हिंदी-उर्दू शब्दावली : व्यतिरेकी विश्लेषण
भारतीय आर्य परिवार की प्रमुख भाषा हिंदी आज संपूर्ण भारत की सम्पर्क भाषा के रूप में स्थापित है, जिसका वर्तमान स्वरूप क्रमिक विकास का प्रतिफल है। हिंदी को आज समाज की सम्प्रेषण व्यवस्था की विविध भूमिकाओं के निर्वहन का अवसर प्राप्त हुआ है। यह भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में एक विशाल क्षेत्र की भाषा है। इसका प्रयोग पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक, विज्ञापन, टी० वी०, रेडियो, जनसंचार, पत्रकारिता, कम्प्यूटर, टेक्नोलॉजी आदि सभी क्षेत्रों में हो रहा है। प्रायः कुछ विद्वान उर्दू को हिंदी की एक शैली के रूप में मानते हैं जिसका झुकाव संस्कृत की ओर न होकर अरबी-फारसी की ओर अधिक है, लेकिन किन्हीं कारणों से अलग-अलग भाषाएँ मानी जाती हैं। इस भाषा को लिखने के लिए अरबी-फारसी लिपि का प्रयोग किया जाता है।
प्रत्येक भाषा किसी न किसी अन्य भाषा से जहाँ कतिपय बिंदुओं पर समानता रखती है, वहीं उनमें कुछ संरचनात्मक असमानताएँ भी अवश्य प्राप्त होती हैं। दो भाषाओं की संरचनात्मक व्यवस्था के मध्य प्राप्त इन्हीं असमान बिंदुओं को उद्घाटित करने के लिए व्यतिरेकी विश्लेषण का प्रयोग किया जाता है।
दो भाषाओं की शब्द सम्पदा में प्राप्त व्यतिरेकी बिंदुओं को उद्घाटित करना अत्यन्त जटिल कार्य है। प्रायः विद्वान शब्द सम्पदा के किसी एक पक्ष के मध्य व्यतिरेकों का उल्लेख करते हैं। हिंदी तथा उर्दू भाषाओं की भाषा संरचना का गहन अध्ययन इस तथ्य का संकेतक है कि इन भाषाओं में संज्ञा (लिंग, वचन, कारक आदि), सर्वनाम तथा क्रिया के स्तर पर समता अधिक विषमता अत्यल्प मिलती है और दोनों भाषाओं के मध्य असमानता या विषमता मुख्यतः कोशीय स्तर पर प्राप्त होती है। प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य कोशीय स्तर पर प्राप्त इन्हीं व्यतिरेकी बिंदुओं का उद्घाटन करना है। प्रस्तुत विश्लेषण का आधार भाषाविद् रार्बट लेडो द्वारा प्रतिपादित छः मानदण्डों को बनाया गया है—
1.रूप एवं अर्थ में समानता:- इस वर्ग में उन शब्दों को रखा जाता है जो स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा में ध्वनि अथवा लिपि तथा अर्थ के स्तर पर समान होते हैं। इस वर्ग में आने वाले शब्द समान अथवा भिन्न मूल के हो सकते हैं। हिंदी-उर्दू में इस प्रकार के अनेकानेक शब्द प्राप्त होते हैं यथा- कोठी, शहर, दीवार, कमरा, सन्नाटा आदि।
2.रूपगत समानता और अर्थगत भिन्नता:- दो भाषाओं में प्राप्त समतुल्य शब्दों के मध्य कभी-कभी सूक्ष्म अर्थ समानता तो कभी सूक्ष्म भिन्नता दृष्टिगत होती है। अनेक शब्दों में पूर्ण अर्थगत भिन्नता भी दिखाई देती है। शोध के क्रम में कुछ ऐसे शब्द प्राप्त हुए हैं जिनमें रूपगत समानता किंतु अर्थगत भिन्नता व्याप्त है, यथा—
शब्द | अर्थ | |
हिंदी | उर्दू | |
सहन | बर्दाश्त करना | आँगन |
सुदूर | अधिक दूर | जारी होना |
बेल | एक प्रकार का फल | फावड़ा / कुदाल |
