वैदर्भिय बोली का काल, पक्ष एवं वृत्ति

भाषा में संरचना की दृष्टि से वाक्य सबसे बड़ी इकाई है और वाक्य की प्रमुख इकाई क्रिया। क्रिया वाक्य में केंद्रीय घटक होती है जो पूरी वाक्य संरचना को नियंत्रित करती है। वास्तव में क्रिया ही भाषिक व्यवहार का केंद्र बिंदु होती है। क्रिया के बिना वाक्य अधूरा रहता है, अर्थात् क्रिया विहीन वाक्य की कल्पना नहीं की जा सकती। सामान्य वाक्य के सारे पद क्रिया से संबंधित होते हैं, किंतु वाक्य में क्रिया का संबंध काल, पक्ष, वाच्य एवं वृति जैसी व्याकरणिक कोटियों से निकट का होता है।

‘मनुष्य के द्वारा काल की, जो संकल्पना की गई है, वह शास्त्रों के अनुसार ‘गति’ से निर्मित हुई है। मनुष्य को काल की कल्पना से पहले ‘गति’ की संकल्पना ज्ञात थी। गति की कल्पना ने ही ‘काल’ को जन्म दिया। गति में स्थित वस्तु को देखने से ही आँखों के सामने चित्र उपस्थित होता है। काल को रघुवंश मणि पाठक परिभाषित करते हैं कि ‘प्रवाहित स्थितियों का क्षण स्रोतों में निरंतर प्रवाहित वह रूप जो गतिमय है, ‘काल’ है।’ काल का स्वरूप चाहे जो हो, भाषा के स्तर पर या शब्द-व्यवहार में वह समय से सर्वथा भिन्न दिखता है। अत: ‘पहले’, ‘यही’ और ‘आगे’ की तीन संकल्पना है, इसी को क्रमश: भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्य काल के नाम से जाना जाता है। सूरजभान सिंह ने माना है कि ‘काल’ क्रिया का वह रूप है, जिससे कार्य-व्यापार के घटना-समय एवं भूत, वर्तमान, भविष्य के बीच संबंध का बोध होता है। इस दृष्टि से काल समय नहीं, समय का बोध है, अर्थात् समय की वह अनुभूति है, जो हमारे मस्तिष्क में है, उससे बाहर नहीं है।’ क्रिया के द्वारा ही काल विशेष की सूचना मिलती है। काल, पक्ष और वृत्ति के द्योतन में पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार प्रभाव दिखाई पड़ता है। क्रिया के प्रयोग के लिए काल का बड़ा योगदान होता है। क्रिया में काल के अनुसार बदलाव होता है। जिस प्रकार क्रिया पर काल का प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार क्रिया पर पक्ष और वृत्ति का भी पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार क्रिया में बदलाव दिखाई देता है। वृत्ति से पता चलता है की मनुष्य के मन में क्या भाव है इसका अनुमान लगाया जाता है। जैसे, एक आदमी बच्चे को बोलता है कि मेरे लिए एक ग्लास पानी लाओ। जब ‘लाओ’ क्रिया का उपयोग करता है, तो क्या वह आज्ञा दे रहा है, यहा अनुरोध कर रहा है, इस बात का पता चलता है। इस लेख में काल, पक्ष और वृत्ति के द्योतन में पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार क्रिया में पड़ने वाले प्रभावों के बारे मे चर्चा करने का प्रयास किया है।

‘मराठी’ शब्द से पता चलता है कि मराठी भाषा महाराष्ट्र की बोलचाल और व्यवहार करने की भाषा है। इस लेख में महाराष्ट्र के पूर्व भाग यानि विदर्भ में बोली जाने वाली भाषा/बोली का भाषावैज्ञानिक विश्लेषण किया जा रहा है। विदर्भ मे कुल 11 जिले हैं। जैसे- नागपुर, चंद्रपुर, वर्धा, गोंदिया, बुलढाणा, अमरावती, भंडारा, अकोला, यवतमाळ, वाशिम और गडचिरोली। विदर्भ, महाराष्ट्र के कुल क्षेत्र में से 31.6% क्षेत्र में बसा है। विदर्भ की कुल जनसंखा 2001 अनुसार 20, 630, 987 है।

