बातचीत के माध्यम से बच्चों को समझना : एक अनुभव

अभी कक्षा 4 के बच्चों के साथ काम करना शुरू किया ही था, जहाँ बच्चों के साथ बाल मैत्रीपूर्ण एवं बाल केंद्रित शिक्षा के अपनाने पर काम चल रहा था। ऐसे काम करने का अनुभव कम था, बस इतना पता था कि बाल मैत्रीपूर्ण जैसी कुछ अवधारणा होती है, जहाँ बच्चों को अपनी बात रखने की स्वतंत्रता होती है। उनके साथ बातचीत कर कैसे कार्य किया जाय? किसी समस्या के समाधान के क्या उपाय हो सकते हैं? शिक्षक अपनी राय थोपने के बजाय बच्चों के साथ बातचीत कर समझ बनाने का प्रयास करे। बाल मैत्रीपूर्ण एवं बाल केंद्रित शिक्षण से संबंधित पुस्तकें, लेख पढ़े। पढ़कर समझ में आया कि बच्चे को गलतियाँ करने, अपनी बात कहने के मौके देने, बच्चों को अपनी मातृभाषा में बात करने की छूट, बच्चों को कक्षा गतिविधियों मे शामिल करना आदि पर अपनी समझ बनाते हुएकक्षा में बच्चों के साथ गणित और भाषा में काम करने लगा।

कक्षा में जाने से पहले अपना लेसन प्लान बनाना नहीं भूलता, सप्ताह के अंत में मैं अपना लेसन प्लान बना लेता तथा उस पर कक्षा में कार्य करता। इस स्कूल की स्थापना हुए अभी चंद महीने ही हुए थे, उन दिनों हमारे विद्यालय में 10 शिक्षक और 5 कक्षाएं थीं । सभी शिक्षकों को बराबर काम मिले और एक दूसरे से सीखना हो, इसके लिए सह-शिक्षा के विचार के साथ कक्षा में काम करने लगे। सभी बच्चों को ‘शिक्षा के अधिकार’ के तहत, जिसमे उन्हें उनके उम्र को ध्यान में रखकर दाखिला मिला ।उसमे बहुत से ऐसे बच्चे थे जो स्कूल नही जात्ते थे, कुछ स्कूल छोड़ चुके थे और कुछ किसी दुसरे स्कूल में पढ़ रहे थे। एक ही कक्षा में अलग-अलग लेवल के बच्चे का दाखिला हो गया, जहाँ कुछ बच्चे पढ़ना जानते थे और कुछ को अक्षरों की समझ भी नहीं थी। कक्षा में कार्य करते हुए अपनी डायरी में कक्षा के अनुभवों को नोट करता, जिसमे आज का दिन कैसा रहा? किन बच्चों ने प्रतिभाग किया, किसने नहीं किया? ये बच्चे क्यों नहीं प्रतिभाग करते होंगे? बच्चों को आज पढ़ते समय कहाँ मजा आया? किन चीजो को समझने में चुनौती आ रही है? कोई बच्चा प्रतिभाग नहीं कर रहा है तो उसक पीछे के कारणों को समझने के लिए उनसे बातचीत, बच्चों के व्यवहारों को नोट करता व इन सब पर रिफ्लेक्ट करता। साथी शिक्षकों तथा कक्षाध्यापक से बातचीत एवं  अपने अनुभवों को उनसे साझा करता। यह भी जानने का प्रयास करता कि उनके कालांश में क्या चल रहा है । बच्चों के व्यवहार जैसे  मेरी कक्षा में  है क्या बाकी की कक्षाओं में भी ऐसा ही है। कक्षा में बच्चों  के साथ  कार्य करते हुए  बच्चों के कार्य करने के पैटर्न, उनकी प्रतिभागिता, अपना लेसन पालन, वर्कशीट तथा  बच्चों के रेस्पोंस आदि पर शिक्षक साथियों  से बात होती थी । कोई बच्चा असामान्य  व्यवहार जैसे कक्षा में शांत रहना, जल्दी गुस्सा हो जाना, एक दुसरे  को मार देना, अपने आप में खोये रहना जैसे व्यवहारों को साथियों के साथ साझा करना शामिल है । साथियों से बातचीत के बाद जो मुख्य बातों या पैटर्न को समझने की कोशिश करते और उनके सभावित हल के बारे में सोचते। उन बातों को नोट करता ताकि उन बच्चों के साथ योजनाबद्ध रूप से कार्य की रणनीति पर चर्चा करते और उन पर अमल करते। इन योजनाओं को तीन स्तर पर बांट कर कार्य करते। पहला बच्चे के स्तर पर, दूसरा समुदाय तथा तीसरा इन सब का रिकार्ड रखना जिससे इनके साथ किये गए कार्य को दस्तावेजीकरण किया जा सके।  साथी शिक्षकों का भी सहयोग मिला वे भी उन बच्चों का ध्यान रखते , उनके व्यवहारों को नोट करते, उनके सिखने के पैटर्न को साझा करते और मिलकर समुदाय में जाते थे। शिक्षकों के बीच तालमेल के साथ कार्य करते क्योंकि वे भी इसी तरह की चुनौती से जूझ रहे थे। इस तालमेल से सभी शिक्षक साथी एक स्तर पर थे जो बच्चों को और अच्छे से समझने लगे।

