हिंदी बनाम अंग्रेजी शब्दकोश

शब्दकोश का शाब्दिक अर्थ तो यही है कि जहाँ शब्द और अर्थ का संग्रह हो । शब्दकोश का एक अर्थ यह भी है कि किसी एक विशिष्ट भाषा के शब्दों का भंडार रहता है यानी इसमें पर्यायवाची, विलोमार्थी, समानार्थी आदि शब्दों का संग्रहण रहता है । अब सवाल यहाँ यह है कि संग्रहण किसी एक भाषा का, द्विभाषा का या फिर बहुभाषा का? दूसरा प्रश्न अगर यह किसी एक भाषा का है तो क्यों? और मिश्रित या बहुभाषा का है तो क्यों? तीसरा प्रश्न तीनों के शब्दकोशों में क्या भिन्नता है और ये एक दूसरे से अलग कैसे हैं? साथ ही इन सबकी लेखन परंपरा का विकास कब से हुआ? इन दोनों में समानताएं एवं विषमताएं क्या हैं ? शब्दकोश का उपयोग कब, क्यों और कैसे होता है? इन शब्दकोशों की कोश-निर्माण प्रक्रिया क्या है? शब्दों की निर्माण प्रक्रिया क्या है? वर्तमान में शब्दकोश की जरूरत और उपयोगिता क्या है? और इन सबके अध्ययन में कौन-कौन सी संभावनाएं नज़र आती हैं? इन सभी प्रश्नों का अध्ययन मुख्यतः हिंदी और अँग्रेजी भाषा को केंद्र में रखकर किया गया है ।

सर्वविदित है कि शब्दकोश की लेखन-प्रक्रिया हजारों साल पुरानी है और इसका इतिहास वेदादि के शब्दों के संग्रहण के साथ ही शुरू हो गया था । यह भी साक्ष्य उपलब्ध है कि ‘निघंटु’ पहला शब्दकोश है, परंतु दैनंदिन विकास ने इसका फलक इतना विस्तृत कर दिया कि वर्तमान समय में यह अपने आप में स्वतंत्र अध्ययन का विषय बन चुका है और साथ ही इसका अध्ययन अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में भी किया जाने लगा है । डॉ. रामप्रकाश सक्सेना ने इस ओर दृष्टिपात करते हुए लिखा है कि “हिंदी में कोशों की परंपरा 19वीं शताब्दी से आरम्भ हो गयी थी । 20वीं शताब्दी के अंत तक कई शब्दकोश बाज़ार में आ गये । कई कमियाँ होते हुए भी डॉ. कामिल बुल्के का ‘अँग्रेजी-हिंदी कोश’ अच्छा माना जाता है । सम्प्रति कोश विज्ञान और कोश निर्माण विज्ञान बहुत विकसित हो चुके हैं । वैज्ञानिकता की कसौटी पर हिंदी का एकाध कोश ही शत प्रतिशत खरा उतरेगा ।” [1] दरअसल उनका यह विश्लेषण एक सीमित अध्ययन की तरफ इशारा करता है । वजह साफ़ है कि हिंदी का एक आम व्यक्ति भी इस वक्तव्य से ताल्लुकात नहीं रख सकता क्योंकि कोई भी व्यक्ति इसका सहज तरीके से विश्लेषण करे तो यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ खड़ा होगा कि जिस भाषा का साहित्य एक हज़ार साल पुराना हो उसका शब्दकोष 900 वर्ष बाद कैसे? दूसरी तरफ क्या इन 1 हज़ार वर्षों में सिर्फ साहित्य ही लिखा जाता रहा और भाषा के किसी अन्य पहलूओं पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया? जाहिर सी बात है कि अध्ययन हुयें है और हो भी रहे हैं; बस बात उपलब्धता और प्रामाणिकता की है । इसलिए उनका यह वक्तव्य कमजोर अध्ययन की तरफ इशारा करता है ।

