हिंदी भाषा का आधुनिकीकरण

आधुनिकीकरण की संकल्पना

आधुनिकीकरण शब्द तो आधुनिक है, किंतु देश हो या समाज भाषा हो या संस्कृति, इन सभी के सप्रयास या सहज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अत्यंत प्राचीन है। आधुनिकता की संकल्पना के साथ एक विशेष बात यह रही है कि अगली पीढ़ी उसे शत-प्रतिशत अच्छे के रूप में देखती है, तो पिछली पीढ़ी उससे पूरी तरह असहमत होते हुए भी अगली पीढ़ी के सम्मुख घुटने टेकती हुई नजर आती है। आधुनिकीकरण मात्र साधनों का बढ़ना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक इकाइयों का स्वरूप बदलना भी है। साथ ही इससे समाज में गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। इसी का परिणाम है कि भौगोलिक दूरियाँ तो कम हो गई है, पर वैचारिक दूरियाँ बढ़ गई हैं। 

 आधुनिकीकरण का अर्थ  और प्रयोजन

आधुनिकीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके सहारे समाज आधुनिकता के लक्ष्य को साधता हैं, भाषिक समृद्धि की दृष्टि से होने वाला हर परिवर्तन या बदलाव उस ‘भाषा का विकास’ है, पर भाषा-विकास के सीमा-क्षेत्र मे आने वाला हर परिवर्तन आधुनिकीकरण की संज्ञा पाए यह आवश्यक नहीं।

मलेशिया के प्रसिद्ध भाषाविद अलिसहबाना ने आधुनिकीकरण के संदर्भ में छह प्रवृत्तियों का उल्लेख किया है।यथा-वैयक्तिकीकरण, बौद्धिकीकरण, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, लौकिकीकरण तथा पश्चिमीकरण। उनके अनुसार भाषा के आधुनिकीकरण को प्रायः औद्योगीकरण तथा शहरीकरण जैसे सामाजिक विकास के साथ कभी-कभी पश्चिमीकरण के साथ जोड़ने की भूल कर दी जाती है। उनका यह मानना है कि जब कोई संस्कृति अभिव्यक्तिपरक मूल्यों को छोड़कर प्रगतिपरक मूल्यों की ओर अग्रसर होती है अर्थात् धार्मिक मूल्यों को छोड़कर सैद्धांतिक अथवा आर्थिक मूल्यों को पकड़ती है, तो इस प्रवृत्ति को ही आधुनिकीकरण कहा जा सकता है। डॉ. देवी प्रसाद पटनायक के अनुसार ‘‘प्रतिष्ठित तथा कम प्रतिष्ठित भाषाओं में समानता लाने की प्रवृत्ति को आधुनिकीकरण की संज्ञा दी जा सकती है।’’ प्रो0 रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ‘‘भाषाओं का आधुनिकीकरण भाषा-विशेष का एक लक्ष्यगामी पक्ष है। भाषा विकास का संबंध किसी भी प्रयुक्ति (Register) और किसी भी प्रोक्ति (Discourse) के क्षेत्र में भाषा के प्रयोग-विस्तार और अभिव्यक्ति प्रसार के साथ रहता है।’’

हिंदी में पिछले दशकों तक हुए अध्ययनों में इसी मान्यता के आधार पर हिंदी में आधुनिकीकरण की प्रवृत्ति को रेखांकित किया गया, किंतु परवर्ती विश्लेषण में इन मान्यताओं पर प्रश्न-चिह्न लगा दिया, क्योंकि अलिसहबाना की मूल धारणा से आभास होता है कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया केवल उन भाषाओं में संभव है, जिन्हें आपाततः अविकसित या कम विकसित माना जाए। इस धारणा के अनुसार अंग्रेजी, रूसी, फ्रांसीसी आदि भाषाओं में आधुनिकीकरण संभव ही नहीं होगा, क्योंकि ये भाषाएँ तो पहले से ही प्रगतिपरक संस्कृति का मार्ग चुन चुकी हैं।