केस 1-  यूं ही दिन बीतते चले गए, इनमे से 3 नए विद्यार्थी का दाखिला हुआ। जो एक ही मोहल्ले में रहते थे, इनका दाखिला सीधे 4 में किया गया, पर अकादमिक रूप से ये कक्षा 1 के स्तर थे। ये तीनो ही कक्षा में कम बोलते थे। इन बच्चों से बातकर उन्हें अपनी बात को रखने के लिए कहा। उनमे से एक लड़की का नाम नयना था उसके साथ गणित में कार्य करते हुए सवालों को कैसे हल किया जाय? इस पर बात कर रहा था। उसे कुछ सवालों को हल करने के लिए दिया, उसने अपनी समझ से उन सवालों को हल किया। जिन सवालों को गलत किया था उस पर मैंने गोला लगा दिया, गोला भी यह सोच कर लगाया था कि इसे यदि काट देता हूँ तो उसे बुरा लगेगा पर मुझे यह आभास नहीं था कि गोला लगाने से भी उसे बुरा लगेगा। यह कार्य कई दिन तक चलता रहा। एक बाल मन में क्या चल रहा होता है इसका हमें पता नही होता है। किसी बच्चे के इमोशन को कैसे जानें? इसके बारे में मेरे पास नजरियातो था लेकिन वह नाकाफी था। बीएड में  इमोशन के बारे में पढ़ा था पर बच्चों के साथ कार्य या धरातल का अनुभव कम था। इस विद्यालय में एक बात अच्छी थी कि बच्चों के साथ बिना दंड दिए कार्य करना था। अब मेरे सामने यह चुनौती आई कि इन बच्चों के साथ कार्य कैसे किया जाय?

कक्षा में यह देखने को मिला कि जिस लड़की के कापी में मैं गलत सवालों को गोला कर दिया करता था वह अब कक्षा में काम करने में ज्यादा समय लेने लगी जिससे उसका कापी चेक नहीं हो पाता। कई दिन तक ऐसे ही चलने पर अपने साथी शिक्षक के साथ बात किया कि उसे क्या हो गया? वह पहले कक्षा में अच्छे से काम करती और अपनी कापी चेक कराती थी, पर अब अपना काम करने में बहुत समय लेती है। इस वजह से उसकी उसकी कापी चेक हो पाती है। हमने मंथन करने के बाद यह सोचा कि इसके साथ अलग से बात किया जाय। अगले दिन हम कक्षा में गए और तय योजना के अनुरूप काम करने लगे। मैं एक-एक कर बच्चों को बुलाने लगा व बातचीत करने लगा व कापी में सवाल दिए उसके बाद नयना को बुलाया और उससे सामान्य बातचीत की कि-

मैं – घर में कौन-कौन हैं?

नयना- मम्मी, पापा और एक छोटा भाई है।

मैं – छोटा भाई कितने साल का होगा?

नयना – अभी बहुत छोटा है।

मैं- आपको क्या अच्चा लगता है?

नयना – मुझे खेलना अच्छा लगता है, कला बनाना अच्छा लगता है।

मैं –  कौन- कौन से खेल पसंद है?

नयना – खो-खो, रस्सी कूद, लूडो, छुपन-छुपाई, गोटी खेलना अच्छा लगता है।

मैं – आपके कितने दोस्त हैं और उनके नाम क्या हैं।

नयना- जमुना, बबिता, अनिमेष हैं। ये सभी मेरे घर के पास रहते हैं।

मैं – आप पहले तो अपने काम को समय पर पूरा कर लेती थी, पर आजकल काफी समय से कापी क्यों चेक नहीं हो पा रहा है?

नयना- “जब सवाल गलत हो जाते है तब आप उस पर गोला लगा देते हो, मुझे अच्छा नहीं लगता है”।

मैं – तो फिर आपने कहा क्यों नहीं?