वास्तव में शब्दकोश का अर्थ दो भाषाओं के शब्द और अर्थ से था; परंतु जैसे-जैसे समय की धारा आगे बढती गयी और आधुनिकता का प्रभाव बढ़ता गया वैसे-वैसे कोश का भी अपना अस्तित्व मज़बूत होता गया । यह प्रक्रिया एकभाषिक कोश के रूप में अपने इतिहास की नींव बना चुकी है और इसी में भाषा की प्रगाढ़ता भी छिपी हुई है । एकभाषिक कोश के रूप में पर्यायवाची कोश, विश्व कोश, विलोम कोश, नाम कोश, विचार कोश, सूक्ति कोश, सुभाषित कोश आदि अनेक धाराएँ भी बन चुकी हैं । जैसे-जैसे समाज विकसित होता गया वैसे वैसे भाषा भी विकसित होती गयी और उसके कोश भी ।

हरदेव बाहरी ने हिंदी शब्दकोश के बारे में बहुत-सी कमियों को महसूस किया था इसलिए उन्होंने लिखा है कि

“Hindi has no historical dictionary, no dictionary of professional terms existing among artisans speaking various dialects, no graded dictionary based on lexical and semantic frequencies, no rhyming dictionary, no word finders, no etymological dictionary on scientific basis, no dictionary of names and surnames. A dictionary of phrases and collocations is another desideratum. We also need a dictionary of difficult words. I have recently seen a small Hindi-Urdu Dictionary Banaras, 1968, which I can recommend to bilingual lexicographers. It gives only those words which are not common to Hindi and Urdu. Dictionaries of such exclusive words would be handy, useful and cheap.” [2]

इन्होंने हिंदी शब्दकोश की परंपरा को सिरे से ही नकार दिया । उनके इन मंतव्य से यह जाहिर होता है कि हिंदी शब्दकोशों के बारे में जानकारी बहुत नगण्य थी क्योंकि हिंदी साहित्य के ऐतिहासिक अध्ययन में आदिकाल के अंतर्गत खालिकबारी (अमीर खुसरो), वर्ण-रत्नाकर (ज्योतिरीश्वर ठाकुर), मध्यकाल के दौरान नाममाला एवं अनेकार्थ कोश(नंददास), अनभै-प्रबोध (गरीबदास), नाममाला/नामउर्वशी (शिरोमणि मिश्र), नाममाला एवं नाम निरूपण (हरिदास), मानमंजरी नाममाला (बद्रीदास), तुह्फतुल हिन्द (मिर्ज़ा खां) आदि एवं आधुनिक काल के अंतर्गत हिन्दवी कोश (पादरी आदम), शब्दकोश (मुंशी राधेलाल), कोष-रत्नाकर (सदासुखलाल), मंगलकोश (लाला मंगलीलाल), देवकोष (देवदत्त तिवारी), कैसर कोश (कैसर बख्श मिर्ज़ा), विवेककोश (बाबा बैज़ुदास), श्रीधर भाषा कोष (श्रीधर), हिंदी शब्दसागर (नागरी प्रचारिणी सभा काशी प्र.सं. श्यामसुंदर दास), संक्षिप्त हिंदी शब्दसागर, मानक हिंदी कोश, प्रमाणिक हिंदी कोश (रामचन्द्र वर्मा), हिंदी शब्दार्थ पारिजात (द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी), भार्गव आदर्श हिंदी शब्दकोश (रामचंद्र पाठक), वृहत हिंदी कोश (कालिका प्रसाद श्रीवास्तव एवं अन्य), प्रचारक हिंदी शब्दकोश (लालधर त्रिपाठी), हिंदी राष्ट्रभाषा कोश (विश्वेश्वर नारायण श्रीवास्तव एवं देवीलाल) आदि कई तरह के कोश लिखे जाते रहे जिनका न हिंदी शब्दकोश की परंपरा में अध्ययन हुआ और न ही स्वतंत्र रूप से । हालाँकि यह बात दीगर की है कि बहुत से कोश ऐसे भी हैं, जिनका सिर्फ स्रोत मौजूद है; प्रामाणिक प्रति नहीं । फिर भी हिंदी शब्दकोश लेखन परंपरा का एक व्यवस्थित अध्ययन करने के सारे स्रोत मौजूद हैं और हिंदी साहित्येतिहास, व्याकरण-इतिहास के अनुरूप शब्दकोश-इतिहास का ढाँचा खड़ा किया जा सकता है ।

