ भाई, पिता के उम्र के समान लोगों के साथ के चाचा और दादा के उम्र के समान लोगों के साथ दादा जैसे रिश्ते बनते हैं। इसी भारतीय लोक-व्यवहार के कारण होरी भोला को भाई जैसे शब्द से संबोधित करता है। जो दोनों अलग अलग जाति-समाज के हैं। इसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है।
मूल- चचेरे, फुफेरे, ममेरे, मौसेरे भाई। (गो.पृ.सं.12)
अनु.: Cousins. (P.N.14)
भारतीय समाज पारिवारीक भाईयों के साथ अलग-अलग नाम का रिश्ते बनते हैं। चाचा के बेटे के साथ चचेरा भाई, फुफा के बेटे के साथ फुफेरा भाई मामा के बेटे के साथ ममेरा भाई मौसा के बेटे के साथ मौसेरा भाई जैसे अलग अलग पहचान है। अनुवादक के शब्द से इन सारी पहचानों की पहचान खत्म हो जाता है। अर्थात् यह कह सकते हैं कि अनुवाद मूल को स्पष्ट करने में सक्षम नहीं है।
मूल- बहु। (गो.पृ.सं.24)
अनु.: Bhahu. (P.N.26)
‘बहु’ का रिश्ता बेटे की पत्नी के साथ कायम होता है। जिसे अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। जो मूल के दृष्टि सफल है परंतु लक्ष्य-भाषा पाठक को समझने के लिए अनुवादक ने कोई प्रयास नहीं किया है।
मूल- ननदोई। (गो.पृ.सं.123)
अनु.: Brother-in-law. (P.N.140)
पति के बहन के पति के साथ जो रिश्ते बनते हैं उसे ननदोई कहा जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो शब्द प्रयोग किया है उससे जीजा, जेठ, देवर, ननदोई, बहनोई, साढ़ू, साला ये तमाम अर्थों को बोध कराता है। इसलिए यह अनुवाद एक गलत अनुवाद है।
मूल- समधिन। (गो.पृ.सं.240)
अनु.: Samdhin. (P.N.279)
भारतीय समाज में बहु या दामाद के माँ के साथ जो रिश्ते बनते हैं उसे समधिन कहा जाता है। जिसके लिए अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है, लेकिन लक्ष्य-भाषा पाठक वर्ग को समझने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है।
मूल- पोता। (गबन पृ.सं.8)
अनु.: Grandsons. (P.N.6)
बेटे के बेटा साथ पोते का रिश्ते का निर्माण होता है। इसके लिए अनुवादक ने जो शब्द प्रयोग किए हैं वह मूल के दृष्टि से गलत है, क्योंकि अनुवाद से शब्द से पोता और नाती दोनों का अर्थ बोध होता है। वह मूल की तरह निश्चित रिश्ते का बोध नहीं कराता है।
मूल- सास-ससुर। (गबन पृ.सं.13)
अनु.: Father and mother-in-law. (P.N.13)
पति या पत्नी के मां-पिता के साथ सास-ससुर जैसे रिश्ते का निर्माण होता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सफल प्रयास है।
मूल- जीजा। (गबन पृ.सं.21)
अनु.: Jija. (P.N.21)
इस तरह के रिश्ते का निर्माण बड़ी बहन के पति के साथ होता है। जिसे अनुवादक ने लिप्यंतरण का सहारा लिया है। जो एक सफल प्रयास है क्योंकि अनुवादक ने लक्ष्य-भाषा पाठक को समझने के लिए व्याख्या किया है। (Term of reference for an older sister’s husband.)
मूल- भाँजी। (सेवासदन पृ.सं.15)
अनु.: Sister’s daughter. (P.N.14)
समाज में पुरुष के बहन की बेटी के साथ जो रिश्ते बनते हैं उसे भाँजी कहा जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जिस रूप में अनुवाद किया है उससे महिला और पुरुष दोनों के बहन की बेटी का बोध होता है। अनुवादक ने इसके लिए जो प्रयास किया है वह असफल प्रयास है।
मूल- दामाद। (सेवासदन पृ.सं.17)
अनु.: Son-in-law. (P.N.17)
बेटी के पति के साथ जो रिश्ते का निर्माण होता है उसे दामाद कहा जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सार्थक प्रयास है।
मूल- ममेरा भाई, फुफेरा भाई, भांजा, भतीजा। (निर्मला पृ.सं.3)
अनु.: A cousin from maternal sister, or that from his paternal, or a nephew from a sister, or another form his brother. (P.N.5)
ममेरा भाई के लिए अनुवादक ने जिस शब्द का प्रयोग किया है उससे मातृ पक्ष के रिश्तों का बोध होता है जहां मौसेरे भाई के रिश्ते का संबंध मातृ पक्ष से होता है। फुफेरा भाई के लिए भी अनुवादक ने जो शब्द का प्रयोग किया है उससे पितृ पक्ष के रिश्ते का बोध है जहां फुफेरा के साथ-साथ चचेरा का रिश्ता भी पितृ पक्ष से हीं होता है। भांजे के लिए भी जो अनुवादक ने प्रयोग किया है उससे भी मूल की तरह स्पष्ट रिश्तों का बोध नहीं होता है। भतीजे के लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह मूल के दृष्टि से सफल है।
मूल- समधिन। (निर्मला पृ.सं.17)
अनु.: Relatives. (P.N.20)
बेटे या बेटी के सास के साथ जो रिश्ते का निर्माण होता है उसे ही समधिन कहा जाता है। इसके लिए अनुवादक ने जिस रूप में अनुवाद किया है वह नाम से किसी भी रिश्ते का बोध नहीं कराता है।
मूल- विमाता। (निर्मला पृ.सं.66)
अनु.: Stepmother. (P.N.66)
पिता की दूसरी पत्नी के साथ विमाता जैसे रिश्ते का निर्माण होता है। इसके लिए अनुवादक ने जो प्रयास किया है वह एक सफल प्रयास है।