माली | बाग का रखवाला | धन संबंधी |
उपर्युक्त वर्णन इस तथ्य का संकेतक हैं कि अध्येय भाषाओं में समान ध्वन्यात्मक स्वरूप वाले शब्दों की कमी नहीं है। समान आकार-प्रकार और रूप होने पर भी ये शब्द दोनो भाषाओं में अलग-अलग अर्थ व्यंजित करते हैं।[1]
3.रूपगत भिन्नता एंव अर्थगत समानता:- दो भाषाओं के मध्य पाए जाने वाले ऐसे शब्द जिनमें रूपगत भिन्नता एवं अर्थगत समानता होती है, इस वर्ग में रखे जाते हैं। एक ही भाषा के इस प्रकार के शब्दों को पर्यायवाची की संज्ञा दी जाती है। हिंदी-उर्दू में इस स्तर पर प्रात शब्दों की संख्या बहुत अधिक है, यथा—
हिंदी उर्दू
पेड़ दरख़्त
जाँच मुआयना
पत्रिकाएँ रसाले
पन्ना वरक़
4. भिन्न रूप एंव भिन्न अर्थ वाले शब्द:- प्रत्येक भाषा के शब्द समूह का एक बड़ा भाग उस भाषिक समुदाय की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक भाषा-भाषी के खान-पान, विचार, रीति, मान्यता तथा धार्मिक सोच से जुड़े ये शब्द हर भाषा के अपने होते है। ‘भिन्न रूप एंव भिन्न अर्थ’ वर्ग के शब्द सांस्कृतिक परिस्थिति से ही सम्बन्ध रखते हैं। इन शब्दों को लक्ष्य भाषा का बोलने वाला पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ होता है। हिंदी-उर्दू में इस आधार पर विषमता प्राप्त होती है, यथा —
हिंदी — पूजा, ब्रह्मचारी, सन्यासी, दुर्गापूजा, पतिव्रता आदि।
उर्दू — बुर्का, काज़ी, ताबूत, मज़ार, नमाज आदि।
उपर्युक्त दोनों भाषाओं के शब्दों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि इस वर्ग में आने वाले शब्दों के मध्य हिंदी-उर्दू में समानता नहीं है। इन शब्दों का दोनों भाषाओं में यथावत प्रयोग किया जाता है। चूँकि दोनों भाषाओं में सांस्कृतिक भिन्नता है इसलिए उनकी सांस्कृतिक शब्दावली में भी भिन्नता मिलती है।
5. समान रूप और भिन्न रूपरचना एंव सहप्रयोग वाले शब्द:- प्रायः भाषाओं में कतिपय ऐसे शब्द प्राप्त होते हैं जिनमें रूप एवं अर्थ के स्तर पर समानता होती है परन्तु रूपरचना व सहप्रयोग के स्तर पर असमानता दृष्टिगत होती है, दोनो भाषाओं में बहुवचन के दो रूप मिलते हैं सामान्य और विकारी-
शब्द | अर्थ | |
हिंदी | उर्दू | |
सहन | बर्दाश्त करना | आँगन |
सुदूर | अधिक दूर | जारी होना |
बेल | एक प्रकार का फल | फावड़ा / कुदाल |
माली | बाग का रखवाला | धन संबंधी |
हिंदी | उर्दू | |||||
एक वचन | बहुवचन | एक वचन | बहुवचन | |||
साधारण | विकारी | साधारण | ||||
विकारी | ||||||
मंजिल | मंजिलें | मंजिलों | मंज़िल | मंज़िलें | मनाज़िल | मंज़िलों |
मकान | मकानें | मकानों | मकान | मकान | मकानात | मकानों |
कागज | कागज | कागजों | काग़ज़ | काग़ज़ | काग़ज़ात | काग़ज़ों |
मुश्किल | मुश्किलें | मुश्किलों | मुश्किल | मुश्किलें | मुश्किलात | मुश्किलों |