एक तरफ हिंदी विकास की यात्रा लगभग 1000 ई. के आस-पास मोटे तौर पर मानी जाती है; वहीं दूसरी तरफ अँग्रेजी का विकास 700 ई. के आस –पास माना गया । लेकिन हिंदी के बहुत से विद्वानों ने हिंदी का विकास 700 ई. के आस-पास भी स्वीकार किया है । इसके कारणों की तह में जाएँ तो अँग्रेजी भाषा के कारण ही हिंदी भाषा का विकास अपनाया गया होगा । इसके मान्येता गणपति चन्द्र गुप्त, राहुल सांकृत्यायन , रामकुमार वर्मा आदि हैं । अँग्रेजी साहित्य और हिंदी साहित्य की आरंभिक पृष्ठभूमि में काफी समानतायें भी है इसलिए अधिकतर विद्वानों ने अँग्रेजी के समरूप हिंदी के विकास को स्वीकार कर लिया । लेकिन हिंदी शब्दकोश की आरंभिक पृष्ठभूमि को लेकर विवाद जान पड़ता है क्योंकि अँग्रेजी के अधिकतम विद्वानों ने 7वीं सदी से अँग्रेजी शब्दकोश का आरम्भ मान लिया था और उसके प्रमाण भी मौजूद हैं । इसलिए डॉ. शमशेर ने लिखा है कि “आरंभिक अँग्रेजी भाषा के शब्दकोशों में मुख्यतः जो संग्रह हैं उनमें ऐंग्लो सैक्सन कोश लीडन पुस्तकालय में सुरक्षित है । इसकी प्रतियाँ एथिनल इर्फर्ट तथा कार्पस क्रिस्ती महाविद्यालयों में भी सुरक्षित है । ये कोश 7वीं-8वीं शताब्दी में लिपिबद्ध किये गये थे । अँग्रेजी लातिनी भाषा का पहला शब्दकोश प्रामपटोरीरियम पार्कुलेरम (Promptorium Parculorium) संज्ञा से अभिहित शब्दकोश वैयाकरण जियोफ्री (Geoffrey the Grammarian) द्वारा तैयार किया गया था । इसका प्रकाशन 1499 ई. में हुआ ।” [3] इन आधारों से यह पुष्ट होता है कि अँग्रेजी की परंपरा का 7वीं सदी में ही शुरू हो गयी थी । इसी के समानांतर जब हम हिंदी में झांकते हैं तो यह 14वीं सदी में दिखलाई पड़ती है । अमीर खुसरो विरचित ‘खालिकबारी’ जो फारसी-हिंदी कोश है वह 1320 ई. में आया । यक़ीनन अभी तक खालिकबारी से पहले का हिंदी में कोई और कोश मिला नहीं है या फिर लेखन का कार्य हुआ भी हो तो प्रमाण हमारे समक्ष उपलब्ध नहीं । दूसरी तरफ इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोत के अनुसार अँग्रेजी शब्दकोश के इतिहास में आरंभिक शब्दकोश को लेकर कहा गया है कि “’ लातिन ‘ की शब्दसूचियों ने आधुनिक कोश-रचना-पद्धति का जिस प्रकार विकास किया, अंग्रेज कोशों के विकास क्रम में उसे देखा जा सकता है। आरंभ में इन शब्दार्थसूचियों का प्रधान विधान था क्लिष्ट ‘लातिन’ शब्दों का सरल ‘लातिन’ भाषा में अर्थ सूचित करना। धीरे-धीरे सुविधा के लिये रोमन भूमि से दूरस्थ पाठक अपनी भाषा में भी उन शब्दों का अर्थ लिख देते थे। ‘ग्लाँसरी’ और ‘वोकैब्युलेरि’ के अँग्रेजी भाषी विद्वानों की प्रवृत्ति में भी यह नई भावना जगी। इस नवचेतना के परिणामस्वरूप ‘लातिन’ शब्दों का अँग्रेजी में अर्थनिर्देश करने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। इस क्रम में लैटिन-अंगेजी कोश का आरंभिक रूप सामने आया।” [4] ऐसे में हिंदी शब्दकोश परंपरा की अँग्रेजी शब्दकोश परंपरा से तुलना कैसे की जा सकती है । दूसरी तरफ शब्दकोश की आरम्भिक पृष्ठभूमि निघंटु से मान कर संस्कृत तक ही समेटकर रख दिया जाता है ।