फर्गुसन इस संदर्भ में अलग ही विचार रखते हैं और आधुनिकीकरण को अंतरअनुवादकीयता से जोड़ते हुए कहते हैं कि ‘‘जिस भाषा में अन्य भाषा में व्यक्त सामग्री को भली-भाँति अनुदित रूप में अभिव्यक्त करने में सामर्थ्य है, भाषा उस सीमा तक आधुनिकीकृत मानी जा सकती है।

इस आधार पर यदि अंग्रेजी में योग, आसन, कर्म, शांति आदि शब्द ग्रहण कर लिए जाते हैं, तो अंग्रेजी भी उस सीमा तक आधुनिकीकृत हो जायेगी, जैसे हिंदी में बल्ब, इंजन, रेल आदि शब्द ग्रहण कर लिए जाने के बाद आधुनिकीकृत माना जाता है।

डॉ. हंसराज दुआ अंतरअनुवादनीयता को आधुनिकीकरण का आधार मानने से हिचकिचाते हैं उनके अनुसार अच्छे अनुवाद का सही मूल्यांकन करना संभव नहीं है। इस संदर्भ में डॉ. देवी प्रसाद पटनायक संदेह व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अंग्रेजी आधारित भाषाविद संभवतः आधुनिकीकरण की इस परिभाषा से सहमत न हों, परंतु अन्य विकल्प के अभाव में फर्गुसन की परिभाषा अधिक सटीक और उचित मानी जाएगी। अर्थात् आधुनिकीकरण लक्ष्यगामी भाषा-विकास की ऐसी प्रवृत्ति है, जिसका संबंध प्रगतिपरक संस्कृति के साथ किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। इसके दो स्पष्ट रूप दिखलाई पड़ते हैं- पहला परिमाणात्मक और दूसरा गुणात्मक। परिमाणात्मक पक्ष भाषा के ज्ञान-विज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष को संवर्धित करता है। गुणात्मक पक्ष अभिव्यक्तिपरक संस्कृति के प्रगतिपरक संस्कृति में रूपांतरित करने की दृष्टि से किये गए भाषा-प्रयोग से संबद्ध होता है।

  1. अभिव्यक्ति विस्तार – इसमें पहले से अभिव्यक्ति तो है, ही लेकिन नये संदर्भ में उसके अर्थ क्षेत्र में विस्तार भी हुआ है।

शब्द > पहली अभिव्यक्ति > अर्थ विस्तार का शब्द

आकाशवाणी >  देववाणी > आल इण्डिया रेडियो

विद्युत-बिजली > तड़ित >  इलेक्ट्रिसिटी

तारा (सितारा) > आकाश का तारा > फिल्म स्टार

  1. अभिव्यक्ति संकोच –

संसद > सभामण्डल >  पार्लियामेन्ट

सचिव > सलाहकार, सचिव, सहचर > सेक्रेटरी

आयुक्त > नियुक्त जुड़ा हुआ > कमिश्नर

  1. अनूदित अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत शब्द का शब्दशः पूर्वानुवाद कर उसी की अभिव्यक्ति के समान लक्ष्य-भाषा को अर्थ दिया जाता है।

श्वेत पत्र – ह्वाइट पेपर

सुरक्षा परिषद – सिक्योरिटी कौंसिल

भूस्खलन – लैण्ड स्लाइड

पहचान पत्र – आइडेंटिटी कार्ड

रजत जयंती – सिल्वर जुबिली

  1. मिश्रित अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के शब्द का अंशानुवाद किया जाता है। इसमें एक अंश का अंशानुवाद होता है और दूसरे का अनुवाद नहीं किया जाता है।

डायरीकार – डायरिस्ट

बैंककारी – बैंकिंग

रजीस्ट्रीकृत – रजिस्टर्ड

रेखित चैक – क्रास्ट चैक

पुलिस आयोग – पुलिस कमीशन

कपड़ा मिल – क्लाथ मिल

  1. सर्जनात्मक अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के शब्दों के अर्थ या भाव के आधार पर लक्ष्य-भाषा में नई अभिव्यक्ति दी जाती है।

राज्यपाल – गर्वनर

कुलसचिव – रजिस्ट्रार

नसबंदी – स्टरलाईजेशन

संकाय – फैकल्टी

भाई-भतीजावाद – नेपोटिज्म

  1. पुनः प्रस्तुत अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के भाव या अर्थ के समझ वाली वह अभिव्यक्ति दी जाती है, जो स्रोत-भाषा में पहले से विद्यमान है।