नयना- मुझे डर लगता है, मैं जहाँ पहले पढ़ती थी वहां पूछने पर मार पड़ती थी।

नयना की  इस बात पर जो बात उसने कही उससे मैं अवाक् रह गया। उसने कहा कि “सर जब सवाल गलत हो जाते है तब आप उस पर गोला लगा देते हो, मुझे अच्छा नहीं लगता है”। मैंने कहा तो फिर आपने कहा क्यों नहीं? उसने कहा कि मुझे डर लगता है, मैं जहाँ पहले पढ़ती थी वहां पूछने पर मार पड़ती थी। इस पर मैंने कहा कि हम तो नहीं मारते है फिर क्यों डरती हो? फिर उसने वही बात दोहराई। मैंने कहा कि आज के बाद यहाँ के किसी भी शिक्षक से अपनी बात रख सकती हो, घबराने या डरने की जरूरत नहीं है। आप सवाल पूछ सकते हो और अपनी बात को निर्भीकता के साथ बिना डरे रख सकते हो।  इसके बाद हमने थोड़ी देर और बात की उसके कापी में काम दिया, उसने काम चेक भी करवाया लंच हो गया हम सभी खाना खाने चल दिए।

यह सिर्फ बच्चे की कापी में सवाल गलत हो जाने पर गोला करने की बात नहीं है, यह भी समझना होगा कि किसी सवाल को काट देना, गोला करना या पेन के इंक लाल से नीला कर देना ही काफी नहीं है, इसके दुसरे पहलुओं को समझना होगा जिसमे उन्हें गलती करते के मौके देने, उन गलतियों पर बैठकर उनसे बातचीत, उस सवाल को हल करने को कैसे हल किया? जब वह सवालों को हल कर रहा था तब उसके दिमाग में क्या चल रहां था? कहाँ चुनौती आ रही थी? इस कार्य से यह भी समझ में आता है कि हम बजाय बच्चों की कापी पर गोला, क्रॉस या पेन के इंक बदलने के बजाय हम उनके कापी में लिखकर भी फीडबैक दे सकते हैं। इससे बच्चे को समझ में आएगा कि उसने कहाँ गलती की है और वह उसे सुधार कर पायेगा। गोला या क्रॉस से यह होता हुआ दिखना नहीं है।

केस 2- इसी कक्षा में बबिता थी, उसकी कापी ड्राइंग से भरी रहती, कक्षा में बैठे-बैठे अपने आप में ही खोई रहती, वह ज्यादातर मेहंदी के डिजाइन बनाया करती, कक्षा में भी जब बातचीत चलतीतब भी वह इन्ही कामो में व्यस्त रहती इसके साथ ही कक्षा में बातचीत में भी कम प्रतिभाग करती थी। हममें से किसी को पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर ये बोलती क्यों नहीं है? जबकि वह अपने दोस्तों के साथ और बाकी बच्चों के साथ अच्छे से बात करती थी। बबिता क्यों बात नही करती है? इसके लिए मैंने नयना से बात किया, उसकी समस्या दूर करने के बाद वह मुझसे बहुत बात करने लग गई थी। मैंने एक दिन नयना से पूछा किआपकी दोस्त कक्षा में बात क्यों नही करती है? जबकी वह आपसे  और बाकी उसके साथ के बच्चों के साथ बहुत बोलती है। नयना ने भी कहा कि मुझे पता नही है। इस समस्या को दूर करने के लिए लंच के समय और खेल के पीरियड में मैं उनके साथ खेलने लगा, बाकी बच्चों से बात करने लगा। जानबूझकर छोटी-छोटी गलती करने लगा। मुझे उनके बात से और जो वह अपने साथी से बात करने से पता चला कि वह बांग्ला में बात करती है। धीरे – धीरे मैं भी उससे टूटी-फूटी बांग्ला में बात करने लगा। तब मुझे पता चला कि वह सिर्फ बांग्ला भाषा ही जानती है। इस पर अन्य शिक्षको से साथ बातचीत की और अपनी बातों को समझाने के लिए नयना और उसके अन्य साथियों  की मदद ली। कक्षा में कार्य करते समय हम हिंदी में बोलते और उसके साथी उसे बांग्ला में समझा देते, इस तरह जल्दी ही वह अच्छा करने लगी और अपनी बातों को कक्षा मे रखने लगी शुरू में वह बांग्ला में अपनी बात को रखती और धीरे धीरे वह हिंदी व बांग्ला मिलकर बोलने लगी।