एक अन्य जगह देखें तो अँग्रेजी कोश की पृष्ठभूमि का अध्ययन करते हुए डॉ. युगेश्वर ने लिखा है “7वीं-8वीं शताब्दी की बात है लैटिन पश्चिमी यूरोप की एक मात्र किताबी भाषा थी । लैटिन का अध्ययन समस्त अध्ययनों का ‘वाग द्वार’ (पोर्टल) समझा जाता था । पाश्चात्य कोश- विज्ञान विशेषकर अँग्रेजी कोश विज्ञान का विकास मुख्य रूप से लैटिन शब्द-सूचियों (ग्लोस्सेज) से हुआ है । अँग्रेजी विधान की तरह अँग्रेजी कोश-विज्ञान भी न तो एक व्यक्ति द्वारा और न एक युग में प्रवर्तित हुआ है, बल्कि इसका भी क्रमशः विकास हुआ है । लैटिन पुस्तकों के अध्येता पढ़ते समय जो कठिन शब्द आते थे उन्हें हाशिये पर लिख देते थे और बाद में अपने स्मरण या मित्रों की सहायता से कभी सरल लैटिन या कभी पर्यायवाची लैटिन के अभाव में अपनी ही भाषा में उक्त शब्द के उपर हलके हाथ से उस शब्द का अर्थ लिख देते थे । इस प्रकार के शब्दों को ग्लॉस कहते हैं ।” [5] इस तरह अँग्रेजी भाषा और साहित्य के विभिन्न पहलूओं का विकास 7वीं-8वीं शताब्दी में हो गया था परंतु हिंदी भाषा और साहित्य के पक्ष में यह बात 7-8वीं सदी के समय पर पूरी तरह लागू नहीं होती है पर फिर भी 100-200 साल के अंतर में ही लगभग सारी बातें दिखलाई पड़ती हैं, ऐसे में अँग्रेजी से हिंदी की तुलना ठीक नहीं है परगलत भी नहीं ।

कई बार तो अँग्रेजी के साथ हिंदी की तुलना बेमानी लगती है; कारण इसका ये है कि अँग्रेजी ने अपना क्षितिज इतना विस्तृत कर लिया है कि ज्ञान-विज्ञान लगभग सारी सामग्री इसमे सिमटी हुई है; वहीं हिंदी व्यावहारिक स्तर पर काफी दूर का सफ़र तय कर चुकी है लेकिन ज्ञान-विज्ञान के मामले में बहुत पीछे है और ज्यादातर उपलब्धता अनुवाद के सहारे है; ऐसे में दोनों भाषाओं की तुलना ठीक नहीं । वर्तमान में सूचना-क्रांति ने समाज में जो हलचल पैदा की है उससे हिंदी बहुत ज्यादा प्रभावित है; और उन्ही प्रभावों की बदौलत हिंदी आज हिंगलिश का आकार लेते हुए आगे बढ़ रही है । यह हिंगलिश इस देश के बाहर तो है ही इस देश के अंदर भी परिपूर्ण तरीके से फल-फूल रही है । इसी आधार पर महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा ने ‘वर्धा हिंदी शब्दकोश’ का निर्माण रामप्रकाश सक्सेना के नेतृत्व में किया । यह विवाद का विषय भी रहा, जिसमें तमाम तरह के आरोपों का दौर भी चला ।

