अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकेतवैज्ञानिक पृष्ठभूमि

सारांश

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद में स्रोत पाठ की व्यवस्था का आधार भाषा है; लेकिन लक्ष्य पाठ भाषिकेतर-व्यवस्था की अपेक्षा अर्थात् अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद, अनुवाद के सृजनात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसमें अनुवादक भाषिक व्यवस्था से भाषिकेतर व्यवस्था में कथ्य को एक नए रूप में ढाल देता है। कहें का तात्पर्य अनुवाद, भाषा की सीमितता से परे भी अपना नवीन संकल्पनात्मक विस्तार कर चुका है। भाषा अध्ययन में जब भाषा को संकेतों की व्यवस्था के रूप में व्याख्यायित किया गया, तब अनुवाद पर भी इसका प्रभाव पड़ा, और संकेतों एवं प्रतीकों की चर्चा ने संप्रेषण के दो क्षेत्र- ‘अनुवाद’ और ‘संकेतविज्ञान’ में अंतर्संबंध स्थापित हुआ। अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना इन दोनों क्षेत्र का अंतर्सबंधात्मक प्रतिफलन है।

भूमिका

अनुवाद, भाषा की सीमितता से परे भी अपना नवीन संकल्पनात्मक विस्तार कर चुका है। अनुवाद का स्वरूप बहुत व्यापक हो गया है। चूँकि सीमित संदर्भ में अनुवाद एक भाषिक प्रक्रिया है, अत: अनुवाद के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष पर जो भी विचार-विमर्श हुए हैं, वे भाषा और भाषाविज्ञानाधारित रहे हैं। भाषा अध्ययन में जब भाषा को संकेतों की व्यवस्था के रूप में व्याख्यायित किया गया तब अनुवाद पर भी इसका प्रभाव पड़ा, जिसके परिणाम स्वरूप रोमन याकोब्सन ने अपने लेख On Linguistic Aspects of Translation में अनुवाद के तीन प्रकारों का निरूपण  किया- 

  1. Intralingual translation (अंत:भाषिक अनुवाद) 
  2. Interlingual translation (अंतरभाषिक अनुवाद) 
  3. Intersemiotic translation (अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद)। 

संकेतों और प्रतीकों की चर्चा ने संप्रेषण के दोनों क्षेत्र अनुवाद और संकेतविज्ञान में अंतर्संबंध स्थापित किया है। 

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद : संकल्पनात्मक स्वरूप

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की बात की जाए, तो इसमें स्रोत पाठ की व्यवस्था का आधार भाषा है; लेकिन लक्ष्य पाठ भाषिकेतर-व्यवस्था की अपेक्षा रखता है। इस दृष्टि से किसी कहानी या उपन्यास का फ़िल्मांकन, किसी गीत-संगीत पर नृत्य, किसी गीत को संगीतबद्ध करना या किसी कविता का चित्रांकन करना, ये सभी अनुवाद की कोटि में आ जाते हैं। अर्थात अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद, अनुवाद के सृजनात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसमें अनुवादक भाषिक व्यवस्था से भाषिकेतर व्यवस्था में कथ्य को एक नए रूप में ढाल देता है। रोमन याकोब्सन अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद को परिभाषित करते हुए कहते हैं- “Intersemiotic Translation or Transmutation is an interpretation of verbal sign by means of nonverbal sign systems.”[1]

याकोब्सन के अनुसार अंत:भाषिक अनुवाद भाषिक संकेतों (linguistic signs) का एक ही भाषा के अन्य संकेतों (linguistic signs) में अर्थांतरण है। यह वास्तव में एक ही भाषा में निहित मानसिक संकल्पनाओं के मध्य समतुल्यता आधारित प्रक्रिया है। पाठ को पद्य से गद्य में रूपांतरित करना अंत:भाषिक अनुवाद का उदाहरण है। अंतरभाषिक अनुवाद भाषिक संकेतों का किसी अन्य भाषा के संकेतों में अर्थांतरण है। यह अनुवाद के इस प्रकार को याकोब्सन वास्तविक अनुवाद कहते हैं। यही अनुवाद का सीमित संदर्भ है। अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद भाषिक संकेतों (linguistic signs) का भाषिकेतर संकेत व्यवस्था में रुपांतरण है। किसी कहानी या उपन्यास पर फ़िल्म बनाना अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद का ही उदाहरण है। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद में स्रोत संकेत व्यवस्था भाषिक है और लक्ष्य संकेत व्यवस्था भाषिकेतर। कुबिले अक्तलम अपने आलेख ‘व्हाट इज सिमियोटिक्स? ए शॉर्ट डेफिनेशन एँड सम एक्जाम्पल्स’ में अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसके उदाहरण देते हुए कहती हैं-