कई बार हम बच्चे की घर के भाषा में अपनी बात को रखने के कम मौके देते हैं, या बच्चा अपनी बात को रखने में झिझकता है, ऐसे में हमें चाहिए कि स्वयं से इस तरह के पहल करें जिससे बच्चे को अपनी मात्र भाषा में अपने विचारों को रखने में सहज हों। बच्चों को अपनी मातृभाषा में अपनी बात रखने के मौके देने से उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और वे अपनी बात को खुलकर रखते हैं साथ ही कक्षा की गतिविधियों में प्रतिभाग करते हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती है  कि कोई बच्चा कक्षा में उनकी बात पर हंसेगा या उनकी खिल्ली उड़ाएगा। शिक्षक भी उनकी भाषा में कुछ-कुछ बात करता है तो कक्षा में जीवन्तता आ जाती है।  गाँधी जी ने भी इस ओर इशारा किया है कि बच्चे की शिक्षा उसके मातृभाषा में हो।

केस 3 – इसी कक्षा में कमल नया-नया आया था, वह चंचल था, जल्दी गुस्सा करता और मारपीट पर उतारू हो जाता। उसकी इस हरकत से पूरी कक्षा में व्यवधान उत्पन्न होता और कक्षा का फ्लो गड़बड़ हो जाता। उसके पास कोई बैठना नहीं चाहता था, क्योंकि वह अनायास ही किसी को भी परेशान करने लग जाता। इस पर हम लगातार उनसे बात करते, और कक्षा का बहुत सारा समय इसमें चला जाता। किसी भी बच्चे को शारीरिक और मानसिक रूप से दण्डित नहीं किया जाता था, पर इस तरह के व्यवहार पर बातचीत किया जाता था। इन बातों से जो समय की बर्बादी होती थी जिससे अन्य बच्चों का नुकसान हो रहा था लेकिन बातचीत जरूरी थी। इस पर यह समझने का प्रयास किया गया कि वह कक्षा में इस तरह का व्यवहार क्यों करता है? इसके लिए हमने योजना बनाकर कार्य किया। हम सप्ताह में एक दिन समुदाय में जाते थे और बच्चों के सामाजिक, साँस्कृतिक, आर्थिक समझ बनाने का प्रयास करते साथ ही वे घर में क्या कार्य करते? उनको घर में पढ़ने-लिखने में कौन मदद करता है? इसे समझने का प्रयास करते। कमल के घर जाने पर पता चला कि अक्सर घर में उसकी पिटाई होती थी, ये दो भाई थे वे भी आपस में लड़ते रहते थे। इस तरह उनके माता-पिता परेशान हो जाते और उनको दंड मिलता था। यह पता लगाना आसन नहीं था कि उसके पिताजी क्यों मारते हैं, क्योंकि उनकी मम्मी से हम बात कर रहे थे। पर बातों-बातों में बताया कि इनके पापा पढ़ने के लिए कहते है,नहीं पढ़ पाते हैं तो इनकी पिटाई होती है। उनकी मम्मी से बात कर के पता चला कि वास्तव में परेशानी कहाँ है? चूँकि उन्हें घर में बात-बात पर शारीरिक दंड दिया जाता है जाता था इसलिए यह उसके लिए सामान्य बात थी, किसी को भी मार देना, परेशान करना आदि। इस पर हमने उसके माता-पिता से बात करने की योजना बनायी। हम बुधवार को समुदाय में जाया करते थे, बच्चों के  घर जाने से पूर्व हम उनके घर में खबर भेज देते या उन्हें फोन कर देते। दो-तीन प्रयास में भी हम कमल के  पिता से नहीं मिल पाए। हमें बताया गया कि वे काम पर जल्दी चले जाते है और देर से आते हैं। हमने यह जानने का प्रयास किया कि वे कब मिलेंगे? इस पर उन्होंने बताया कि वे रविवार के दिन मिलेंगे। हमने रविवार  के दिन का इंतजार किया और अंततः उनसे मुलाकात हुई। उसके पिताजी ने बताया कि वे सिडकुल की एक फैक्ट्री में काम करते हैं। 12 घंटे का काम होता है, घर आने पर पता चलता है कि वह स्कूल नहीं गया,पढ़ता-लिखता भी नहीं है, बस दिन भर मछली पकड़ने और दोस्तों के साथ घुमने में लगा रहता है। हम किसके लिए काम कर रहे हैं? हम इन्ही के लिए तो कमा रहे हैं और ये हैं कि समझते ही नहीं हैं। अब आप ही बताओ कि ये पढ़ेंगे-लिखेंगे नहीं तो क्या गुस्सा नहीं आएगा? जब गुस्सा आता ही तो इनकी पिटाई भी लग जाती है, ये बच्चे अपनी मम्मी की बात भी नहीं सुनते हैं। वो तो सुबह ही इनको तैयार करके स्कूल भेज देती है पर ये हैं कि स्कूल जाने के बजाय कहीं इधर उधर बैटकर समय बिता के चले आते हैं। जब हमने उनकी पूरी बात सुन ली फिर अपनी बात रखी, उनसे कहा कि इस समस्या का समाधान क्या मार-पिट है? इस पर वे चुप हो गए। हमने कहा आप ताकतवर है इसलिए वह मार खा ले रहा है पर जैसे ही उसे कोई कम ताकतवर मिलेगा वह उसे सताएगा या मारेगा। हम क्यों न मिलकर कुछ काम करें जिससे इनका सीखना भी बेहतर हो और ये मारपीट भी कम करें। इस पर उन्होंने कहा कि आप को जो करना है करें, इसे मारे-पीटें हम कोई शिकायत नहीं करेंगे। इस पर हमने कहा कि यदि मारपीट से ही ठीक होना होता, तो अबतक ठीक हो जाता, इनके साथ विनम्रता एवं जिम्मेदारी देकर देखते हैं इनके वयवहार में क्या बदलाव आता है? आप अब तक इनके साथ मारपीट कर देख चुके हैं, एक बार ऐसे भी काम कर के देखते हैं, बस आपसे गुजारिश है कि आप बच्चों के साथ मारपीट नहीं करेंगे, पर हाँ आप इनसे इनके काम के बारे में जरूर बात करते रहें। धीरे- धीरे इस बच्चे के साथ बातचीत चलती रही, साथ ही कक्षा में अलग से ध्यान दिया जाने लगा। उसके बोलचाल के कुछ शब्द लिए जैसे बाड़ी, गोरु, कूकूर आदि और इन शब्दों को मिलकर कहानी बनाया जिनके साथ कक्षा में व अलग से भी काम करने लगे,कक्षा पुस्तकालय की जिम्मेदारी दी। इसका हमें सकारत्मक प्रभाव देखने को मिला, अब यह न केवल जिम्मेदार, बल्कि पढ़ने में भी रूचि लेने लगा, उसके कक्षा के अन्य बच्चों के साथ दोस्ती हुई और उसका मारपीट कम करने लगा।