पुष्य तिथि – डेथ एनिवर्सरी

गुट निरपेक्षता – नान एलाइनमेंट

सभा-कक्ष – काफ्रेंस हॉल

विमान परिचारिका – एयर होस्ट्रिस

(आकाशकन्या)

  1. रूपांतरित अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के शब्दों व लक्ष्य-भाषा अपनी ध्वनि व्यवस्था के अनुसार स्वीकृत रूप से ग्रहण कर लेती है।

अकादमी – एकेडमी

तकनीक – टेक्नीक

अंतरिम – इंटेरिम

कामदी – कॉमेडी

परवलय – पेरोबोला

  1. गृहित अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के शब्दों को लक्ष्य-भाषा में बिना अनुवाद या ध्वनि परिवर्तन किए ग्रहण कर लिया जाता है और उसकी वही अभिव्यक्ति होती है, जो स्रोत-भाषा में होती है।

टिकट – टिकट

गारंटी – गारंटी

बोनस – बोनस

कंप्यूटर – कंप्यूटर  

प्रोटीन – प्रोटीन

विटामिन – विटामिन

  1. द्विरूपी अभिव्यक्ति – इमसें स्रोत-भाषा में विद्यमान अभिव्यक्ति के समांतर एक नयी अभिव्यक्ति का अनुवाद कर दिया जाता है, किंतु उसी के अनुरूप लक्ष्य-भाषा में यह स्वयं ही उसी संकल्पना के अनुरूप अभिव्यक्ति होती है। इसमें एक ही संकल्पना की दो-दो अभिव्यक्तियाँ प्रस्तुत होती हैं।

अनशन, भूख हड़ताल – हंगर स्ट्राइक

दीमक, सफेद चींटी – वाइट ऐंट

जच्चाघर, प्रसूति गृह – मैटर्निटी होम

अज्ञातवास, भूमिगत – अंडर ग्राउण्ड

काली सूची, राज्य सूची – ब्लैक लिस्ट

  1. व्याख्यापरक अभिव्यक्ति – इसमें स्रोत-भाषा के शब्दों (विशेष कर संयुक्त शब्दों) के भाव या अर्थ के अनुसार लक्ष्य-भाषा में व्याख्यापरक शब्द रख लिये जाते हैं।

परिवेशजन्य सीमाएँ – इन्वायरनमेंटल हैण्डीकैप्स

सनसनीखेज पत्रकारिता – होलो प्रेस

हिंदी का आधुनिकीकरण – पारिभाषिक शब्दावली के संदर्भ में

पारिभाषिक शब्दावली:- ‘पारिभाषिक’ शब्द अंग्रेजी के टेक्निकल शब्द का हिंदी पर्याय है। अंग्रेजी में टेक्निकल’ शब्द का अर्थ है – वह शब्द जो किसी निर्मित या खोजी गई वस्तु या विचार को व्यक्त करता है। टेक्निकल का कोशीय अर्थ – of a particular Art, Science, Craft or about Art अर्थात् विशिष्ट कला विज्ञान तथा शिल्प विषयक के अलावा विशिष्ट कला के बारे में।

सामान्य शब्द और पारिभाषिक शब्द का विश्लेषण किया जाए, तो सामान्य शब्द में यथार्थ वस्तु और उसकी संकल्पना अनिश्चित रहती है। उसमें लचीलापन होता है और उसमें संदिग्धता भी हो सकती है। इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, भौगोलिक परिवेशों के कारण कई अर्थ निकाले जाते हैं, परंतु पारिभाषिक शब्द में संकल्पना और यथार्थ वस्तु निश्चित होते हैं, उनमें स्पष्टता होती है और वे स्वयं सिद्ध होते हैं तथा उनके प्रयोग में सैद्धांतिक परिवेश का बोध होता है। भोलानाथ तिवारी के अनुसार ‘‘पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्द को कहते हैं, जो विषय-विशेष में प्रयुक्त हों, जिसकी किसी विषय का सिद्धांत के प्रसंग में सुनिश्चित परिभाषा हो, जिसकी अर्थ परिधि सुनिश्चित हो तथा जो अन्य पारिभाषिक शब्द या शब्दों से अर्थ और प्रयोग में स्पष्टतः अलग हों। डॉ. महेन्द्र सिंह राणा ने पारिभाषिक शब्द को पारिभाषित करते हुए कहते हैं कि ‘‘जो शब्दावली सामान्य व्यवहार की भाषा में प्रयुक्त न होकर ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विषय एवं संदर्भ के अनुरूप विशिष्ट एवं निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होती है उसे पारिभाषिक शब्दावली कहा जाता है। इसे तकनीकी शब्दावली भी कहते हैं।’’