शब्दकोश से जुड़ी हुई एक और बात है वो है शब्दकोश निर्माण-प्रक्रिया । अँग्रेजी कोश निर्माण की प्रक्रिया में डॉ. जॉनसन का बहुत बड़ा योगदान है । इसका आंकलन इस बात से किया जा सकता है कि इन्हें ‘इंग्लिश डिक्शनरी का पिता’ कहा जाता है । इन्होंने  लिखा है कि “I knew, that the work in which I engaged in generally considered as drudgery for the blind, as the proper toil of artless industry, a task that requires neither the light of learning, nor the activity of genius, but may be successfully performed without any higher any quality than that of bearing burdens with dull patience, and beating the track of the alphabet with sluggish resolution.” [6] 

इनके इस वक्तव्य से शब्दकोश निर्माण की प्रक्रिया के ‘अथक परिश्रम’ को समझा जा सकता है; जो प्रयोक्ताओं से कोसों दूर है । कोश-निर्माण संबंधी यह परिभाषा प्रत्येक भाषा के लिए रीढ़ बन चुकी है । लेकिन जॉनसन के इस ‘अथक परिश्रम’ संबंधी वक्तव्य पर Robert De Maria ने बाद में प्रतिक्रिया स्वरूप अपने शोध-प्रपत्र The Politics of Johnson’s Dictionary में राजनीति से जोड़कर इसका विश्लेषण किया और उन्होंने लिखा है कि “There is inevitably a politics in Johnson’s Dictionary, and any full discussion of the Dictio- nary’s politics must consider at least three sorts of evidence. First of all, there are what Donald Greene and others call the “gems,” the personal-sounding, extra lexicographical remarks that Johnson scattered about the Dictionary and in which he seems to make political commitments. Second, consideration must be given to the illustrative quotations that make up the bulk of Johnson’s book. Last, there is the mat-ter of the Dictionary as a cultural production that carries, like all other cultural productions, implicit political meaning. The three categories of evidence are relevant to somewhat different meanings of pol-itics”. [7] 

जॉनसन के कोश-निर्माण की प्रक्रिया पर सवाल उठाना उतना ही आसान है जितना कि उनके द्वारा किये गये कार्यों को आगे बढ़ाना मुश्किल । इसलिए Robert De Maria ने जॉनसन की कोश निर्माण संबंधी अवधारणा को तीन श्रेणियों में विभाजित करके उसे समझाने का प्रयास किया है ।

शब्दकोश निर्माण की प्रक्रिया के संदर्भ में एक और महत्त्वपूर्ण बात जो नज़र आती है वो ये कि हिंदी और अँग्रेजी दोनों के कोशों का अपना भौगोलिक ढाँचा है और शब्द के उच्चारण अलग-अलग हैं; ऐसे में जाहिर है कि शब्दकोश निर्माण और शब्द निर्माण दोनों का स्वरुप अलग-अलग होगा । पर बहुत से टूल्स ऐसे भी हैं जो दोनों में समानता भी रखते हैं क्योंकि इन दोनों ही भाषाओंका विकास भारोपीय भाषा परिवार से हुआ है । इसीलिए विलियम जोन्स ने संस्कृत, लैटिन और ग्रीक में समानताओं पर कार्य करके जो विजन प्रस्तुत किया वह आधुनिक भाषाविज्ञान की नींव बन गया । इसके बाद फर्डिनांड डी सस्युर और नोम चोमस्की ने क्रांतिकारी कार्य करके आधुनिक भाषाविज्ञान का वैज्ञानिक ढाँचा मज़बूत किया ।