The Intersemiotics (Translation or Transposition) deals with two or more completely different codes, e.g., linguistic one vs. music and/or dancing, and/or image ones. Thus, when Tchaikovsky composed the Romeo and Juliet, he actually performed an intersemiotic Translation: he ‘translated’ Shakespeare’s play from the linguistic code into a musical one. The expression code was changed entirely from words to musical sounds. Then, as it was meant for ballet, there was a ballet dancer who ‘translated’ further, from the two previous codes into a ‘dancing’ one, which expresses itself through body movement.” [2]

अर्थात् अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद का संबंध भाषिक और भाषिकेतर संकेत व्यवस्था से है। अनुवाद की मूलभूत शर्त है कि इसके स्रोत पाठ से कथ्य को लक्ष्य पाठ में ले जाया जाए। अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना भी इस शर्त को पूरा करती है। यही अनुवाद का व्यापक स्वरूप है।

Intersemiotic Translation बनाम अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद

अनुवाद के क्षेत्र में प्रयुक्त Intersemiotic Translation की संकल्पना एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। हिंदी में Intersemiotic Translation की अवधारणा पर बहुत-कुछ नहीं लिखा गया है। परंतु जिन विद्वानों  ने इस संकल्पना की चर्चा की है, उन्होंने Intersemiotic Translation शब्द के लिए हिंदी में ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद’ शब्द का प्रयोग किया है। लेकिन ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद’ शब्द में अर्थसंकोच का दोष है। Intersemiotic Translation की संकल्पना भाषिक और भाषिकेतर संकेत-व्यवस्था से संबंधित है, जिसमें न केवल symbol, बल्कि index, icon, signal आदि सभी संकेत सम्मिलित रहते हैं। यदि ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद’ शब्द को पुन: अनूदित किया जाए, तो इसका अनुवाद ‘intersymbolic translation’ होगा, जिसमें स्पष्ट रूप से अर्थ-संकोच दोष दिखाई देता है। अत: मूल Intersemiotic translation की संकल्पना के लिए ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद’ की तुलना में ‘अंतरसंकेतात्मक अनुवाद’ शब्द अधिक स्पष्ट और सटीक प्रतीत होता है। लेकिन प्रस्तुत प्रपत्र में Intersemiotic translation की संकल्पना के लिए हिंदी विद्वानों द्वारा प्रयुक्त ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद’ शब्द का प्रयोग उपलब्धता के आधार पर किया है। 

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद का अध्ययन ‘साइन’ की अवधारणा पर आधारित है। Sign अर्थात ‘संकेत’, संकेतविज्ञान की आधारभूत इकाई है। सामान्यत: संकेतविज्ञान में ‘संकेत’ से तात्पर्य संकेतार्थ को अभिव्यक्ति देने वाली इकाई से है। पश्चिमी एवं भारतीय विद्वानों ने ‘संकेत’ की अवधारणा को स्पष्ट किया है। लेकिन भारतीय विद्वानों ने sign शब्द के लिए हिंदी में प्रतीक, लक्षण और चिह्न शब्दों का प्रयोग किया है जो कहीं न कहीं निश्चित पारिभाषिक शब्दावली के अभाव में भ्रामकता पैदा करती है। कहने का तात्पर्य यह कि इस क्षेत्र में अध्ययन के दौरान पारिभाषिक शब्दावली का अभाव एक प्रमुख समस्या है।

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद  : संकेतविज्ञान एवं अनुवाद का अंतर्सबंधात्मक प्रतिफलन