इस शोध के लिए मराठी भाषा और भाषावैज्ञानिक पुस्तकों का उपयोग किया गया है ताकि मराठी भाषा की व्याकरणिक संरचना का अध्ययन संभव हो सके। इसके साथ ही गाँव में जाकर लोगों से वैदर्भिय बोली का डाटा लेकर उसे भाषावैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। वैदर्भिय बोली मराठी भाषा की एक उपबोली होने के कारण मराठी भाषा की संरचना और व्याकरणिक कोटियो में समानता है। लेकिन बोलचाल में वैदर्भिय बोली की अपनी एक विशेषता दिखाई देती है। इस विशेषता को ध्यान में रखकर इस शोध कार्य किया गया है। इस शोध के लिए वर्धा जिला के सेलू तहसील में वडगाव (जंगली) और केळझर गाँव के शिक्षित तथा अशिक्षित लोगों से डाटा लेकर विश्लेषण किया गया है।

मराठी भाषा में इसे पहले शोध किया गया है। ‘मराठी’(2009) रमेश वामन घोंगड़े और काशी वाली और ‘मराठी’ (1997) व्ही. पंधारी पांड्ये आदि ने मराठी भाषा के व्याकरणिक कोटियो पर चर्चा की है। पर यह कार्य वैदर्भिय बोली में काल, पक्ष एवं वृत्ति पर केंद्रित है। वर्तमान काल में पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार से दर्शाए जाते हैं। वैदर्भिय मराठी की एक बोली होने के कारण मराठी की संरचना की तरह वैदर्भिय भी संरचना है और इनके व्याकरणिक कोटियों में भी समानता दिखाई देती है। वैदर्भिय बोली में तीन लिंग है- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग एवं नपुंसकलिंग; दो वचन- एकवचन और बहुवचन; तीन पुरुष- प्रथम पुरुष, द्वितीय पुरुष एवं तृतीय पुरुष हैं। हिंदी और वैदर्भिय बोली (मराठी) एक ही भाषा क्षेत्र होने के कारण वचन और पुरुष में समानता दिखाई पड़ती है।

काल

मराठी में काल के लिए ‘काळ’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। मराठी भारोपीय भाषा होने के कारण तीन काल हैं- वर्तमानकाल, भूतकाल और भविष्यकाल।

वर्तमानकाल:- वर्तमान काल में क्रिया चालू है, अर्थात् कार्य चल रहा है। वर्तमान काल की क्रिया संरचना के आधार पर “कालसूचक अंश” इस प्रकार मिलते हैं- तो, ते, त, तेत, तात। लेकिन वैदर्भिय बोली में अधिकतर चालू वर्तमानकाल का उपयोग किया जाता है। जैसे- मी काम करून रायलो, इसके आधार पार चालू वर्तमानकाल के सूचक अंश निम्न मिलते हैं। जैसे- ली, लो, ले, ल, ला, ता, आहो। जैसे-

1. मी काम करतो। (मै काम करता हूँ।)

2. मी काम करून रायली आहो। (मै काम कर रहा हूँ।)

3. आमी काम करून रायलो आहो। (मै काम करता रहता हूँ।)

4. थे काम करत आहो। (वे काम काम कर है।)

5. थे झाड हालत आहे। (वह पेड़ हिल रहा है।)

6. आमी काम करत आहो। (हम काम कर रहे है।)

7. थे काम करतात। (वे काम करते हैं।)

वर्तमानकाल के कालसूचक अंश-

पुल्लिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचतोआमी वाचतो
मध्य पुरुषतू वाचतेतुमी वाचता
अन्य पुरुषथे वाचतेथे वाचतात
स्त्रीलिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचतोआमी वाचतो
मध्य पुरुषतू वाचतो / वाचतेतुमी वचता
अन्य पुरुषथी वाचतेथ्या वाचतात
नपुंसक लिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुष
मध्य पुरुष  
अन्य पुरुषथे वाचतेथे वाचते

मराठी में वर्तमानकाल के लिए ‘आहे’ सहायक क्रिया का उपयोग किया जाता हैं, लेकिन बोलचाल के वैदर्भिय बोली (मराठी) के आधार पर पुरुष, वचन और लिंग के आधार पर काल-सूचक दर्शाए उक्त टेबल 1 में दर्शाए गए हैं।

भूतकाल:- जिस क्रिया रूप से कार्य हो जाने की सूचना मिले, उसे भूतकाल कहा जाता है। भूतकाल की क्रिया संरचना के आधार पर “कालसूचक अंश” निम्न प्रकार से मिलते है। जैसे- ला, होत, होता, होते, ली, लो, होत्या, केल, केले। उदाहरण –