जिस प्रकार प्रत्येक देश का साहित्य और उसका साहित्येतिहास होता है वैसे ही उस भाषा का शब्दभंडार भी होता है; जिसे शब्दकोश आदि कई नामों से अभिहित करते हैं । इस वैज्ञानिक युग में अध्ययन का प्रत्येक विषय का अध्ययन विज्ञान के रूप में होने लगा है; ऐसे में शब्दकोश भी कोश विज्ञान अध्ययन का विषय बन गया । लेकिन हिंदी एवं भारतकी सभी भाषाओंमें शब्दकोश का अध्ययन कमतर होने से यह हाशिये पर चला गया । प्रमाणस्वरूप ताज़ातरीन स्थिति भाषा-सर्वेक्षणों से देखा-समझी जा सकती है ।

हिंदी एवं अँग्रेजी दोनों ही दो देश की अलग-अलग भाषाएँ हैं और चूँकि अँग्रेजी वैश्विक भाषा है इसीलिए इसका फलक भी विस्तृत है । हिंदी और अँग्रेजी दोनों को तुलनात्मक रूप से देखें तो संख्यात्मक दृष्टि से हिंदी हावी है, परंतु वैश्विक स्तर, ज्ञान-विज्ञान के स्तर पर हम जब विश्लेषण करते हैं तो फिर हिंदी का दायरा छोटा हो जाता है ।

यक़ीनन जिस हिंदी की वकालत हिंदी के अध्येता आदि कर रहे हैं वह दरअसल अन्यों के अध्येताओं से भिन्न होगी पर इसका मतलब ये कतई नहीं कि आप उल-जुलूल तरीके से किसी भी शब्दों का संग्रहण शुरू कर दें । ‘वर्धा हिन्दी शब्दकोश’ ने कुछ ऐसा ही किया था; बहुत ही आसान-से अँग्रेजी शब्द जिनका कि हिंदी शब्द मौजूद था फिर भी उन्होंने उन अँग्रेजी शब्दों को शामिल करके बखेड़ा खड़ा कर दिया और इसलिए उन्हें काफी विरोध भी झेलना पड़ा ।

जहाँ तक दोनों के शब्द निर्माण का सवाल है वह लगभग एक जैसा ही है जैसे कि मूल शब्द, उपसर्ग, प्रत्यय कैसे एक दूसरे के साथ जुड़कर शब्द का निर्माण करते हैं या शब्द बनते हैं । पर इन सबके अलावा समास, अनूदित, संकर आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है; इसका भी वर्णन किया जाता है ।

हिंदी भाषा और साहित्य के सभी पक्षों पर दृष्टिपात करें तो ज्यादातर उसका लेखन अँग्रेजी के अनुरूप ही चलाने का प्रयास किया गया है; चाहे वह व्याकरण-इतिहास हो, साहित्य-इतिहास हो या फिर भाषा का इतिहास । चूँकि शब्दकोश इसी भाषा का एक अंग है इसलिए इसकी परंपरा भी खालिकबारी आदि से मान लेनी चाहिए ।

संदर्भ

  1. सं. रामप्रकाश सक्सेना – वर्धा हिंदी शब्दकोश भूमिका, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली
  2. Ed. B. G. Mishra – Lexicography in India, page 54, Central Institute of Indian Languages, Mysore
  3. डॉ. शमशेर गुप्ता – हिंदी साहित्य में संदर्भ ग्रंथों की परंपरा एवं प्रयोग पृष्ठ सं44, इतिहास शोध संस्थान, दिल्ली
  4. https://hi.wikipedia.org/wiki/अँग्रेजी_शब्दकोशों_का_इतिहास
  5. हिंदी कोश विज्ञान का उद्भव और विकास पृष्ठ सं. 46
  6. Samuel Johnson – The Plan of a Dictionary of the English Language, page 29 (Ed. RRK Hartman – Lexicography Critical Concepts, Routledge Publication)
  7. Robert DeMaria, Jr – The Politics of Johnson’s Dictionary page 1 Source: PMLA, Vol. 104, No. 1 (Jan., 1989), pp. 64-74 Published by: Modern Language Association

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