पारिभाषिक शब्दों की विशेषताएं –

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार पारिभाषिक शब्दों की निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए –

  1. उनका अर्थ स्पष्ट और सुनिश्चित होना चाहिए।
  2. विषय या सिद्धांत में उनका एक ही अर्थ होना चाहिए।
  3. एक विषय में एक संकल्पना या वस्तु के लिए एक ही पारिभाषिक शब्द होना चाहिए।
  4. पारिभाषिक शब्द यथासाध्य छोटा होना चाहिए, ताकि प्रयोग में असुविधा न हो।
  5. उसे यथासाध्य मूल होना चाहिए, व्याख्यापरक नहीं। उदाहरण के लिए जीवविज्ञान में ‘दीमक’ शब्द ठीक है। उसी के लिए चलने वाला दूसरा शब्द ‘सफेद चींटीं’ (White ant) नहीं, जो व्याख्यात्मक है। ऐसे ही ‘अनशन’ ज्यादा अच्छा है बनिस्पत ‘भूख हड़ताल’ (Hunger strike) के।
  6. पारिभाषिक शब्द ऐसा होना चाहिए, जिससे सरलतापूर्वक नए शब्द बनाए जा सकें। जैसे ‘मानव’ जिससे मानवता, मानवीय, मानवीयता, मानवीकरण, मानविकी आदि सरलता से बन गए हैं। इसके स्थान पर ‘नृ’ लें तो उससे इस प्रकार शब्द बनाना कठिन होगा, यद्यपि इसका भी अर्थ ‘मानव’ ही है।
  7. समान श्रेणी के पारिभाषिक शब्दों मे एकरूपता होनी चाहिए। जैसे भाषाशास्त्र में स्वनिम, रूपिम, लेखिम या उपस्का, उपरूप, उपअर्थ, उपलेख आदि। इसके विपरीत यदि स्वनिम को ध्वनिग्राम कहें तो रूमिप आदि के साथ उसकी एकरूपता नहीं रहेगी।

पारिभाषिक शब्दों के प्रकार :- कुछ पारिभाषिक शब्द ऐसे मिलते हैं, जो विषय विशेष के पारिभाषिक अर्थ में तो प्रयुक्त होते हैं, परंतु उससे बाहर उनका प्रयोग सामान्य भाषा में सामान्य अर्थ में भी नहीं होता। पारिभाषिक शब्दों के मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  1. पूर्ण पारिभाषिक – वे शब्द जो मात्र पारिभाषिक अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, इनका प्रयोग क्षेत्र ज्ञान-विज्ञान का क्षेत्र ही होता है। सामान्य बोलचाल का नहीं। उदाहरणार्थ – व्याकरण का क्रियाविशेषण, दर्शन का अद्वैत तथा गणित का दशमलव इसी प्रकार के शब्द हैं।
  2. अर्ध पारिभाषिक – कुछ शब्दों का प्रयोग विषय-विशेष के साथ-साथ सामान्य शब्दावली के रूप में भी होता है। इन्हें अर्धपारिभाषिक शब्द कहा जाता हैं रस, मंजरी, अक्षर, खपत आदि शब्दों का प्रयोग सामान्य भाषा में भी होता है साथ ही साथ काव्यशास्त्र, प्रशासन व्याकरण और अर्थशास्त्र में भी एक निश्चित अर्थ के रूप में होता है।