 यहाँ यह प्रश्न निश्चित ही उद्भवता है कि संकेतविज्ञान और अनुवाद के अंत:संबंध पर चर्चा की प्रासंगिकता क्या है? वास्तव में जहाँ अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की बात की जा रही है वहीं इसके सैद्धांतिक पक्ष पर संकेतवैज्ञानिक दृष्टी से विचार अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना, अनुवाद को सीधे-सीधे संकेतविज्ञान से, जोड़ती है। अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद एक संकेत व्यवस्था से दूसरी भाषिकेतर संकेतव्यवस्था में कथ्य का रूपांतरण है। अर्थात् यह प्रक्रिया संकेत और संकेत व्यवस्था से संबंधित है और ये संकल्पनाएँ संकेतविज्ञान से। अत: अनुवाद और संकेतविज्ञान का अंत:संबंध स्वत: स्पष्ट है।

दूसरी बात यह कि संकेतविज्ञान और अनुवाद की संकल्पनाओं की व्याख्या की जाए तो यह कहा जा सकता है कि संकेतविज्ञान, अर्थ निर्माण किस प्रकार होता है, यह देखता है और अनुवाद अन्य भाषा में समतुल्य अर्थ के निर्माण से संबंधित सिद्धांत तथा व्यवहार है। अनुवाद और संकेतविज्ञान में अंतर्संबंध स्थापित करते हुए डिंडा गोर्ली कहते हैं- “ Translation addresses aspect of communication and is concerned with the use, interpretation and manipulation of messages, that is of signs; semiotic does exactly the same.” अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना और संकेतविज्ञान तथा अनुवाद दोनों में प्रक्रियात्मक या प्रकार्यात्मक समानता इन दोनों भिन्न-भिन्न ज्ञानानुशासनों के मध्य अंत:संबंध का आधार कही जा सकती है।

मानवीय व्यवहार पूर्णत: सांकेतिक या प्रतीकात्मक है। अमूर्त संकेतों का प्रयोग मानविय मस्तिष्क की विशिष्टता है। यह अपने प्रत्यक्ष अनुभवों को संकेतों में बदल देता है। सुजैन लैंगर के शब्दों में- “As far as thought is concerned, and at all levels of thought, it [mental life] is a symbolic process.”[3]  अर्थात् हमारे विचार वास्तव में प्रतीकात्मक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को सूजैन लैंगर प्रतीकात्मक रूपांतरण कहती हैं। यथा- “The fact that the human brain is constantly carrying on a process of symbolic transformation of the experiential data that come to it causes it to be a veritable fountain of more or less spontaneous ideas.”[4] उनके अनुसार यह प्रतीकात्मक रूपांतरण मानवीय मस्तिष्क में घटने वाली मूलभूत संक्रिया और विचार प्रक्रिया का आधार है। संकेतों की भूमिका संज्ञानात्मक है। संकेतविज्ञान में चार्ल्स सैंडर्स पर्स भी इसी दिशा में विचार करते हुए कहते हैं-

“Meaning is the Translation of a sign into another system of signs.”[5]       

“[…]the meaning of a sign is the sign it has to be translated into.”[6] 

पर्स अर्थ बोध की प्रक्रिया को अनुवाद की प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रकार वे प्रक्रियात्मक समानता अर्थ ग्रहण और अर्थांतरण की प्रक्रिया को एक ही बताते हैं। अर्थ को परिभाषित करते हुए ही पर्स अप्रत्यक्ष रूप से अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना की ओर संकेत करते हैं। संकेतविज्ञान तथा अनुवाद जैसे भिन्न क्षेत्रों में अंत:संबंध स्थापित कर इस पर चर्चा हेतु आधार प्रस्तुत करने का महत्त्वपूर्ण काम पर्स ने किया है। पर्स के लिए अनुवाद त्रियात्मक संकेत संबंध (Triadic Sign Relation) अर्थात् वह प्रक्रिया है, जिसमें संकेतार्थ पुन: एक अधिक विकसित संकेत की सृष्टी करता है और यह संकेतन प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है। पर्स के अनुसार संकेत जब अन्य संकेत में अनुदित हो कर एक अधिक विकसित संकेत बनता है तभी वह ‘संकेत’ कहलाता है।