हर समस्या का समाधान मारपीट नहीं हो सकता, और न ही गुस्सा दिखाने, डांटने से काम चलता है। यदि समस्या के तह तक जाया जाय तो उसके कारणों की समझ और समाधान भी मिलता है।बच्चों के साथ कक्षा में हर छोटी  छोटी चीजो पर रिफ्लेक्ट करने, यह समझने का प्रयास करे कि कोई यदि लीक से हटकर व्यवहार कर रहा है तो इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं। इन सबके समझने के  लिए यह जरूरी है कि हम बातचीत करते रहें। खासकर शिक्षक के रूप में हम अपने बच्चों को समझे, उनके पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक चीजों को जानें, तब हम उन्हें समझ पाएंगे और समस्या के समाधान की ओर अग्रसर होंगे।

बच्चों के साथ कार्य करने के लिए अपनी पूर्व तैयारी के साथ ही उनके साथ बातचीत  आवश्यक है। कक्षा में एक शिक्षक को सभी बच्चों पर बराबर ध्यान देने की जरूरत है। इससे कक्षा में यदि कोई बच्चा असामान्य व्यवहार  करता है, तो उस ओर ध्यान दिया जा सकता है। जब  शिक्षक रेफ्लेक्टिव होगा, तो कक्षा में आने वाले दिन प्रतिदिन की सामान्य चुनौतियों को दूर करते हुए कक्षा को जीवंत बनाने के साथ ही सभी बच्चों की प्रतिभागिता को सुनिश्चित कर पायेगा। जिससे बच्चों के लिए कक्षा आनंदाई हो और वे बेहतर सिख पायें ।

संदर्भ

  • बच्चे की भाषा एवं अध्यापक – कृष्ण कुमार
  • कक्षा में बच्चों के साथ बातचीत – कमलेश चन्द्र जोशी
  • वर्धा शिक्षा योजन – 1937
  • तोतो चान –तोत्सुको कोरियोनागी
  • NCF 2005

(नोट: बच्चों के नाम बदल दिए गए हैं)

Tags:

Language Teaching, Pedagogy