1) थो शाळेत गेला। (वह स्कूल गया।)

2) रोशनी न काल गान मनल होत। (रोशनी ने कल गाना गाया था।)

3) प्रशांत दहावीत नापास झाला होता। (प्रशांत दसवीं में फेल हुआ था।)

4) थे वाचून रायले होते। (वह पढ़ रहे थे।)

5) थी शाळेत गेली। (वह स्कूल गई।)

भूतकाल के ‘कालसूचक अंश’-

पुल्लिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचन केल होत/ वाचलो।आमी वाचन केल होत/ वाचलो।
मध्य पुरुषतू वाचत होत।तुमी वाचत होते।
अन्य पुरुषथो वाचत होता।थे वाचत होते।
स्त्रीलिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचन केल होत/ वाचली।आमी वाचन केल होत/ वाचलो।
मध्य पुरुषतू वाचत होती।तुमी वाचत होत्या।
अन्य पुरुषथी वाचत होती।थ्या वाचत होत्या।
नपुंसक लिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुष  
मध्य पुरुष  
अन्य पुरुषथे वाचत होते।थे वाचत होते।

मराठी में भूतकाल सूचक अंश ‘होता’ प्रयोग किया जाता हैं, लेकिन बोल-चाल के वैदर्भिय बोली के आधार पर पुरुष, वचन, और लिंग के अनुसार भिन्न-भिन्न कालसूचक टेबल नं .2 में दिखाया गया है।

भविष्यकाल- भविष्यकाल से पता चलता है कि क्रिया आगे होने वाली है। भविष्य काल की क्रिया संरचना के आधार ‘कालसूचक अंश’ न, जो, शीन, ू ‘ऊ’, ंन ‘अन’ आदि होते हैं। उदाहरण-

1. मी वाचीन। (मैं पढ़ूँगा।)

2. आमी वाचू / आमी वाचन करू / आमी अभ्यास करीन। (हम पढेगें।)

3. तुमी थे काम करजो/ करशीन। (तुम/ आप पढ़ेंगे।)

4. तू दोन वर्षानी येशीन / येजो। (तुम दो साल बाद आना।)

5. थो पुस्तक वाचन। (वह किताब पड़ेगा।)

भविष्यकाल के ‘कालसूचक अंश’-

पुल्लिंग
 एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचीन।आमी वाचू।
मध्य पुरुषतू वाचशीन।तुमी वाचन / आपण वाचू।
अन्य पुरुषथो वाचन।थे वाचन।
स्त्रीलिंग
एकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचीन।आमी वाचू।
मध्य पुरुषतू वाचशीन।तुमी वाचन / आपण वाचू।
अन्य पुरुषथी वाचन।थ्या वाचन।

मराठी में भविष्यकाल सूचक अंश ‘ईन’ का प्रयोग किया जाता हैं, लेकिन बोलचाल के वैदर्भिय बोली के आधार पर इसके भविष्य के कालसूचकों को टेबल नं.3 में दिखाया गया है।

पक्ष:- पक्ष शब्द अँग्रेजी ‘Aspect’ का अनुवाद है। B. comri ने यूरोपीय (कंटीनेंटल) विचारधारा के अनुसार वर्णन किया है, जिसे उसके पूर्ववर्ती होल्ट और पहले अनेक व्याकणकारों ने स्वीकार किया था। जब किसी भाषिक व्यापार (Situation) को समग्र दृष्टि से देखा जाता है। और उसके आंतरिक समय परक अवयवों पर ध्यान नहीं जाता है। अर्थात् हमारी रुचि घटना होने में होती है। और उसके आदि मध्य-अन्त्य पर नहीं होती है तो ऐसे क्रियारूप अर्थ की की द्रुष्टि से ‘Perfective Aspect’ में माने जाते है। जब हमारी द्रुष्टि में घटना के प्रारंभत्व, वर्तमानत्व, समाप्तत्व, सातत्य आदि पर होती है हम घटना के अंतरिक समयकपरक अवयवों पर ध्यान केंद्रित रखते है तो क्रिया रूप की द्रुष्टि से ‘Imperfective Aspect’ में आता है।