पर्स के मत का समर्थन करते हुए रोमन याकोब्सन ने भी इस बात पर बल दिया कि किसी संकेत इकाई को संकेतित करने से तात्पर्य उसे अन्य इकाई में अनुदित करना है और यह अनुवाद पहले इकाई को निरंतर सृजनात्मक ढंग से समृध्द बनाता है, जो पर्स के असमाप्य संकेतन प्रक्रिया का मुख्य परिणाम है। “For us, both linguists and as ordinary word-users, the meaning of any linguistic sign is its Translation into some further, alternative sign, specially a sign ‘in which it is more fully developed’. अर्थात् किसी भी भाषिक संकेत का उसके अन्य वैकल्पिक संकेत में (विशेषत: वह संकेत, जिसमें वह अधिक विकसित है) अर्थ प्राप्ति अनुवाद ही है। कहने का तात्पर्य यह कि पर्स और याकोब्सन के लिए अनुवाद वास्तव में संकेतन प्रक्रिया का मूलतत्व या त्रियात्मक संकेत प्रक्रिया है। अर्थात् श्रोता, पाठक या दर्शक के मस्तिष्क में घटने वाली अर्थग्रहण की प्रक्रिया एकभाषी अनुवाद की प्रक्रिया है।

अतः इसी आधार पर रोमन याकोब्सन अनुवादक द्वारा भाषिक से भाषिक और भाषिक से भाषिकेतर व्यवस्थाओं में कथ्य के अंतरण के तीन प्रकार प्रतिपादित करते हैं, जिसकी चर्चा इस अध्याय में ‘अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद की संकल्पना’ के अंतर्गत की गई है।

 इस प्रकार पर्स का संकेत सिद्धांत अनुवाद तथा संकेतविज्ञान पर विवेचन हेतु एक भूमि प्रस्तुत करता है। पर्स का संकेत सिद्धांत वास्तव में संकेतविज्ञान और अनुवाद जैसे भिन्न संकल्पनाओं में अंतर्संबंध स्थापित करता है, जिसका आधार प्रक्रियापरक समानता है।

उपसंहार एवं अध्ययन की दिशा

अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद, अनुवाद के सृजनात्मक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिसमें अनुवादक भाषिक व्यवस्था से भाषिकेतर व्यवस्था में कथ्य को एक नए रूप में ढाल देता है। इसी के साथ इस क्षेत्र में अध्ययन की अनेकानेक संभावनाएं कई प्रश्नों के साथ उपस्थित होती हैं। जैसे भाषिक व्यवस्था से भाषिकेतर व्यवस्था में अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद के विश्लेषण-मूल्यांकन के आधार क्या होंगे? भाषिक अनुवाद से भिन्न यह अलग-अलग संकेत-व्यवस्थाओं के बीच का क्रिया-व्यापार अंतरप्रतीकात्मक अनुवाद के रूप में किस प्रणाली का अनुसरण करता है ? परिभाषिक शब्दावली का प्रश्न भी एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। कहा जा सकता है कि याकोब्सन द्वारा निरूपित भाषिक संकेत के अर्थांतरण के तीन प्रकारों को अनुवाद प्रविधि के शुद्ध भाषावैज्ञानिक संदृष्टि से आगे बढ़ कर संकेतविज्ञान जैसे संप्रेषण के व्यापक क्षेत्र को वर्तमान अनुवाद सिद्धांत के परिमार्जन अथवा परिवर्धन की दृष्टि से अनुवाद के क्षेत्र में अंतर्विष्ट किया जा सकता है।

संदर्भिका


[1] Pomorska,Krystyna and Rudy Stephen.(1987). Language in Literature. London : Harvard Univesity Press, Pg.429 

[2] Aktulum, Kubilay. What Is Intersemiotics? A Short Definition and Some Examples, http://www.ijssh.org/vol7/791-HS0013.pdf

[3] Langer, Susanne. Philosophy in a New Key : A Study in the Symbolism of Reason, Rite, and Art, pg. 21

[4] Langer, Susanne. Philosophy in a New Key : A Study in the Symbolism of Reason, Rite, and Art, pg. 34

[5] Gorl e Dinda L.. (1994). Semiotics and the Problem of Translation: with special to the semiotics of Charles S. Peirce. pg

[6] Petrill, Susan.(ed). Translation, Translation, pg 219

संदर्भग्रंथ-सूची

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