ऊपर दिये गए उर्दू बहुवचन शब्द हिंदी बहुवचन बनाने के नियम से भिन्न हैं प्रायः उर्दू के कुछ शब्द जो कि हिंदी में भी प्रयुक्त होते हैं। उन शब्दों को हिंदी भाषी या जिन व्यक्तियों को उर्दू का सूक्ष्म ज्ञान है, वे लोग उर्दू शब्द में ‘ओ’ विकारी प्रत्यय का प्रयोग बहुवचन बनाने के लिए करते हैं, यथा ‘काग़ज़’ उर्दू शब्द है जिसका बहुवचन ‘काग़ज़ात’ होता है, किंतु हिंदी में ‘काग़ज़ात’ के स्थान पर ‘कागजों’ बहुवचन का प्रयोग किया जाता है।
‘मुहावरे’ प्रत्येक भाषा का एक अभिन्न अंग हैं। अरूढ़िगत सहप्रयोग से मुहावरे विशेष अर्थ को प्रस्तुत करते हैं। मुहावरों का अनुवाद करना एक जटिल कार्य है। हिंदी के मुहावरे पेट में चूहे कूदना, अपनी खिचड़ी अलग पकाना आदि का अनुवाद करना सम्भव नहीं है। इसी प्रकार उर्दू के मुहावरों को भी अनुवाद करना कठिन है, जैसे— बुत बन जाना, हलफ़ उठाना, ज़ख़्म पर नमक छिड़कना, ईद का चाँद होना, तालीम हुक़्म करना आदि।
सहप्रयोग के उपवर्ग में पुनरुक्ति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किसी शाब्दिक इकाई का पुनः पूर्ण या आंशिक प्रयोग जो कि नए अर्थ का बोध कराए उसे पुनरुक्ति की संज्ञा दी जाती है। पुनरुक्ति को तीन वर्गो में विभाजित किया जाता है—
5.1. पूर्ण पुनरुक्ति:- इस वर्ग में दो समान शब्दों का प्रयोग किया जाता है और पूरी रचना से एक नया अर्थ दिखाई देता है, जैसे —
हिंदी उर्दू
कभी-कभी बाज़-औक़ात / गाहे-ब-गाहे
धीरे-धीरे आहिस्ता-आहिस्ता
जल्दी से जल्दी जल्द-अज़-जल्द
शनैः-शनैः रफ़्ता-रफ़्ता
5.2. आंशिक पुनरुक्ति:- जब शब्द के किसी भाग को पुनः प्रयोग में लाया जाए तो यह प्रक्रिया आंशिक पुनरुक्ति कहलाती है, उदाहरणार्थ—
हिंदी उर्दू
अपने-आप ख़ुद-ब-ख़ुद
बात-चीत गुफ़्तगू / बात-चीत
हल्का-फुल्का हल्का-फुल्का
आल्थी-पाल्थी आलती-पालती
5.2. भाषाओं में कभी-कभी दो शब्दों के योग से एक नया अर्थ प्रकट होता है, यथा—
हिंदी उर्दू
हवा-पानी आब-ओ-हवा
दिन-रात शब-ओ-रोज़
रोए-गाए रोए-गाए
हरे-भरे सर-सब्ज़
ऊपर दिए उदाहरण देखने से ज्ञात होता है कि इस वर्ग में आने वाले शब्दों के स्तर पर हिंदी-उर्दू में समानता एवं असमानता दोनों विद्यमान हैं।
6- समान कोशीय एवं भिन्न लक्ष्यार्थ वाले शब्द:- प्रायः भाषाओं में अनेक एसे शब्द पाए जाते हैं जो अपने मूल अर्थ से भिन्न या अधिक अर्थ का बोध कराते हैं हिंदी-उर्दू में इस प्रकार के कई उदाहरण दृष्टिगत होते हैं जो अपने मूल अर्थ से भिन्न या अधिक अर्थ का बोध कराते है यथा— ‘मामू’ शब्द उर्दू में नाते-रिश्ते की शब्दावली में माँ के भाई के लिए प्रयोग में आता है जब कि मुम्बइया हिंदी में या बोलचाल की हिंदी में पुलिस वालों को ‘मामू’ कहा जाता है। इसी प्रकार से ‘हफ़्ता’ शब्द का अर्थ सप्ताह होता है किंतु अपराध जगत में ‘अवैधानिक रूप से लिए गये कर’ को हफ़्ता कहते है। ‘तकिया’ शब्द को कई अर्थो में प्रयोग किया जाता था, जैसे आराम करने की जगह, फकीरों के रहने का स्थान और सिरहाने रखने की वस्तु। आज ‘तकिया’ शब्द का अर्थ संकुचित हो गया है और अब केवल सिरहाने रखने की वस्तु को ही तकिया कहा जाता है। हिंदी धातु ‘फेंक’ का बोलचाल की भाषा में भिन्न लक्ष्यार्थ में प्रयोग मिलता है, यथा— वह फेंक रहा है। यहाँ ‘फेंक’ का अर्थ ‘गप मारना’ है।