भाषा इस वर्गीकरण कुछ निम्न कोटियाँ भी मिलती हैं- 

  1.  राष्ट्रीयतावादी (संस्कृतवादी):- इस मत के अनुसार संस्कृत के प्रचलित शब्दों को यथावत हिंदी शब्दावली में ले लिया जाए। संस्कृत संश्लेषणात्मक भाषा है और यह उपसर्ग, धातु और प्रत्यय तक समास शक्ति के कारण बड़ी उर्वरक है। इस भाषा में एक शब्द में अनेक शब्द बनाने की शक्ति है। जैसे ‘विधि’ के साथ उपसर्ग या प्रत्यय या दोनों लगाने से संविधि, विधान, संविधान, प्राविधान, विधायी, विधायक, विधायिका आदि शब्द बन जाते हैं।
  2. अंतरराष्ट्रीयतावादी (अंग्रेजीवादी):- इन लोगों की मान्यता है कि अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है और भारत भी बहुभाषी देश है। अतः अंग्रेजी के ही शब्दों को ज्यों-का-त्यों या अपनी भाषा की ध्वनि व्यवस्था के अनुसार अपनाया जाए। जैसे, मोटर, ड्यूटी, ओवरड्राफ्ट, ग्रेड आदि।
  3.  लोकवादी (स्वभाषावादी):- आम बोलचाल की भाषा के शब्द ही लिए जाएं, जो हमारी मिश्रित संस्कृति के अनुकूल है। जैसे- रेलगाड़ी, मसौदा, डाकघर, जच्चा घर, नजरबंद, दलबदलू, घुसपैठिया, निपटान। इससे शब्दावली समृद्ध नहीं हो पाएगी और मानक भाषा में उनके अनूदित शब्द अटपट से लगते हैं। यह नीति पारिभाषिक शब्दावली के लिए पर्याप्त नहीं है।
  4. समन्वयवादी:- इसे मध्यमार्गी संप्रदाय भी कहा जा सकता हैं इसमें उपर्युक्त तीन दृष्टिकोणों को समंवित रूप से ग्रहण किया गया है। इसमें इन शब्दों को रखने की बात की गई है जिन्हें संदर्भानुसार उपयुक्त समझा जाए। ये शब्द संस्कृत से लिए जा सकते हैं या अंग्रेजी से लिए जा सकते हैं और ये देशी शब्द भी हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप इस समय हिंदी में उपर्युक्त तीनों प्रवृत्तियों विद्यमान हैं – कचहरी, न्यायालय, अदालत, कोर्ट; जच्चा घर, प्रसूतिगृह, मैटर्निटी होम; सरकार, हुकूमत, शासन गवर्नमेन्ट; चुनाव, निर्वाचन, इलेक्शन; राज्यक्ष्मा, तपेदिक, टी.बी.; कृषि, काश्त, खेती, ऐग्रीकल्चर, श्वास, दमा, अस्थमा, साँस आदि।

भाषाविद् डॉ. रघुवीर ने पारिभाषिक शब्दावली-निर्माण के संबंध में अधोलिखित सिद्धांतों की चर्चा की थी-

  • प्रत्येक मुख्य अर्थ हेतु पृथक् शब्द का होना, यथा- पावर – शक्ति, फोर्स, एनर्जी -ऊर्जा।
  • प्रत्येक शब्द अंवर्थ/अर्थानुगामी हो, यथा- स्थानान्तरण की माप/स्पीड – गति; स्थानांतरण की प्रवृत्ति/पेस – चाल।
  • समस्त पद का आकार चार अक्षरों से अधिक न हो, यथा- फास्फोरस – भास्वर।
  • पश्चिमी देशों से आगत शब्दों के विभिन्न या अनेक प्रतीकों तथा संक्षेपों के लिए भारतीय शब्द भी विभिन्न या अनेक प्रतीक तथा संक्षेपवाले होने चाहिए, जैसे- गणित रसायन आदि विषयों में प्रयुक्त विभिन्न संक्षेप तथा प्रतीक (/चिह्न)।
  • पश्चिमी देशों से आगत असमस्त पदों का अनुवाद असमस्त पदों के रूप में किया जाना चाहिए, जैसे- सिग्नल – संकेतक, न कि अग्निस्थगमनागम-सूचक लौहपट्टिका। इस प्रकार के व्याख्यात्मक अनुवाद नहीं होने चाहिए।
  • जहाँ तक हो सके उपसर्ग तथा प्रत्ययों का अनुवाद भी उपसर्ग तथा प्रत्ययों से किया जाए, जैसे – Phosph – भास्व में उपसर्ग प्रत्ययों के योग से बने शब्द –