‘काल’ बोध के अंतर्गत क्रिया व्यापार में युक्त समय विस्तार के बोध को निर्धारित और नियंत्रित भी किया जाता है जिसे पक्ष कहते है। वास्तव में क्रिया कभी तो पूर्णता व्यक्त करती है, कभी अपूर्णता और कभी नित्यता तो कभी सामान्यता मराठी में पक्ष व्यवस्था काल संरचनाओं में सम्मिलित हुई है। वैदर्भिय बोली में काल और पक्ष को एकदम अलग-अलग नहीं देख सकते, क्योंकि एक-दूसरे का संबंध पूरक का संबंध होता है।

वैदर्भिय बोली में क्रिया व्यापार (Situation) की कालावधि को कुछ विशिष्ट प्रभेदक लक्षणों द्वारा निर्दशित किया जाता है। इन्ही प्रभेदक लक्षणों के आधार पर वैदर्भिय बोली के पक्ष का विवेचन किया जा सकता है।

वैदर्भिय बोली (मराठी) में सामान्यता तीन पक्ष पाए जाते है। 1) नित्य पक्ष, 2) सातत्य पक्ष और 3) पूर्ण पक्ष

नित्य पक्ष – नित्य पक्ष से कार्य व्यापार (Situation) के बार बार घटित होने या उसके एक निश्चित अवधि तक फैले होने का बोध होता है। जिसके अंतर्गत कार्य व्यापार (Situation) की नित्यता अवस्था विस्तार सार्वभोंम सत्य और सामान्यीकरण को देखा जा सकता है। वैदर्भिय बोली में नित्य पक्ष के लिए एक विशिष्ट प्रकार के शब्दो का प्रयोग किया जाता है और ये शब्द उसकी विशिष्टता को दर्शाते है। नित्य पक्ष के पक्षसूचक अंश तो, ते, ल, और आहे इन पक्षसूचक अंश एवं द्योतन का प्रयोग किया जाता हैं। पुरुष, वचन, और लिंग के अनुसार वर्गीकरण जिसका उल्लेख टेबल न.4 मे दिखाया गया है।

पुरुषपुल्लिंगस्त्रीलिंगनपुंसकलिंग
उत्तम पुरुषमी अभ्यास करतोमी अभ्यास करतोथे अभ्यास करते
मध्य पुरुषतू अभ्यास करतोतू अभ्यास करतोथे अभ्यास करते
अन्य पुरुषथो अभ्यास करतोथी अभ्यास करतेथे अभ्यास करते

उदाहरण-

1. रवि कपड्याचा धंदेवाला आहे. ‘रवि कपड़े का व्यापारी है। ’

2. अशोक न पुस्तक लीवल . ‘अशोक ने किताब लिखी है। ’

3. त्याले बासुन्डी आवडते. ‘उसे बासुनदी पसंद है। ’

4. त्याले फूल आवडते. ‘उसे फूल पसंद है। ’

सातत्य पक्ष- सातत्य पक्ष से उक्ति या संदर्भ के समय कार्य व्यापार (Situation) के जारी या चालू रहने की अस्थायी आवृत्ति का बोध होता है। इसके अंतर्गत समकालीन घटना और अस्थायी सीमित आवृत्ति आते है। सातत्य पक्ष के ‘पक्षसूचक अंश’ “राय + ली, ल, लो, ल्या”, त, रीत, ेल, शील, हाल, आहा, हो, और ईल इन ‘पक्षसूचक अंश’ का पुरुष, वचन, और लिंग के अनुसार वर्गीकरण टेबल न.5 दिया गया है।

पुल्लिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी अभ्यास करून रायलोआमी अभ्यास करून रायलो / आमी अभ्यास करत आहो
मध्य पुरुषतू अभ्यास करून रायलातुमी अभ्यास करून रायले
अन्य पुरुषथो अभ्यास करून रायलाथे अभ्यास करून रायले
स्त्रीलिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी अभ्यास करून रायलीआमी अभ्यास करून रायलो, रायली / आमी अभ्यास करत आहो
मध्य पुरुषतू अभ्यास करून रायलीतुमी अभ्यास करून रायल्या
अन्य पुरुषथी अभ्यास करून रायलीथ्या अभ्यास करून रायल्या
नपुंसकलिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुष  
मध्य पुरुष  
अन्य पुरुषथे अभ्यास करून रायलेथे अभ्यास करून रायले

उदाहरण –

1. मी वाचून रायलो. ‘वह पढ़ रहा है। ’

2. राम काम करत आहे . ‘राम काम कर रहा है। ’