उपर्युक्त उदाहरणों से ज्ञात होता है कि समान कोशीय एंव भिन्न लक्ष्यार्थ वाले शब्दों के स्तर पर हिंदी-उर्दू में समानता एंव असमानता विद्यमान है। इस वर्ग में आने वाले शब्दों का अनुवाद करना एक जटिल कार्य है क्योंकि ऐसे शब्द अपने मूल अर्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ का बोध कराते हैं।
7. निष्कर्ष
हिंदी-उर्दू की शब्दावली के उपर्युक्त विवरण से जहाँ अनेक व्यतिरेकी बिंदु दृष्टिगत होते हैं वहाँ दोनों के मध्य समानता का भी उद्घाटन होता है। हिंदी-उर्दू के उद्भव एंव विकास की यात्रा एक होने के कारण दोनों में समानता की अधिकता है। दोनों भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान देखने को मिलता है।
दो बोलियों के प्रयोगकर्ता जब परस्पर वार्तालाप करते समय एक दूसरे का आशय के साथ-साथ उन बोलियों का साधिकार प्रयोग करने में समर्थ होते हैं तो यह स्थिति ‘पारस्परिक बोधगम्यता’ (Mutual Intelligibility) के नाम से जानी जाती है। दो बोलियों के मध्य यह स्थिति मिलती है किंतु दो भाषाओं के बीच ‘पारस्परिक बोधगम्यता’ नहीं होती है। वास्तव में ‘पारस्परिक बोधगम्यता’ का अभाव ही दो भाषाओं की स्वतंत्र अस्मिता का परिचायक कहा जाता है। यदि हिंदी-उर्दू पर इस नियम का आरोपण किया जाए तो ये परस्पर घनिष्ठतः संबंधित हैं। अतः हम कह सकते हैं कि हिंदी-उर्दू एक भाषा की दो शैलियाँ हैं।
सहायक पुस्तकें
- Kelkar, Ashok R. (1968) Studies in Hindi-Urdu, Pune, Deccan College Publications.
- Khan, Abdul Zamil (2006) Urdu/Hindi- An Artificial Divide, New York, Algora Publishing.
- Khan, Iqtidar H. (1999) A Contrastive & Comparative Study of Standard Urdu and Standard Hindi, Aligarh, Aligarh Muslim University.
- Lado, Robert (1957) Linguistics Acores Culture, Ann Arbor, University of Michigan Press.
- अंजुम, ख़लीक (2006) उर्दू-हिंदी डिक्शनरी, नई दिल्ली, अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द)।
- गुरू, कामता प्रसाद (सं.2035) हिंदी व्याकरण, वाराणसी, नागरी प्राचारणी सभा।
- तिवारी, भोलानाथ (1979) हिंदी भाषा की संरचना, दिल्ली, वाणी प्रकाशन।
- रस्तोगी, कविता (2008) भाषा विमर्श, लखनऊ, न्यू रायल बुक कम्पनी।
- वर्मा, आचार्य रामचन्द्र (2009) उर्दू-हिंदी कोश, वाराणसी, शब्दलोक प्रकाशन।
- हुसैन, एहतेशाम (2008) उर्दू साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, इलाहाबाद, लोकभारती प्रकाशन।
[1] उर्दू में ‘सहन’, ‘माली’ शब्द अरबी से तथा ‘सुदूर’ और ‘बेल’ शब्द फारसी से आगत है। इन शब्दों में औच्चारणिक भिन्नता प्राप्त होती है। यह भिन्नता वही लोग कर पाते हैं जिन्हें अरबी-फारसी का ज्ञान है। अन्य व्यक्ति जो बोलचाल में उर्दू का प्रयोग करते हैं ऐसे लोग यह भिन्नता नहीं कर पाते हैं।