Peri – परि Perimeter – परिमाप

Sub – अनु Subgenus – अनुप्रजाति

Anti – प्रति- Antimere – प्रतिखंड

ation – ईयन Phosphation – भास्वीयेयन

ide – ईय Phsphide – भास्वीय

in – इन Phsphin – भास्विन

inic – अयिक Phosphinic – भास्वयिक

  • पश्चिमी देशों से आगत समस्त शब्द का सार्थक विग्रह करने के बाद उन अंगों का अनुवाद करते हुए समस्त पद बनाया जाए, जैसे – Centrifugal – केंद्रापग (केंद्र से अपगमन करने वाला)। Centre -केंद्र अपग।
  • किसी विदेशी शब्द से बने विभिन्न रूप उसके अनूदित शब्द से व्युत्पन्न होने चाहिए, जैसे –

Law – विधि Legislate – विधान

Lawful – विधिवत Legislative – विधायी

Legal – वैध Legislature – विधायिनी

Illegal – अवैध legislatorial – विधायकीय

  • शब्दों के व्याकरणिक तथा अर्थ संबद्ध पदों का संकलन करते हुए उपयुक्त अनुवाद किया जाए, यथा-

Acid – अम्ल Acidic – अम्लिक

Acidient – अम्लकर Acidification – अम्लन

Prerogative – परमाधिकार Privilege – विशेषाधिकार

  • नये विचारों के लिए नये प्रत्ययों के निर्माण की आवश्यकता है। अंग्रेजी में रसायन संबंधी धातुवाची तत्त्वों का द्योतन प्रत्यययुक्त होता है, इसके लिए -आत प्रत्यय का निर्माण किया जा सकता है, जैसे- Alumin-स्फटी; Aluminum-स्फट्यात।
  • नवीन शब्द निर्माण से पूर्व भारतीय प्राचीन भाषाओं के ग्रंथों में तथा संस्कृत-प्रभावित अन्य देशों में उपलब्ध शब्दों का अनुसंधान करना आवश्यक है।
  • ऐसे शब्दों को अखिल भारतीय पारिभाषिक शब्दावली में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए, जो किसी क्षेत्रीय भाषा में भिन्न अर्थ के सूचक हों, जैसे- वायरलेस – वितन्तु। ‘वितन्तु’ का तेलुगु में अर्थ है ‘विधवा’ तथा वायरलेस के लिए तेलगु शब्द है – निस्तन्द्री; अतः वितन्तु के स्थान पर ‘ निस्तंत्री’ को प्राथमिकता देना उचित है।
  • पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग शासकीय स्तर पर किया जाए, जन साधारण के मध्य सामान्य तथा पारिभाषिक शब्द साथ-साथ चल सकते हैं, क्योंकि जन साधारण शास्त्रीय शब्दों की शनैः-शनैः ही ग्रहण कर पाता है।

 कुछ पारिभाषिक शब्दावलियाँ निम्नलिखित हैं –

प्रशासन

Acceptanceस्वीकृति
Accordinglyतदनुसार, लिहाजा
Acknowledgementपावती, प्राप्ति-सूचना, अभिस्वीकृति
Agendaकार्यसूची, कार्यक्रम
Agentअभिकर्ता, एजेंट
Auditलेखापरीक्षा, संपरीक्षा
Authority1. प्राधिकारी, 2. प्राधिकार, 3. प्राधिकरण
Autonomousस्वायत्त
Bondबंधपत्र, बोण्ड
Clear vacancyस्पष्ट, रिक्ति
Clerical errorलेखन-अशुद्धि, लेखन-त्रुटि, लिखाई की भूल
Decentralizationविकेंद्रीकरण
Deputation1. प्रतिनियुक्ति 2. शिष्टमण्डल
Director-Generalमहानिदेशक
Disbursementवितरण, बांटना
Draftsmanप्रारूपकार, नक्शानवीस
Formalऔपचारिक
Gazetteराजपत्र, गजट
Jurisdictionअधिकार-क्षेत्र क्षेत्राधिकार, अधिकारिता
Maintenance1. अनुरक्षण, 2. रखना, भरण-पोषण
Verificationसत्यापन