3. आमी पुस्तक वाचत आहो. ‘हम किताब पड़ रहे है। ’

4. राम आणि शाम खेलून रायले. ‘राम और शाम खेल रही है। ’

5. थो काम करून रायला. ‘वह काम कर रही है। ’

पूर्ण पक्ष- पूर्ण पक्ष से कार्य व्यापार (Situation) के पूर्ण हो जाने की अवस्था का बोध होता है एवं यह पक्ष पूर्णता को व्यक्त करता है। पूर्ण पक्ष के पक्षसूचक अंश ला, ल, ली, लो, ल्या, झाल और ले है। इन ‘पक्षसूचक अंश’ का पुरुष, वचन, और लिंग के अनुसार वर्गीकरण टेबल न.6 दिया गया है।

पुल्लिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचल / माय वाचून झालआमी वाचल / वाचलो
मध्य पुरुषतू वाचून झालतुमच वाचून झाल/ झाले
अन्य पुरुषथो वाचून झालथे वाचून झाले
स्त्रीलिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुषमी वाचल/ वचलों / माय वाचून झालआमी वाचल / वाचालों
मध्य पुरुषतू वाचून झालतुमच वाचून झाल/ झाले
अन्य पुरुषथीच वाचून झालथ्याच वाचून झाल
नपुंसकलिंग
पुरुषएकवचनबहुवचन
उत्तम पुरुष  
मध्य पुरुष  
अन्य पुरुषथे वाचून झालथे वाचून झाल

उदाहरण –

1) माय पुस्तक वाचून झाल . ‘मेरा किताब पड़ के हो गया। ’

2) थो नागपुरले गेला. ‘वह नागपुर को गया। ’

3) वर्षा ने कविता लिवली. ‘वर्षा ने कविता लिखी। ’

4) सीता ने पोळी खाल्ली. ‘सीता ने रोटी खाई। ’

5) बायकानी गाण मनल. ‘औरतों ने गीत गया। ’

6) सीता न पोई खाल्ली. ‘सीता ने रोटी खाई। ’

वृत्ति :- भाषा केवल संदेश या सूचना को एक-दूसरे तक पहुँचाने और प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं है। भाषा इससे भी कुछ अधिक है। वक्ता अपने मनोभावों (Feelings) और अभिवृत्तियों (Attitudes) को व्यक्त करता है। जिसका उदेश्य श्रोता के व्यवहार और उसकी अभिवृत्ति को प्रभावित करना होता है। भाषा में यह कार्य वृत्ति (Mood) का है। अत: वृत्ति से कार्य-व्यापार के प्रति वक्ता की अभिवृत्ति या कार्य-व्यापार के संबंध में उसके अपने दृष्टिकोण का बोध होता है। जब क्रिया में कोई प्रत्यय जोड़कर उसको क्रियापद का रूप देते है, तब उसे विविध अर्थ प्रकट होते है। जिसको मराठी में पक्ष कहा जाता है। और अँग्रेजी में इसी को Aspect कहते है। इसके साथ ही क्रियापद से यह भी मालूम होता है की वक्ता के मन में क्रिया के संबंध में कैसी धारणा है। यह निश्चय है या संशय है? क्या वह संकेत है, अथवा संभावना है, क्या वह अनुमति माँग रहा है, या प्रश्न पूछ रहा है, क्या वह आदेश दे रहा है, या प्रार्थना कर रहा है। इस प्रकार के अर्थ विशेषों को ‘वृत्ति’ कहा गया है। वैदर्भिय बोली (मराठी) भाषा में निम्नलिखित वृत्तियाँ मिलत्ती है।

1) आज्ञार्थ

2) संभावनार्थ

3) निश्चयार्थ

4) संदेहार्थ (अनिश्चित)

5) संकेतार्थ

इन वृत्ति का वृत्ति अंश के साथ वर्गीकरण।

आज्ञार्थ- इस ‘वृत्ति’ में क्रिया के रूप में आज्ञा का बोध होता है। इस आदेश का पालन करना होता है। वैदर्भिय बोली (मराठी) में आज्ञार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे- जा, ये, गेल, जे, दे, कर, आन आदि

संभावनार्थ वृत्ति के वैदर्भिय बोली (मराठी) के निम्न उदाहरण-

1. तू जा (तुम जाओ )

2. बजारातून/बाजारातून तू भाजीपला घेऊन ये. (बाजार से तुम सब्जी लेके आओ)