मानविकी

Abnormalअपसामान्य, विकृत
Adaptationरूपान्तर (समाती0) अनुयोजन (संग0) व्यनुकूलन (मनो0
Annual returnवार्षिक विवरणी
Authoritarianसत्तावादी
Bankingअधिकोषण, बैंकिंग
Behaviourismव्यवहारवाद (मनो0)
Beaurucracyअधिकारीतंत्र, नौकरशाही, दफ्तरशाही
Constituencyनिर्वाचन-क्षेत्र
Consumerउपभोक्ता
Custom dutyसीमा-शुल्क
Dead accountनिष्क्रिय-लेखा बन्द लेखा (ढा0
Economy sizeकिफायती आकार
Environmentपरिवेश
Estate dutyसंपदा-शुल्क (अर्थ0)
Face valueअंकित मूल्य (वा0)
Humanismमानवतावाद
Personnificationमानवीकरण

विज्ञान

Abdomenउदर (प्रा0 गृह0)
Acousticsध्वानिकी, ध्वनिविज्ञान (भौ0)
Antibioticप्रतिजैविक (रसा0, प्रा0)
Astronauticsअन्तरिक्षयानिकी ( भौ0,ग0)
Condensationद्रवण, संघनन (रसा0भौ0)
Ecologyपरिस्थितिकी, परिस्थितिविज्ञान (जीव0)
Expirationनिःश्वसन (प्रा0 गृह0)
Frequency1. आवृत्ति (भौ0) बारंबारता (ग0
Geneticआनुवंशिक (जीव0, भूवि0)
Heterogeneous1. विषमांग, विषमांगी, 2. विषमजातीय, विजातीय (जीव0भूवि0)
Homogeneous1. समांग, समांगी, 2. सजातीय (रसा0भौ0), 3. समघात समभाव (ग0)
Nutritionपोषण (वन0, गृह0)
Operation1. सक्रिय (ग0), 2. प्रचालन (रसा0 भौ0, भूवि0)
Orbit1. कक्षा (भौ0 भूगो0) 2. नेगरव, नेत्रकोटर, अक्षिकोट (प्रा0)
Pradatorपरभक्षी (प्रा0)
Productगुणनफल (ग0, गृह0) उत्पाद (रसा0)
Proportionalआनुपातिक समानुपातिक, (गृह0, ग0 भौ0)
Radiationविकिरण (भौ0)
Reactionप्रतिक्रिया (भौ0) अभिक्रिया, क्रिया (रसा0)
Standard deviationमानक विचलन (भौ0)
Synthesisसंश्लेषण (रसा0)
Zooplanktonप्राणिलवक (भूवि0, प्रा0)

संदर्भ ग्रंथ सूची

1. Ferguson, C. A. 1959. ‘Diglossis’. Word 15.325.-40

2. Ferguson, C. A. & J.J. Gumperz. 1966. Linguistic Diversity in South Asia Studies in Regional Social and Functional Variation. Bloomington, Indiana University Press.

3. Fishman, J. A. (ed.) 1968. Readings in the Sociology of Language. The Hague, Mouton.

4. Fishman, J. A. 1971. Advances in Sociology of Language, Vol. I. The Hague, Mouton.

5. Misra, B.G. 1976. Studies in Bilingualism. Mysore, C.I.I.L.

6. Pattanayak, D.P. 1977.Papers in Indian Sociolinguistics, Mysore, C.I.I.L.

7. श्रीवास्तव रविन्द्रनाथ व रमानाथ सहाय, (संपा.)1976 हिंदी का सामाजिक संदर्भ. केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा।

8. श्रीवास्तव, रविन्द्रनाथ.1994. हिंदी भाषा का समाजशास्त्र. राधाकृष्ण प्रकाशन नई दिल्ली।

9. तिवारी, भोलानाथ. 1951. भाषा विज्ञान. हिंदुस्तानी एकेडमी इलाहाबाद।

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