3. तु परिक्षेत पास झाला पाहिजे. (तूमे परीक्षा में पास होना ही पड़ेगा)

4. तू शाम ला पाठवून दे (तुम शाम को भेज दो)

5. तू लगन कर (तुम शादी करो )

6. तू शामला बोलावून आन (तुम शाम को बुलाके ले आओ)

संभावनार्थ – संभावनार्थ वृत्ति में क्रिया के द्वारा संभावना व्यक्त किया जाता है। वैदर्भिय बोली (मराठी) में संभावनार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे- न, ईल, ल, नार, तर, ीन, ेल, इ, ऊ आदि ।

संभावनार्थ वृत्ति के मराठी के निम्न उदाहरण-

1. मी काम करून घेईन (मैं काम कर लूँगा, मैं काम करवा लूँगा)

2. राम आज येईन . (राम आज आएँगा)

3. तो काम करून ठाकन (वह काम कर लेगा)

4. कदाचित आनन (शायद लाएगा)

5. आज पानी येऊ शकते (आज बारिश हो सकती है)

6. थो आला त मी पण येईन (वह आया तो मैं भी आऊँगा)

निश्चयार्थ – निश्चयार्थ वृत्ति में क्रियाओ के निश्चयार्थ के द्वारा का निश्चयात्मक विधान किया जाता है। वैदर्भिय बोली (मराठी) के निश्चयार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे त, हो, ल, ते, ले, ला, ली, तो, सेल, हील आदि।

वैदर्भिय बोली (मराठी) के निश्चयार्थ वृत्ति के प्रत्यय के निम्न उदाहरण-

1. थो आनन (वह लाएगा)

2. थे उद्या येऊन रायले. (वह कल रहे है)

3. थो काम करून रायला. (वह काम कर रहा है)

4. रोशनी आज येऊन रायली. (रोशनी आज आ रही)

5. आमी रोज जवतो. (हम रोज खाना खाते है। )

6. राम खूप चांगल पत्र लीवतो. (राम बहुत अछा पत्र लिखता है)

7. सीमा गाड़ी चालवते (सीमा गाड़ी चलाती है)

संकेतार्थ- संकेतार्थ वाक्यों मे दो कार्य-व्यापारों के बीच जो कार्यकारन संबंधों से जुड़े होते है उससे संकेत, संशय, शर्त आदि उद्देश्य प्रकट होते है। वैदर्भिय बोली
(मराठी) संकेतार्थ में जर-तर, कदाचित, अथवा आदि शब्द एँम अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। जैसे “जर पाऊस पडला असता तर बर झाल असत”.

वैदर्भिय बोली (मराठी) में संकेतार्थ वृत्ति के प्रत्यय निम्नलिखित मिलते है। जैसे- तो, ते, ईन, आदि संकेतार्थ वृत्ति के वैदर्भिय बोली (मराठी) के निम्नलिखित उदाहरण-

1. अमल्या आल त मी भी येईन (अमोल आया तो मई भी आऊँगा)

2. थ्या पण येऊ शकते / थ्या भी येऊ शकते (वह भी आ सकते है)

3. थी भी जाऊ शकते (वह भी जा सकती है)

4. आज पानी येईन (आज बारिश हो सकती है)

5. गोल्या, पप्या च्या लगनाले जाईन (गोल्या, पपु के शादी मे जायगा)

संदेहार्थ – संदेहार्थ वृत्ति को काल की दृष्टि से भविष्य कहा जा सकता है और तात्कालिक वर्तमान संदेहार्थ में गौण हो जाता है। संदेहार्थ वृत्ति में सकेतार्थ वृत्ति के तरह कदाचित ईस शब्द का प्रयोग किया जाता है। वैदर्भिय बोली (मराठी) में संदेहार्थ वृत्ति के प्रत्यय निम्नलिखित है- जैसे-ते, सेल, तो, ला, सन, ल, आदि।

संदेहार्थ वृत्ति के वैदर्भिय बोली (मराठी) के निम्नलिखित उदाहरण-

1. थो पैसे घ्याले आला असन (वह पैसे लेने आया हो गा)

2. सीता भी उद्या येऊ शकते (सीता भी कल आ सकती है)

3. राम, शाम च्या लगनाले जाऊ शकते (राम, शाम के शादी में जा सकता है। )

4. थ्या माय काम करण (वह मेरा काम करेगी)

निष्कर्ष : निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि वैदर्भिय बोली, मराठी भाषा की एक उपबोली होने के नाते इसमे व्याकरणिक संरचना में अंतर नहीं दिखाई देता लेकिन वैदर्भिय बोली में क्रिया के अनुसार काल, पक्ष और वृत्ति के द्योतन में बदलाव दिखाई पड़ता है। यह बदलाव थोडा बहुत हिंदी के प्रभाव के कारण है। मराठी भाषा में तृतीय पुरुष में लिंग के अनुसार तो, ती, ते का प्रयोग किया जाता है लेकिन वैदर्भिय बोली में तृतीय पुरुष थो, थी, थे का प्रयोग किया जाता है। साथ ही मराठी भाषा में मध्य पुरुष के लिए आम्ही का प्रयोग किया जाता है, लेकिन वैदर्भिय बोली मध्य पुरुष के लिए आमी का प्रयोग किया जाता है। वैदर्भिय बोली में वर्तमानकाल में ‘आहे’ इस सहायक क्रिया का प्रयोग किया जाता है। बोलचाल के आधार पर वर्तमानकाल सूचक अंश जैसे तो, ते, त, तेत, तात मिलते है लेकिन वैदर्भिय बोली में ज्यादा तर चालू वर्तमानकाल का उपयोग किया जाता है। जैसे- मी काम करून रायलो, इसके आधार पार चालू वर्तमानकाल के सूचक अंश निम्म मिलते है, जैसे- ली, लो, ले, ल, ला, ता, आहो। भूतकाल में सहायक क्रिया होत / होता का प्रयोग किया जाता है लेकिन वैदर्भिय बोली के बोलचाल के आधार पर “कालसूचक अंश” निम्म प्रकार से मिलते है, जैसे- ला, होत, होता, होते, ली, लो, होत्या, केल, केले। भविष्यकाल में वैदर्भिय बोली में सहयाक क्रिया नहीं मिलती है। वैदर्भिय बोली में “कालसूचक अंश” निम्नलिखित हैं, जैसे- न, जो, शीन, ू ‘ऊ’, ंन ‘अन’, आदि।

वैदर्भिय बोली में तीन पक्ष मान्य है जैसे- 1) नित्य पक्ष, 2) सातत्य पक्ष और 3) पूर्ण पक्ष है। नित्य पक्ष के पक्षसूचक अंश तो, ते, ल, और आहे इन पक्षसूचक अंश का प्रोयोग किया जाता है। सातत्य पक्ष के ‘पक्षसूचक अंश’ “राय + ली, ल, लो, ल्या”, त, रीत, ेल, शील, हाल, आहा, हो, और ईल। इन ‘पक्षसूचक अंश’ प्रयोग किया जाता है। पूर्ण पक्ष के पक्षसूचक अंश ला, ल, ली, लो, ल्या, झाल और ले है। इन ‘पक्षसूचक अंश’ का प्रयोग किया जाता है।

वृत्ति से मनुष्य के मन की स्थिति के बारे में ज्ञात होता है। वैदर्भिय बोली में निम्नलिखित वृत्तियाँ मिलत्ती है। 1) आज्ञार्थ, 2) संभावनार्थ 3) निश्चयार्थ 4) संदेहार्थ (अनिश्चित) 5) संकेतार्थ है। वैदर्भिय बोली में आज्ञार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे- जा, ये, गेल, जे, दे, कर, आन आदि। संभावनार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे- न, ईल, ल, नार, तर, ीन, ेल, इ, ऊ आदि। वैदर्भिय बोली के निश्चयार्थ वृत्ति के सूचक अंश निम्नीलिखित अंश मिलते है। जैसे त, हो, ल, ते, ले, ला, ली, तो, सेल, हील आदि। वैदर्भिय बोली
संकेतार्थ में जर-तर, कदाचित, अथवा आदि शब्द एँम अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। वैदर्भिय बोली में संकेतार्थ वृत्ति के लिए तो, ते, ईन, आदि प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। संदेहार्थ वृत्ति में सकेतार्थ वृत्ति के तरह कदाचित ईस शब्द का प्रयोग किया जाता है। वैदर्भिय बोली में संदेहार्थ वृत्ति के लिए ते, सेल, तो, ला, सन, ल, आदि प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।

संदर्भिका:-

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6. भागवत, श्रीपाद. 2004. तुमचे आमचे मराठी व्याकरण, विद्याभारती प्रकाशन, लातूर.

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